टी.सूर्याराव/भिलाई। Chhattisgarh Election 2023: मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की परंपरागत सीट दुर्ग जिले के पाटन में इस बार का चुनाव बहुत ही रोचक होने जा रहा है। दरअसल, यहां से भाजपा ने रिश्ते में मुख्यमंत्री के भतीजे लगने वाले सांसद विजय बघेल को एक बार फिर मैदान में उतारा है। पाटन से इन दोनों के बीच ही मुकाबला होते आया है। 2008 में विजय ने भूपेश पर जीत भी दर्ज की थी, लेकिन इसके अलावा हर चुनाव में वे हारते रहे हैं।
वहीं इस बार पूर्व सीएम अजीत जोगी के बेटे और जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी भी यहां से चुनाव मैदान में हैं। वे यहां के सतनामी और आदिवासी वोट झटक सकते हैं, जो कांग्रेस-भाजपा दोनों के वोटों को प्रभावित करेगा। यानी भूपेश और विजय के बीच हार-जीत का अंतर कम करने में अमित की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी।
मुख्यमंत्री बघेल का गृह क्षेत्र और हाईप्रोफाइल सीट होने के बावजूद पाटन में अब तक वह चुनावी माहौल नजर नहीं आ रहा है, जिसकी कल्पना की जाती है जबकि 17 नवंबर को मतदान होना है और 15 नवंबर से प्रचार पर विराम लग जाएगा। कृषक बहुल क्षेत्र होने के कारण यहां के ज्यादातर लोग धान की फसल की कटाई में व्यस्त हैं। गांव की चौपाल में बैठकर चुनावी चर्चा नहीं के बराबर हो रही है।
यहां के ग्रामीणों से यह पूछने पर कि कौन जीतेगा, केवल मुस्कराकर रह जाते हैं। पाटन सीट के शहरी हिस्से कुम्हारी में जरूर थोड़ा चुनावी माहौल नजर आया। यहां से मुख्यमंत्री सातवीं बार चुनाव लड़ रहे हैं। चाचा-भतीजे की यह परंपरागत सीट रही है।
1993 से 2018 के बीच भूपेश बघेल और विजय बघेल के बीच छह बार मुकाबला हो चुका है, जिसमें पांच बार भूपेश जीते हैं और 2008 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। यहां से अब अमित जोगी का चुनाव मैदान में उतरना कांग्रेस और भाजपा दोनों के चुनावी गणित पर असर डालेगा।
बता दें कि पाटन सीट में प्रमुख रूप से साहू वोटर लगभग 65,000, कुर्मी 26,000, सतनामी 29,000, यादव 21,000 और आदिवासी वोटर लगभग 21,000 हैं। अमित मुख्यत: सतनामी और आदिवासी वोट काट सकते हैं। बता दें कि पाटन से नामांकन दाखिल करते समय अमित जोगी ने कहा था कि वे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के खिलाफ नहीं बल्कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे हैं। यह चुनाव एक बेहद ताकतवर दाऊ परिवार बनाम पाटन के गरीब अनुसूचित जाति-जनजाति अति पिछड़ा वर्ग के लोगों के अधिकार का चुनाव है। मैं तो केवल चेहरा हूं, प्रत्याशी पाटन वासी हैं।
पाटन के गांवों में चुनाव को लेकर कोई खुलकर चर्चा नहीं करना चाह रहा है। संभवत: एक तरफ स्वयं मुख्यमंत्री का प्रभाव और दूसरी तरफ विजय बघेल के भी क्षेत्रीय होने के कारण मतदाताओं पर इतना दबाव है कि वे हार-जीत पर कुछ कहने से बचना चाहते हैं। संभवत: यही कारण है कि यहां सामूहिक रूप से चुनाव पर चर्चा होती नजर नहीं आई। बैनर-पोस्टर भी बहुत कम लगे हैं।