गीता में कृष्ण शस्त्रधारियों में स्वयं को राम कहते हैं, ऐसे में कृष्ण चेतना की खोज में जुटे इस्कॉन के भक्त भी 22 जनवरी 2024 को अयोध्या नगरी में भगवान रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा को लेकर बेहद उत्साहित हैं। रामलला मंदिर की पुनः प्रतिष्ठा के अवसर पर इस्कॉन के मंदिरों में घी के दीपक जलाए जाएंगे और समारोह का लाइव प्रसारण किया जाएगा। इसके अलावा उसी दिन इस्कॉन की दिल्ली से अयोध्या तक की 41 दिनों की श्रीराम पद यात्रा भी पूर्ण होगी। इस्कॉन द्वारा अयोध्या में भक्तों को मुफ्त भोजन भी करवाया जाएगा।
भक्ति के इन आयामों के साथ-साथ इस्कॉन सनातन धर्म के वैचारिक संघर्ष को भी आगे बढ़ा रहा है। पत्रकार प्रेरणा कुमारी से बातचीत में इस्कॉन द्वारका के उपाध्यक्ष अमोघ लीला प्रभु ने सनातन के विरुद्ध होने वाले हमलों के राजनीतिक और सामाजिक पहलुओं पर बातचीत की। सबसे पहले अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की महत्ता पर बात करते हुए उन्होंने बताया कि यह मंदिर सैकड़ों वर्षों के संघर्ष का साक्षी है।
यह निर्माण आक्रांताओं की विध्वंसक वृत्ति पर धर्म की विजय का प्रतीक है। मंदिर के बजाय अस्पताल-स्कूल बनाने के सुझाव पर उन्होंने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा कि कुछ कम बुद्धि वाले लोग मंदिर और स्कूल को परस्पर विरोधी के रूप में देखते हैं लेकिन ऐसा नहीं है। कुछ लोगों को पार्टियों, फिल्मों और सैर-सपाटे पर खर्च के समय गरीब की याद नहीं आती, सिर्फ मंदिर के मामले में ही ऐसे तर्क दिए जाते हैं। देश को आध्यात्मिक उन्नति की सीढ़ी मंदिरों के साथ स्कूलों जैसे लौकिक तरक्की के साधनों दोनों की जरूरत है।
बांग्लादेश में हिंदू उत्पीड़न और मंदिरों पर हमलों के संदर्भ में उन्होंने कहा कि धर्म और अधर्म का लगातार संघर्ष चल रहा है। इस्कॉन धार्मिक विद्वेष के चलते सनातन पर होने वाले हमलों का लगातार प्रतिरोध कर रहा है। हाल ही में बांग्लादेश के चंद्रनाथ शिव मंदिर को बचाने के लिए इस्कॉन के भक्तों ने प्रखर अभियान शुरू किया है।
उनके अनुसार, सनातन के प्रचार-प्रसार के लिए शास्त्र धारण किए जाते हैं और इसकी रक्षा के लिए शस्त्र भी उठाए जा सकते हैं। भारत और सनातन धर्म पर ऐतिहासिक हमलों और जबरन धर्मांतरण के बारे में उन्होंने बताया कि हमारी आपसी फूट हमारी पराजय का कारण रही है।
इसके अलावा हिंदूओं के एक बड़े वर्ग का अंतर्मुखी स्वभाव भी हिंदू धर्म का यथोचित प्रचार नहीं होने का कारण है। हिंदू समाज निजी सफलता और व्यक्तिगत उन्नति से ही संतुष्ट हो जाता है और सामूहिक धर्म की अनदेखी की जाती है। उनके अनुसार आज हिंदू धर्म में सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि हम अपने धर्मग्रंथों का अध्ययन ही नहीं करते। धर्म के बारे में हमारी जानकारी सतही और टीवी कार्यक्रमों पर आधारित है। उत्तर-पूर्व में धर्मांतरण की समस्या भी हमारी उदासीनता का परिणाम है।
वर्तमान में धर्म की स्थिति पर उन्होंने बेबाकी से कहा कि हमारे घरों और मंदिरों में हम धर्म को अपेक्षित महत्व नहीं देते हैं। घरों में बने पूजा कक्ष बस किसी तरह अस्तित्व में बने रहते हैं। इसी तरह मंदिर हमारे संस्कार केंद्र होने चाहिए लेकिन वे मात्र दर्शन स्थल बनकर रह गए हैं।
लोग मंदिर आते हैं, दर्शन करते हैं और चले जाते हैं, वहां कीर्तन, जप और अध्ययन-श्रवण जैसी परंपराओं का निरंतर ह्रास हो रहा है। कई जगहों पर सफाई और सुव्यवस्था का भी अभाव है। इसी तरह बच्चों को धर्म से जोड़ने पर प्रश्न पर उन्होंने कहा कि दरअसल माता-पिता स्वयं ही धर्म के सत्व से दूर हो रहे हैं, स्वाभाविक रूप से बच्चे भी धर्म के सत्व से दूर हो रहे हैं।
माता-पिता धर्म-अध्यात्म और भक्ति को भौतिक उन्नति में बाधा मानते हैं। हालांकि धर्म से यह दूरी हमें आम जिंदगी के सुखों से भी दूर करती है। वर्तमान समय में तनाव, अवसाद और आत्महत्याओं का सबसे बड़ा कारण यही है कि आम लोग धर्म के सत्व से दूर हैं।
प्रेरणा कश्यप