MP Politics: सद्गुरु शरण। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के जिस आशातीत परिणाम पर भाजपा नेतृत्व अपनी पीठ थपथपाते नहीं थक रहा, उसके नायक शिवराज सिंह चौहान की मुख्यमंत्री पद से अशोभनीय विदाई प्रदेश के आम-ओ-खास लोगों के दिल में चुभ गई।
2018 विधानसभा चुनाव के बाद सिर्फ 15 महीने छोड़कर वर्ष 2005 से लगातार वर्ष 2023 तक मध्य प्रदेश में भाजपा सरकार का नेतृत्व कर चुके शिवराज सिंह का मुख्यमंत्री पद से हटना कतई अप्रत्याशित नहीं है, इसके बावजूद भाजपा नेतृत्व को अपने इस ब्रांड चेहरे को मुख्यमंत्री की कुर्सी से उतारकर प्रतिष्ठापूर्वक सुसज्जित करना चाहिए था।
यह इसलिए भी आवश्यक था क्योंकि मुश्किल से चार माह बाद लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश माडल की भूमिका महत्वपूर्ण साबित होगी। यह बहस अंतहीन है कि भाजपा को मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में इतनी बड़ी सफलता कैसे मिली।
इस सच्चाई से कौन इन्कार कर सकता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता इसके पीछे एक अहम वजह है। यद्यपि चुनावी राजनीति के विशेषज्ञ मानते हैं कि भाजपा के लिए महिलाओं का लगभग इकतरफा समर्थन अंतत: निर्णायक साबित हुआ।
समीक्षक इसका श्रेय शिवराज सिंह चौहान की लाड़ली बहना योजना को देते हैं जिसकी सराहना चुनाव सभाओं में खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करते रहे हैं। चार नवंबर को रतलाम में आयोजित अपनी पहली चुनाव सभा में मोदी ने कहा था कि लाड़ली बहनों का जिक्र आता है तो मामा का चेहरा खुद-ब-खुद सामने आ जाता है।
दरअसल, विधानसभा चुनाव में भाजपा की सारी उम्मीदें इसी योजना पर टिकी थीं। 17 नवंबर को सुबह मतदान शुरू होते ही मतदान केंद्रों पर महिलाओं की लंबी कतारें देखकर भाजपाइयों के चेहरे चमक उठे थे। उसी दिन मान लिया गया था कि शिवराज सिंह की योजना का जादू चल गया है और भाजपा बहुमत से सरकार बना लेगी।
यद्यपि तीन दिसंबर को प्रकट हुआ परिणाम भाजपा की उम्मीद एवं आकलन से कहीं बेहतर था। चुनाव परिणाम आने पर भाजपा के शीर्ष केंद्रीय और प्रांतीय नेताओं ने इस समर्थन के लिए महिलाओं के प्रति आभार जताया था।
ऐसी चमत्कारी एवं परिणामदायी योजना के द्रष्टा शिवराज सिंह चौहान को 11 दिसंबर को भोपाल में भाजपा विधायक दल की बैठक में केंद्रीय पर्यवेक्षकों के सामने नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद पटेल, कैलाश विजयवर्गीय और वीडी शर्मा के साथ पंक्तिबद्ध देखकर हर किसी को मायूसी हुई। भाजपा नेतृत्व ने चुनाव अभियान के दौरान ही उनका चेहरा पीछे करके संकेत दे दिया था कि सरकार बनने पर शिवराज सिंह को मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाएगा।
बहरहाल, इससे माहौल में प्रतिकूलता का संकेत मिलने पर शिवराज सिंह को थोड़ा आगे बढ़ाया गया। यद्यपि परिणाम आने के बाद नेतृत्व ने वहीं किया जो पहले ही तय किया जा चुका था। मोहन यादव को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपे जाने की हर स्तर पर सराहना हो रही है, इसके बावजूद भाजपा के भीतर और बाहर के अनुभवी जानकार स्वीकार करते हैं कि किन्हीं कारणों से शिवराज सिंह की उपेक्षा का संदेश पार्टी के लिए लाभकारी नहीं होगा।
बेशक 18 वर्षों के कार्यकाल में शिवराज सिंह कई मौकों पर चूके भी होंगे, पर इस लंबी अवधि में वह मध्य प्रदेश में भाजपा के ब्रांड भी बन गए। ओबीसी के अलावा अन्य सामाजिक वर्गों में भी उनकी मजबूत स्वीकार्यता है। उम्मीद जताई जा रही थी कि शिवराज सिंह को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाने के बाद नेतृत्व उन्हें कोई अन्य महत्वपूर्ण भूमिका सौंपकर सम्मानित करेगा।
यद्यपि अब तक ऐसा कुछ नहीं हुआ है। शिवराज सिंह को मध्य प्रदेश में नारी सशक्तीकरण के अलावा मौजूदा विकास के लिए भी श्रेय दिया जाता है। उनकी सहजता और परिश्रम का लोहा उनके प्रतिद्वंद्वी भी मानते हैं। जाहिर है, नए मुख्यमंत्री मोहन यादव के सामने इस बड़ी लकीर के समानांतर आगे बढ़ने की चुनौती भी होगी।