जनसंघ के स्थापना दिवस पर अध्यक्ष भारत भूषण से पत्रकार प्रेरणा कश्यप की बात-चीत। जनसंघ के इतिहास के बारे में जानेंगे। इनके प्रमुख नेता और उनके कार्यों के बारे में जानेंगे और किस तरह 1980 से पहले हिंदूवादी राजनीति की सशक्त आवाज के रूप में जनसंघ सक्रिय थी। जनसंघ आने वाले समय में देश हित में कौन-कौन से कार्य करेगी।
आज हिंदुत्व की राजनीति की मुख्य पैरोकार के रूप में भाजपा को माना जाता है और भाजपा पिछले आठ वर्षों से केंद्र में सत्ता पर काबिज भी है परंतु भाजपा की स्थापना 1980 में हुई है और भारत में हिंदु राजनीतिक पार्टियों का इतिहास इससे कहीं अधिक पुराना है। भाजपा से पहले हिंदुवादी राजनीति की सशक्त आवाज के रूप में, भारत में जनसंघ की उपस्थिति थी। इस पार्टी की स्थापना 21 अक्टूबर 1951 को दिल्ली में श्यामा प्रसाद मुखर्जी, प्रोफेसर बलराज मधोक और दीनदयाल उपाध्याय द्वारा की गई थी।
1951 में तीन लोकसभा सीटों पर जीत से शुरुआत करके 1967 के लोकसभा चुनावों में पार्टी ने 9.4 प्रतिशत मत हासिल करके 35 सीटें हासिल कीं। यह जनसंघ का लोकसभा में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। पार्टी की राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में सशक्त उपस्थिति थी। हालांकि इसके बाद पार्टी अपना उभार बरकरार नहीं रख पाई और 1971 के चुनावों में लोकसभा सीटों में गिरावट और इमरजेंसी के बाद अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण अड़वाणी जैसे इसके प्रमुख नेताओं द्वारा भाजपा के रूप में अलग पार्टी बनाने के बाद कभी राष्ट्रीय पार्टी के रूप में पंजीकृत यह दल धीरे-धीरे यह दल भारत के राजनीतिक परिदृश्य से गायब हो गया।
भाजपा के गठन के बाद, जनसंघ के संस्थापक सदस्य बलराज मधोक ने चुनाव आयोग से दीपक का चुनाव चिह्न प्राप्त करके जनसंघ का अस्तित्व बरकरार रखा। वह 2016 तक इस दल के अध्यक्ष पद पर काबिज रहे और फिर उनकी मृत्यु के पश्चात वर्तमान में डॉ. आचार्य भारतभूषण पाण्डेय इसके अध्यक्ष हैं। भारतीय जनसंघ की प्रासंगिकता, भविष्य की रणनीति और वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य पर हमारी श्री पाण्डेय से बातचीत हुई। श्री पाण्डेय ने कहा कि भाजपा की जीत वस्तुतः राष्ट्रवाद की जीत है।
भाजपा ने अपनी विचारधारा को जब गांधीवादी समजावाद से राष्ट्रवाद की तरफ मोड़ा, पार्टी को तभी जीत मिल पाई। उन्होंने बताया कि भाजपा जिन मुद्दों की वजह से आज भारतव्यापी पार्टी बनी है, वह दरअसल जनसंघ के मुद्दे हैं। राम जन्म भूमि का मुद्दा भारतीय संसद में सबसे पहले बलराज मधोक ने 1961 में उठाया था। श्री मधोक ने अयोध्या के साथ-साथ काशी और मथुरा का मसला भी संसद के समक्ष रखा। तब विश्व हिंदू परिषद का गठन तक नहीं हुआ था। कश्मीर समस्या, घुसपैठियों की समस्या और गौरक्षा ऐसे अन्य मुद्दे थे जिन्हें श्री मधोक ने राष्ट्र के समक्ष रखा और इन पर जनमत बनाया।
