Madhya Pradesh Diary: डा. जितेंद्र व्यास, इनपुट एडिटर, इंदौर। कुछ हफ्ते पहले मध्य प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में जनता ने भाजपा की प्रचंड जीत को देखा। इसके बाद भाजपा ने भी बदलाव की बयार को अंगीकार कर पीढ़ी परिवर्तन की राह पर कदम बढ़ा दिए। तमाम कयास, अनुमान और आकलन को पीछे छोड़कर महाकाल की नगरी उज्जैन से विधायक डा.मोहन यादव को सूबे का नया ‘सरदार’ बनाया गया।
दो उपमुख्यमंत्रियों के साथ शपथ लेते ही नए मुख्यमंत्री ने जिन तेवरों के साथ प्रदेश की नई सरकार की तस्वीर पेश की, उसने प्रदेश की जनता के मन में उम्मीद की नई किरण जगाई है। बरसों-बरस से कागजों पर ही मौजूदगी दर्शा रहे ध्वनि प्रदूषण पर रोक और खुले में मांस बिक्री पर प्रतिबंध के आदेश कुछ घंटों में ही जमीन पर उतर आए।
जन के लिए तंत्र को मैदान में तुरंत उतारकर समस्या के त्वरित निराकरण की यह शैली अच्छी है, लेकिन इस शुरुआत को अंजाम तक पहुंचने के लिए लंबा रास्ता पार करना होगा। पूरी तस्वीर बदलने के लिए अभी जिम्मेदारों को और अधिक जवाबदेह बनाना होगा। वर्ष 2003 के बाद से यदि कांग्रेस का डेढ़ वर्ष का शासनकाल छोड़ दिया जाए तो 2023 तक भाजपा ही सत्तासीन रही है।
इस दौर में निश्चित ही मध्य प्रदेश ने विकास की नई ऊंचाइयों को छुआ भी है। इस बार फिर प्रदेश की जनता ने भाजपा को चुनकर प्रदेश की तस्वीर बदलने के लिए पांच वर्ष दे दिए हैं। नई सरकार से अब प्रदेश की जनता को जो कुछ मिल रहा है उससे कहीं ’अधिक‘ देने की ओर बढ़ना होगा। प्रदेश के नागरिकों को आगे बढ़ने के अवसर और मूलभूत सुविधाएं कैसे मिलें, यह सुनिश्चित भी करना होगा।
दरअसल सुशासन के मंत्र को आत्मसात कर आगे बढ़ती भाजपा सरकार को इस बात पर गहराई से ध्यान देना होगा कि योजनाओं और घोषणाओं से परे आमजन की छोटी-छोटी समस्याओं के निराकरण की समयावधि कितनी है। जो नियम सरकार ने बनाए हैं, उनका लाभ आमजन को मिल भी पा रहा है या नहीं। नियमों के पालन करवाने के लिए जिम्मेदार तंत्र उसके प्रति कितना सजग है।
ध्वनि विस्तारक यंत्र के कभी भी कहीं भी इस्तेमाल पर रोक लगाने संबंधी आदेश तो हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट द्वारा बीते वर्षों में दिए जा चुके थे, लेकिन इनका पालन करवाने की इच्छाशक्ति नहीं होने की वजह से जनता अब तक ध्वनि प्रदूषण की पीड़ा भोग रही थी।
नई सरकार ने इच्छाशक्ति दिखाई वैसे ही जनता को राहत मिलना शुरू हो गई। जन की ऐसी कई आकांक्षाएं-समस्याएं हैं, जो अगले पांच वर्ष में वे नई सरकार के माध्यम से हल होते या पूरा होते देखना चाहते हैं। सड़क-बिजली-पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं से अब भी आलीराजपुर और बड़वानी जिले के दर्जनों गांव वंचित हैं। सुविधाएं धीरे-धीरे अंतिम व्यक्ति तक पहुंच भी रही हैं, लेकिन इसकी गति सही रहे और विस्तार सही तरीके से हो इसकी निगरानी बेहद जरूरी है।
