आम आदमी पार्टी मुखिया अरविंद केजरीवाल भ्रष्टाचार आरोपी मनीष सिसोदिया के साथ डटकर खड़े हैं। इस घटनाक्रम पर जिन लोगों को हैरानी हो रही हो उन्हें दरअसल केजरीवाल की लालू प्रसाद के साथ फोटो देखनी चाहिए। राजनीति में आने से पहले केजरीवाल विरोधी दलों पर आरोप लगाते थे कि सब आपस में मिले हुए हैं, इसका मतलब है कि राजनीतिक पार्टियां सार्वजनिक रूप से भले ही एक-दूसरे की विरोधी होने की बात करती हैं लेकिन अंदरखाते एक-दूसरे को बचाती हैं। आज केजरीवाल मोदी के विरोध में किसी भी पार्टी और नेता की गोद में बैठने के लिए तैयार हैं, भले ही पार्टी-नेता पर भ्रष्टाचार के आरोप हों या वह इन आरोपों के लिए सजा काट रहे हों। ऐसे में अगर केजरीवाल भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में बंद सिसोदिया के साथ खड़ी है तो इसमें बिल्कुल भी हैरानी की बात नहीं है।
हवाला और अन्य माध्यमों से 90-100 करोड़ की रिश्वत वसूली
अब इस मामले में केजरीवाल की राजनीति की बात करें। एजेंसियों के दुरुपयोग से लेकर केजरीवाल की दिल्ली सरकार को अस्थिर करने की साजिश तक, केजरीवाल इस मामले में तमाम आरोप लगा चुके हैं लेकिन अगर हम न्यायालय की कार्रवाई का रुख करते हैं तो दूसरी ही तस्वीर हमारे सामने आती हैं।
सीबीआई के सिसोदिया पर आरोप है कि दिल्ली सरकार में 18 बेहद महत्वपूर्ण मंत्रालय संभालने वाले और नई एक्साइज़ नीति बनाने वाले मंत्री समूह के मुखिया सिसोदिया शराब व्यवसाय के थोक और खुदरा लेनदेन में प्रतिस्पर्धा हटाकर एकाधिकार लाने और शराब कारोबार से जुड़े लोगों को 12% विंडफाल लाभ पहुंचाने में उनकी अहम भूमिका है। इसके बदले हवाला और अन्य माध्यमों से 90-100 करोड़ की रिश्वत वसूली गई।
सीबीआई का आरोप है कि आबकारी आयुक्त रवि धवन की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों की अनदेखी की गई और नई नीति का विरोध करने वाले अधिकारियों को डराया-धमकाया तक गया। इसके बाद दिल्ली में शराब कारोबार पर एकाधिकार स्थापित के लिए कुछ कारोबारियों पर दवाब डाला गया और कुछ के प्रति पक्षपात किया गया।
उच्च न्यायालय ने कहा - सुबूत नष्ट कर सकते हैं सिसोदिया
सीबीआई के आरोपों को राजनीति से प्रेरित और केंद्र सरकार के दवाब का नतीजा माना जा सकता है लेकिन जब इस मामले में हम न्यायालय की टिप्पणियों पर गौर करते हैं तो तस्वीर कुछ हद तक साफ हो जाती है। दिल्ली उच्च न्यायालय की इस मामले में टिप्पणी है कि प्रथम दृष्टया इस कथित आपराधिक षडयंत्र में दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री की अहम भूमिका है। न्यायालय ने यह भी पाया कि आरोपी ने अपने पुराने फोन नष्ट किए हैं और एक केबिनेट नोट की फाइल भी गायब है, ऐसे में उन्हें जेल से छोड़ने पर उनके द्वारा सुबूत नष्ट करने की कोशिश करने से इनकार नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने यह भी पाया कि आर्थिक अपराध बेहद सोच-विचार करके किए जाते हैं और यह समाज के लिए बेहद खतरनाक हैं।
शराब के थोक कारोबार को निजी हाथों में सौंपने के लिए इतनी उत्सुक क्यों
इस पूरे मामले में एक बात बेहद महत्वपूर्ण है। तत्कालीन आबकारी आयुक्त रवि धवन की अध्यक्षता में गठित विशेषज्ञ समिति ने सिफारिश की थी कि शराब का पूरा थोक कारोबार सरकार के हाथों में रहना चाहिए। इसके बाद रवि धवन के तबादले के बाद राहुल सिंह नए आबकारी आयुक्त बने। उन्होंने भी देश के दो पूर्व मुख्य न्यायाधीशों और एक पूर्व अटॉर्नी जरनल से प्राप्त कानूनी राय के आधार पर पुरानी नीति बरकरार रखने की सलाह दी। ऐसे में दिल्ली सरकार शराब के थोक कारोबार को निजी हाथों में सौंपने के लिए इतनी उत्सुक क्यों थी।
बड़ी पहेली यह भी है कि शराब कारोबार में लाभ मार्जिन को आखिर 5% से बढ़ाकर 12% क्यों किया गया। शराब कारोबार बेहद सुरक्षित कारोबार है। ऐसे में जन हितैषी सरकार द्वारा अपनी आय बढ़ाने या शराब के सेवन को हतोत्साहित करने के लिए इस पर कर बढ़ाना समझ में आता है लेकिन लाभ मार्जिन बढ़ाने की क्या जरूरत थी। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि अगर आप कारोबारी को 5% तक ही कमाई करने की इजाजत देंगे तो वह बदले में कितना कमीशन या रिश्वत दे पाएगा। लाभ के मार्जिन को 12% तक बढ़ाने से ही कमीशन-रिश्वत में भी बढ़ोतरी हो सकती है।
अब इस मामले में आप का राजनीतिक व्यवहार देखें। मनीष सिसोदिया शराब नीति के बदलाव में भ्रष्टाचार के आरोपी है या नहीं, यह अदालतों में तय होगा लेकिन आज पूरी आम आदमी पार्टी भ्रष्टाचार के आरोपियों के साथ खड़ी है। पार्टी आखिर आरोपियों को ईमानदारी के प्रमाण-पत्र क्यों बांट रही है। ‘क्या से क्या हो गए, देखते-देखते’ बेहद मजेदार हिंदी गाना है और केजरीवाल और उनकी पार्टी के पतन पर बिल्कुल सटीक बैठता है।
प्रेरणा कुमारी, स्वतंत्र पत्रकार