भाजपा की जीत वस्तुतः जनसंघ के विचारों की ही जीत है। वर्तमान में जनसंघ का लक्ष्य मात्र सत्ता प्राप्ति तक सीमित नहीं है। हिंदु की राजनीतिक चेतना को जगाना पार्टी का लक्ष्य है। हिंदू धर्म में समय के साथ कुछ कुरीतियां और विभेद आए हैं और समाजवादी राजनीति के नाम पर इन कुरीतियों को बढ़ावा दिया जा रहा है। समाजवादी पार्टियां आज मात्र जाति आधारित पार्टियां बनकर रह गई हैं। अपने राजनीतिक लाभ के लिए ऐसी पार्टियां हिंदू समाज को दुर्बल बनाने का काम कर रही हैं।
इसके अलावा जनसंघ मजहबी कट्टरपंथ के विरुद्ध भी लड़ रहा है। नुपूर शर्मा के वक्तव्य से कोई व्यक्ति या मजहब विशेष के अनुयायी सहमत हों या नहीं, फिर भी हमारा संविधान उन्हें अपना मत अभिव्यक्त करने का अधिकार देता है लेकिन आज मजहबी हिंसा से भयभीत होकर उन्हें छिपकर जीना पड़ रहा है। जनसंघ का मानना है कि नुपूर शर्मा के नागरिक अधिकारों का यह घोर उल्लंघन है और यह पूरा मामला एक बड़ी बीमारी का छोटा सा लक्षण भर है। यह समस्या मात्र भारत तक ही सीमित नहीं है।
सलमान रुश्दी पर हाल ही में हुआ घातक हमला इसका उदाहरण है कि पश्चिमों देशों में भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर मजहब विशेष के कट्टरपंथी लोगों द्वारा लगातार हमले किए जा रहे हैं। ऐसे हालातों में हमारे देश को सुरक्षित रखने का एक ही तरीका है कि हम राष्ट्रवाद को अपनाएं और अपने क्षुद्र स्वार्थों से ऊपर उठें। आज जनसंघ चुनावी राजनीति के मामले में बेशक हाशिए पर है लेकिन हम राष्ट्र और धर्म आधारित राजनीति के लिए विचार यात्रा का नेतृत्व कर रहे हैं।
समस्या चाहे कश्मीर की हो या अन्य क्षेत्रों में हिंदू उत्पीड़न की हो, इसका मुख्य कारण यह है कि जातीय नेता अपने स्वार्थों के लिए हिंदू समाज को बांटने की राह चुनते हैं। ऐसे में हिंदू समाज के संगठित इकाई के रूप में खड़े होने से ही इस समस्या का हल संभव है। जनसंघ दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद चिंतन का वाहक है। ऐसे में हम सब को मानव के रूप में बराबर स्वीकार करते हैं।
केंद्र सरकार के कामकाज के बारे में जनसंघ का मानना है कि वर्तमान सरकार में सत्ता के सबसे ऊंचे स्तरों पर भ्रष्टाचार खत्म हुआ है। अभी तक इस सरकार पर सीधे भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा है। सरकार के लिए यह जरूरी है कि वह महंगाई नियंत्रित करें और आर्थिक नीति में पश्चिमी देशों के अनुकरण के बजाय लोकोन्मुखी मॉडल अपनाएं। इसके अलावा सरकार के अधीन मंदिरों को वापस हिंदू समाज को सौंपने पर तेज़ गति से काम किया जाए।
पंथनिरपेक्ष देश में मंदिरों पर सरकार का कब्जा होना स्वयं ही सिद्धांत विरुद्ध एवं गलत है। सरकार को शिक्षा के भारतीयकरण के लिए भी तेज़ी से प्रयास करने चाहिए। आज हमारा समाज और हमारे युवा भारतीय चिंतन से अवगत हैं। जहां तक नई शिक्षा नीति का प्रश्न है, यह नीति शिक्षा आमुलचूल परिवर्तन के बजाय कुछ सुधार मात्र प्रस्तावित करती है, हालांकि देश को समग्र और समावेशी भारतीय धर्म आधारित शिक्षा की जरूरत है।
Prerna Kumari
Journalist