प्रदेश के बड़े शहरों के फ्लायओवर से लेकर गांव की छोटी सड़कों तक निर्माण कार्य तो हो रहे हैं, लेकिन ये तय समय सीमा में हों और आमजन इस वजह से परेशानी नहीं भोगे, इसकी चिंता भी नई सरकार को करनी होगी। भाजपा ने अपने घोषणापत्र में इंदौर और भोपाल के बाद ग्वालियर और जबलपुर में भी पुलिस कमिश्नरी सिस्टम लागू करने की बात कही है।
नए शहरों को इस सिस्टम से जोड़ने के बजाय पहले इंदौर-भोपाल में पुलिस कमिश्नरी की सभी बिंदुओं के साथ पड़ताल करना आवश्यक है। क्या इन शहरों में कानून व्यवस्था अधिक जवाबदेह और बेहतर हुई है? क्या पुलिस कमिश्नरी अपने तय मानकों के साथ संचालित हो पा रही है? क्या पर्याप्त बल और शक्तियां इस नए सिस्टम को प्राप्त हैं? जैसे सवाल अब भी अनसुलझे ही हैं। स्वास्थ्य सुविधाओं को संतोषजनक स्थिति तक लाने में भी अभी लंबा रास्ता तय करना होगा।
मेडिकल कालेजों में सीटें बढ़ाने, नए मेडिकल कालेज खोलने और हर संभाग में मध्य प्रदेश इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंस खोलने की घोषणाएं अपनी जगह है लेकिन वर्तमान सेवाओं में आवश्यक दवाओं की कमी और अस्पताल में डाक्टरों की उपलब्धता सुनिश्चित करना इस क्षेत्र की सबसे बड़ी मांग है। इस क्षेत्र को ये दो कदम ही बहुत बड़ी राहत दे सकते हैं।
किसी भी प्रदेश की प्रगतिशील अर्थव्यवस्था में औद्योगिक विकास का बड़ा योगदान होता है। मध्य प्रदेश में बड़े उद्योगों की स्थिति तो अपेक्षाकृत बेहतर हुई है, लेकिन लघु और मध्यम उद्योग का क्षेत्र अब भी संघर्ष करता नजर आता है। बीते पांच वर्षों में यह क्षेत्र नीति और नियमों में अपेक्षित सुधार की मांग करता रहा है।
नई सरकार के समक्ष इस क्षेत्र को कैसे अधिक सुविधा संपन्न बनाया जाए यह चुनौती भी होगी ही। नए एमएसएमई क्लस्टर के निर्माण की घोषणाओं को पूरा करने की कवायद तेजी से करनी होगी, लेकिन इसके साथ ही वर्तमान में संचालित हो रहे क्लस्टर की परेशानियों को दूर करने के साथ मध्य प्रदेश की वे नीतियां जो पड़ोसी राज्यों की तुलना में कम उद्योग हितैषी हैं, उन पर विचार करना होगा। महंगी बिजली और अनुमतियों के लिए इंतजार जैसी समस्याओं से जल्द पार पाना होगा। नए मुख्यमंत्री डा. यादव पिछली भाजपा सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री रहे हैं। शिक्षा का परिदृश्य उनके समक्ष है ही।
शिक्षा जगत रोजगारोन्मुखी शिक्षा के साथ ही निजी संस्थानों को अधिक जवाबदेह बनाने की पहल के लिए उनकी ओर देख रहा है। निजी स्कूलों में लगातार महंगी हो रही शिक्षा को लेकर भी कई बार फीस नियामक अयोग बनाने और कोई तंत्र विकसित करने की बातें हुई हैं, लेकिन वे अमल में नहीं लाई जा सकीं।
समाज का एक बड़ा वर्ग इस राहत के लिए नई सरकार की ओर टकटकी लगाए देख रहा है। जनता ने प्रचंड बहुमत देकर लोकतंत्र में अपनी सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी का निर्वहन कर दिया है। अब गेंद नई सरकार के पाले में है। लोग उम्मीद लगाए हैं और इंतजार कर रहे हैं कि इस बार नई सरकार उन सब बाधाओं को दूर कर देगी जो आमजन के आगे बढ़ने की राह किसी न किसी माध्यम से रोकती हैं। शुरुआत तो अच्छी है ‘सरकार’ बस अब यह तस्वीर भी बदलनी चाहिए।