उज्ज्वल शुक्ला, आउटपुट एडिटर, इंदौर। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में सियासी बयानबाजी चरम पर है। यही नहीं, फिल्मी किरदारों और डायलाग की एंट्री के बाद प्रचार अभियान रोचक हो गया है। अब तक ब्लाकबस्टर फिल्म शोले के जय-वीरू, गब्बर, ठाकुर से लेकर फिल्म मेरे अपने के श्याम-छैनू तक की चर्चा हो चुकी है। इसके अलावा भी कई किरदार चुनावी भाषणों में सुर्खियां बटोर रहे हैं।
बात बस जुबानी जंग तक ही नहीं है, चुनाव प्रचार से जुड़े कई वीडियो में भी शोले के रंग घुलते नजर आ रहे हैं। इस चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह और कमल नाथ की जोड़ी को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जय-वीरू की जोड़ी क्या कहा, उन्होंने अपने आपको इसी रूप में स्वीकार भी कर लिया और पलटकर शिवराज सिंह को चुनावी शोले फिल्म का गब्बर सिंह कह दिया।
मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में शायद ऐसा पहली बार हो रहा है जब अपने प्रतिद्वंद्वियों के लिए फिल्मी नायकों के नाम का इस्तेमाल किया जा रहा है। चुनाव में हर दिन कुछ न कुछ अलग और नया देखने को मिल रहा है।
जय-वीरू, श्याम-छैनू की जोड़ी बाद पिछले दिनों केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने काला कौवा की भी एंट्री करा दी। इन चुनावों में फिल्मी किरदारों, गानों, बयानबाजी, आरोप-प्रत्यारोप के बीच आमजन से जुड़े महंगाई, बेरोजगारी, अपराध, विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसे मुद्दे गायब ही नजर आ रहे हैं।
अपने चुनावी घोषणा-पत्र में इन मुद्दों को लेकर वादे और दावे तो खूब किए जा रहे हैं, पर हकीकत में ये कितने फलीभूत होगे, इसकी चर्चा कोई नहीं कर रहा है।
आज से करीब 48 साल पहले जब शोले फिल्म आई थी, उसने हिंदी सिनेमा जगत में इतिहास रच दिया था। आज की पीढ़ी ने भले ही शोले देखी नहीं होगी, लेकिन शोले के संवाद सभी ने सुने ही होगे हैं। इन किरदारों को लेकर इंटरनेट मीडिया पर कई तरह के वीडियो और रील उपलब्ध है।
फिल्म शोले की बात करें तो यह फिल्म अपने समय में भले ही बेहद लोकप्रिय रही होगी, पर आज का युवा वर्ग इन किरदारों को कितना स्वीकार कर पा रहा होगा, यह कहना मुश्किल है। हम इस चुनाव में दिए जा बयानों पर नजर डाले तो जहां कमल नाथ और दिग्विजय सिंह अपने को जय-वीरू बता रहे हैं तो केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर कह रहे हैं कि असली जय-वीरू हम (शिवराज-तोमर) है। एक समय में यह बात सच भी थी, जब इस जोड़ी ने कांग्रेस को पूरी तरह से प्रदेश की राजनीति से गायब जैसा कर दिया था।
अब अगर चुनाव के पहले की बात करें तो दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दलों ने ऐसे वादे किए थे, जिन्हें सुनकर लग रहा था कि देश में मध्य प्रदेश से सर्वश्रेष्ठ कोई राज्य होगा ही नहीं। सत्ता में आने के लिए बढ़-चढ़कर दावे और वादे किए जा रहे थे।
लोकलुभावन घोषणाएं करने में पैसा तो लगता नहीं है इसलिए कोई भी राजनीतिक दल इसमें पीछे नहीं रहना चाहता था। इससे ऐसा लग रहा था कि प्रदेश के नेता इस बार जनता की सभी मांगे पूरी करके ही मानेंगे।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लाड़ली बहनों को 1250 रुपये देने का प्रविधान किया तो बिना देरी किए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ ने महिलाओं को हर महीने 1500 रुपये देने की घोषणा कर दी। गैस सिलेंडर, पेट्रोल-डीजल के भाव कम करने हों या फ्री में बिजली, पानी, इलाज और राशन मुहैया कराने के ऐसे वादे किए जा रहे थे, मानो सब्जी मंडी में बोली लग रही है। हर दल ऐसे वादे कर रहा था जैसे मानो धरती पर ही स्वर्ग उतर आया हो।
चुनावी भाषणों में आरोप-प्रत्यारोप, घोषणाएं-वादों से ज्यादा कुछ नजर नहीं आ रहा है। इस तरह के काम चुनाव जीतने के हथकंडे हो सकते हैं, पर जनता का दिल जीतने के लिए उनके हक की बात करनी होगी। जनता क्या चाहती है, ये समझना होगा।
आप जय-वीरू, गब्बर के सहारे चुनावी सभा में तालियां तो बटोर सकते हैं, पर लोगों का दिल नहीं जीत सकते हैं। लोगों का दिल उनके मन की बात करके, उनकी समस्याओं का समाधान करके, सुख-दुख के समय उनके साथ खड़े होकर जीता जा सकता है।
नेताजी आप खूब आरोप-प्रत्यारोप कीजिए, खूब फिल्मी किरदारों का बखान कीजिए, बड़ी-बड़ी रैलियां कीजिए, रोड शो कीजिए, पर इन सभाओं में, रैलियों में आम जनता के मुद्दों पर अपना दृष्टिकोण भी रखिए।
- मध्य प्रदेश में वर्ष 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में मतदाताओं संख्या 5.07 करोड़ थी, जो साल 2023 तक बढ़कर करीब 5.40 करोड़ पहुंच गई है। इनमें से करीब एक करोड़ 30 लाख 18 से 29 वर्ष की आयुसीमा वाले युवा है।
- शिवराज सरकार की ओर से लगातार रोजगार पर जोर देने का दावा किया जाता रहा है लेकिन हकीकत यह है कि राज्य में प्रतिदिन 1,495 बेरोजगारों की संख्या बढ़ रही है।
- 40 लाख के लगभग संख्या है मप्र में बेरोजगारों की
- 13 लाख बेरोजगारों की संख्या बढ़ी है एक साल में
- लगातार बढ़ रही महंगाई चिंता का कारण है, तो वहीं प्याज के लगातार बढ़ रहे दाम भी आमजन को प्रभावित कर रहे हैं। इस पर कोई नेता बात नहीं कर रहा है।
- राज्य उच्च महंगाई दर से भी जूझ रहा है, जो वित्त वर्ष 2019 से लगातार राष्ट्रीय औसत से ऊपर बनी हुई है।
- 6.2 प्रतिशत थी राज्य में उपभोक्ता कीमतें वित्त वर्ष 2022 में
- 5.5 प्रतिशत था राष्ट्रीय औसत
मध्य प्रदेश में जहां एक ओर महिला सशक्तीकरण और बेटियों को सम्मान देने की बात होती है, दूसरी ओर प्रदेश में हर दिन औसतन 17 से 18 दुष्कर्म के मामले देखने को मिलते हैं।
- 2019 से 2021 के बीच देशभर में 13 लाख 13 हजार लड़कियां और महिलाएं लापता हुई हैं, इनमें से सबसे अधिक मामले मध्य प्रदेश के हैं।
- 30,673 मामले दर्ज हुए हैं महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले दर्ज हुए 2021 में
- 2667 केस दर्ज हुए थे प्रदेश में आदिवासी उत्पीड़न के 2021 में