प्रसंगवश : सद्गुरु शरण
Swachh Survekshan 2023 इंदौर। सफलता की असली कसौटी निरंतरता होती है। स्वच्छता के सातवें आसमान को स्पर्श करके इंदौर ने दुनिया को बता दिया कि स्वच्छता उसका संस्कार बन चुका है। लगातार सातवीं बार स्वच्छतम शहर का गर्व-मुकुट धारण करने के बाद इंदौर पूरे देश के लिए स्वच्छता का ऐसा तीर्थ स्थल बन गया है जहां माथा नवाकर अन्य राज्य स्वच्छता का संस्कार सीखना चाहेंगे।
देवी अहिल्या की यह नगरी आदिकाल से अपने पुरुषार्थ, पराक्रम, उद्यम और राष्ट्रभक्ति के लिए विख्यात है। इतिहास के पन्ने पलटिए तो देश के हर गर्व में इंदौर सीना तान कर खड़ा मिलता है यद्यपि स्वच्छता के क्षेत्र में इस नगर की सफलता की कहानी क्रांतिकारी और असाधारण है। सात-आठ वर्ष पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वच्छ भारत का जो सपना देखा था, उसे सार्थक और साकार बनाने में इंदौर की भूमिका सदैव स्वर्णाक्षरों में जगमगाती रहेगी।
किसी भी अन्य शहर की तरह इंदौर के लिए यह उपलब्धि कतई आसान नहीं थी। वर्ष 2016 से पूर्व इंदौर में गंदगी के वे सारे लक्षण मौजूद थे जो अधिकतर अन्य शहरों में मिलते हैं। बहरहाल, इस मोड़ पर शहर ने अंगड़ाई ली और अपने चमत्कार से सबको चौंका दिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी यूं ही इंदौर पर अपनापन नहीं लुटाते। उन्हें इस शहर पर गर्व होना स्वाभाविक है। वह अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इंदौर की स्वच्छता के पीछे खड़ी जनभागीदारी और नागरिक संकल्पशक्ति का जिक्र करते हैं।
इंदौर ने देश को यह संदेश भी दिया कि आमतौर पर एक-दूसरे के प्रति नकारात्मक धारणा रखने वाले नागरिक और शासकीय तंत्र एकजुट हो जाएं तो कैसा चमत्कार किया जा सकता है। और हां ... इंदौरियों ने अपने शालीन स्वभाव के अनुरूप सफाई कर्मियों के साथ स्वच्छता मित्र और स्वच्छता दीदी का रिश्ता जोड़कर उन्हें न सिर्फ सम्मान दिया बल्कि अपने परिवारजन जैसा दर्जा देकर पूरे देश को संदेश भी दिया कि स्वच्छता की उपलब्धि में तमाम नवाचार और प्रयास एक तरफ है जबकि स्वच्छता कर्मियों का योगदान सर्वोपरि। गर्मी, सर्दी और बारिश के बीच देर रात सफाई कर्मियों को अपनी भूमिका निभाते देखकर उनके प्रति श्रद्धा पैदा होती है।
स्वच्छता समेत कई अन्य क्षेत्रों में शीर्ष पर विराजमान इंदौर के सामने देश का रहने लायक श्रेष्ठतम शहर बनने की चुनौती विद्यमान है यद्यपि यहां के दृढ़ संकल्पी नागरिक ठान लें तो उनके लिए यह असंभव नहीं। यहां आने वाले पर्यटक स्वच्छता के साथ-साथ यहां के खान-पान, शिष्टाचार और सांस्कृतिक समृद्धि से बेहद प्रभावित होते हैं, इसके बावजूद वे शिकायत करते हैं कि दिल्ली, चंडीगढ़, लखनऊ, पुणे, यहां तक कि भोपाल के मुकाबले इंदौर में हरियाली कम है।
इसी प्रकार इंदौर की साफ-सुथरी सड़कों पर सफर अपेक्षानुसार सुकून नहीं देता क्योंकि सड़क के कायदे-कानून निभाने में इंदौरियों का नागरिक-बोध कमजोर नजर आता है। युवाओं में नशाखोरी की अधिकता नई चुनौती है जो शहर की संस्कृति एवं प्रकृति से कतई मेल नहीं खाती। जाहिर है कि इंदौरियों के लिए स्वच्छता से आगे कई अन्य मंजिलें बाकी हैं जहां पहुंचकर ही देवी अहिल्या की नगरी देश में रहने के लिए श्रेष्ठतम स्थान बन सकती है।
इंदौर जैसे-जैसे श्रेष्ठता की ओर बढ़ेगा, शहर में मध्य प्रदेश और देश के अन्य अंचलों से आकर बसने वालों की संख्या बढ़ती जाएगी। इनके लिए न सिर्फ सरकार और प्रशासन को नागरिक सुविधाओं का प्रबंध करना होगा बल्कि इंदौरियों को भी अपनी परंपरा के अनुरूप 'वसुधैव कुटुम्बकम' का भाव प्रबल रखना होगा।