सद्गुरु शरण
तीन दिसंबर, 2023 से चार जून, 2024 के बीच मध्य प्रदेश में कुछ नहीं बदला। आज भी उसके मन में मोदी हैं तो मीठी यादों में मामा यानी शिवराज सिंह चौहान। भाजपा के करीब दो दशकों के शासनकाल में मध्य प्रदेश का जिस तरह चौतरफा विकास हुआ, चुनाव नतीजों में उसके प्रति कृतज्ञता दिखती है। इसके अलावा पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की लाड़ली बहनों और भांजियों ने तो विधानसभा चुनाव के बाद लगातार दूसरी बार लोकसभा चुनाव में भी भाजपा के लिए अपनी जान ही लगा दी। भाजपा के पक्ष में क्लीन स्वीप इसी का परिणाम है। बेशक मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव के ताजा एवं निर्दोष चेहरे ने भाजपा के लिए प्रदेशवासियों के मन में मोह और मिठास बढ़ा दी।
मध्य प्रदेश का मन और चुनाव नतीजे समझने के लिए छिंदवाड़ा और राजगढ़ की मानसिकता को समझना जरूरी है। छिंदवाड़ा यानी मध्य प्रदेश में कांग्रेस के पोस्टर ब्वाय कमल नाथ का किला। भाजपा इसकी नींव वर्ष 2019 की प्रचंड मोदी लहर में भी नहीं हिला पाई थी। तब कमल नाथ के पुत्र नकुल नाथ चुनाव जीते थे। भाजपा ने करीब छह महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव में भी इस किले की दीवारों पर पूरी ताकत से प्रहार किए लेकिन छिंदवाड़ा जिले की सारी विधानसभा सीटें कांग्रेस ही जीती। इस बार भी नकुल नाथ ही कांग्रेस उम्मीदवार थे।
चुनौती भांपकर अनुभवी कमल नाथ मतदान हो जाने तक छिंदवाड़ा में ही डटे रहे। भाजपा ने अपने सामान्य कार्यकर्ता बंटी विवेक साहू को मैदान में उतारा जिन्होंने नकुल नाथ को चित्त कर दिया। कमल नाथ का किला ढहाने का भाजपा का सपना अंतत: पूरा हो गया। इसे बुजुर्ग कमल नाथ के राजनीतिक जीवन का अवसान माना जा रहा है। अब बात राजगढ़ की। यह कांग्रेस के कद्दावर नेता दिग्विजय सिंह की परंपरागत सीट और मजबूत किला माना जाता था।
दिग्विजय लंबे अंतराल के बाद लोकसभा चुनाव मैदान में उतरे। उन्होंने पहले दिन से ही सहानुभूति कार्ड चला। इसे अपना अंतिम चुनाव बताकर मतदाताओं से अपने अहसानों का बदला मांगा, पर किसी ने उनकी बात नहीं सुनी। कमल नाथ और दिग्विजय सिंह का हश्र यह बताने को काफी है कि मध्य प्रदेश के मन पर किस तरह भाजपा का रंग चढ़ा हुआ है।
इसमें कोई शक नहीं कि इन चुनाव नतीजों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विश्वसनीयता का सर्वाधिक योगदान है। इसके बावजूद पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की भूमिका नजरअंदाज नहीं की जा सकती। उनके मुख्यमंत्रित्वकाल की जिस लाड़ली बहना योजना को विधानसभा चुनाव में गेम चेंजर माना गया था, उसका व्यापक प्रभाव लोकसभा चुनाव नतीजों में भी नजर आ रहा है।
इस योजना के तहत राज्य सरकार एक करोड़ तीस लाख महिलाओं को प्रतिमाह 1250 रुपये सम्मान राशि प्रदान करती है। इसी योजना की काट के लिए कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में वादा कर रखा है कि सत्ता में आने पर उसकी सरकार महिलाओं को प्रतिवर्ष एक लाख रुपये देगी। चुनाव नतीजों से स्पष्ट है कि शिवराज सिंह की लाड़ली बहनों और भांजियों ने एक लाख रुपये के लालच में आने के बजाय भाजपा के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना बेहतर समझा। इसके पीछे एक अहम वजह कांग्रेस की अविश्वसनीयता और मोदी-शिवराज के प्रति मजबूत भरोसा भी है। यह साफ नजर आ रहा है कि महिलाओं का समर्थन लोकसभा चुनाव में भी गेम चेंजर साबित हुआ।
महिलाओं के अलावा आदिवासी और किसान वर्ग भी मध्य प्रदेश की चुनावी राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इसे शिवराज सिंह के शासनकाल की अनुकरणीय उपलब्धि माना जाएगा कि उन्होंने अपने संतुलित फैसलों और कार्यशैली से प्रदेश की राजनीति में जातिवाद नहीं पनपने दिया। राहुल गांधी समेत सभी कांग्रेस नेताओं ने मध्य प्रदेश की राजनीतिक दृष्टि से निर्णायक ओबीसी जनसंख्या देखते हुए हर चुनावी सभा में कहा कि वह अपनी सरकार बनते ही जातियों की गणना कराएंगे।
कांग्रेस नेतृत्व को नतीजे देखकर बेहद निराशा हुई होगी कि उनका यह कार्ड मध्य प्रदेश ने सिरे से खारिज कर दिया। नतीजों से स्पष्ट है कि मतदाताओं ने मोदी-शिवराज-मोहन की तिकड़ी पर विश्वास बनाए रखा। इसी प्रकार आदिवासी समाज के लिए केंद्र और प्रदेश सरकार ने जिस तरह अभियान चलाकर सम्मानजनक परिस्थितियां और सहूलियतें पैदा कीं, उससे गुजरात के बाद मध्य प्रदेश दूसरा राज्य है, जहां यह वर्ग आंख मूंदकर भाजपा पर भरोसा करने लगा है।
भाजपा नेतृत्व को इस बात के लिए भी शिवराज सिंह चौहान की पीठ थपथपानी चाहिए कि विधानसभा चुनाव में शानदार सफलता के बावजूद मुख्यमंत्री पद से हटा दिए जाने पर भी उन्होंने अपनी कार्यशैली सकारात्मक रखी और हमेशा की तरह पार्टी के प्रति निष्ठावान एवं समर्पित बने रहे। इस बार वह खुद विदिशा से चुनाव लड़ रहे थे, इसके बावजूद अन्य बड़े नेताओं के विपरीत वह विदिशा से बाहर मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों में चुनाव प्रचार करते रहे।
भाजपा की सफलता की यह कहानी मोहन यादव के जिक्र के बिना अधूरी ही रह जाएगी। उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे छह महीने भी नहीं हुए। जाहिर है, उनसे किसी बड़ी उपलब्धि की अपेक्षा नहीं की जा सकती यद्यपि अपनी संतुलित कार्यशैली और निर्विवाद छवि के बल पर वह भाजपा के प्रति मतदाताओं के विश्वास को बरकरार रखने में सहायक साबित हुए।
उन्होंने भी मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों में चुनावी सभाएं कीं। प्रदेश में भाजपा के क्लीन स्वीप के बाद मोहन यादव संतुष्ट हो सकते हैं कि नेतृत्व ने जिन अपेक्षाओं के साथ उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी थी, उन पर उनकी शुरुआज शुभ साबित हुई। यह तय है कि कुछ दिन बाद भाजपा नेतृत्व लोकसभा चुनाव नतीजों की समीक्षा करने बैठेगा तो उसकी नजर बार-बार मध्य प्रदेश माडल पर जाएगी, जहां विकास और लोकप्रिय फैसलों की जुगलबंदी ने करिश्मा कर दिया।