चंद्रयान 3 की सफलता न केवल देश में बल्कि पूरी दुनिया में एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। इसरो के वैज्ञानिकों द्वारा लगातार अनुसंधान से आज भारत चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला पहला देश बन गया है। हमारे वैज्ञानिकों ने हमेशा देश का परचम लहराया है चाहे बात चांद पर पहले पानी की खोज हो या दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने की। भारत स्पेस टेक्नोलॉजी में आगे बढ़ रहा है। इसरो की स्थापना से लेकर चंद्रयान 3 के इतिहास रचने तक का सफर, भारत की स्पेस इकोनॉमी और इसरो के भावी प्रोजेक्ट्स जिसमें स्पेस स्टेशन बनाने से लेकर आदित्य-एल 1 और गगनयान शामिल है इन सभी विषयों पर चर्चा के लिए Journalist Prerna Kumari के साथ इसरो के साइंटिस्ट Jitendra Sharma(ISRO) है। वैज्ञानिक जितेन्द्र शर्मा पिछले 20 वर्षों से इसरो में कार्यरत हैं और इन्होंने चंद्रयान, चंद्रयान-2, चंद्रयान-3 और मंगलयान जैसे प्रोजेक्ट्स पर काम किया है।
इन्होंने बताया कि, भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का इतिहास मुख्यतः 1969 से शुरू होता है। इस वर्ष 15 अगस्त को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की स्थापना हुई। इसरो के गठन से भी पहले 20 जुलाई 1969 को ही अमेरिका के दो अंतरिक्ष यात्रा चांद पर कदम रख चुके थे। दूसरी तरफ रूस (तत्कालीन सोवियत संघ) भी सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में इंसान को भेज चुका था। इस तरह जब दुनिया चांद पर लोगों को भेज चुकी थी, हमने आसमान की तरफ पहला कदम उठाने का फैसला लिया।
इस तरह चांद पर किसी मानव का पहला कदम यदि मानवता के लिए बड़ी छलांग है तो चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग इसरो के लिए नहीं बल्कि पूरे भारत और भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र के लिए लंबी छलांग है। पूरा देश जिस तरह चंद्रयान-3 की पल-पल की खबर जानने के लिए उत्सुक है और जिस तरह चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के लिए पूरे देश में प्रार्थनाएं की गईं, यह इसी बात का प्रमाण है कि भारत के लिए यह कमोबेश उतनी ही बड़ी उपलब्धि है जितनी बड़ी उपलब्धि दुनिया के लिए चांद पर किसी व्यक्ति का पहुंचना था।
अगर चंद्रयान-2 असफलता की बात करें तो सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि अंतरिक्ष बेहद अबूझ और अनिश्चित है। ऐसे में सिस्टम या सॉफ्टवेयर में हल्की सी भी गड़बड़ी पूरे मिशन के लिए घातक हो सकती है। चाहे अंतरिक्ष के उपग्रह हों या मानव को अंतरिक्ष में भेजना हो, रूस (तत्कालीन सोवियत संघ) अंतरिक्ष क्षेत्र में उतरने वाला पहला देश है। रूस चंद्रमा के अन्वेषण के लिए अब तक 24 मिशन भेज चुका है, फिर भी उनका चंद्रमा का 25वां मिशन लूना-25 असफल रहा। चंद्रयान-2 बेहद महत्वाकांक्षी मिशन था।
इसमें ऑर्बिटर और लैंडर दोनों का प्रावधान था। इसके आर्बिटर में दुनिया का सबसे बेहतर ऑप्टिकल रिजोल्यूशन कैमरा, स्टीरियो इमेजिंग क्षमता और इन्फ्रा रेड इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर जैसे उपकरण इंस्टाल किए गए। यह मिशन पूरा होने के बेहद करीब जाकर संभवतः सॉफ्टवेयर ग्लिच और कुछ पैरामीटर्ज़ पूरे नहीं होने के कारण अपने लक्ष्य पूरे करने में असफल रहा।
चंद्रयान-2 की असफलता से भी इसरो को कई महत्वपूर्ण जानकारियां मिली। इसके बाद दो वर्ष तक इस मिशन से प्राप्त डेटा का विश्लेषण किया गया, विभिन्न तरह के सिमुलेशन किए गए और खामियों को दुरुस्त किया गया। इसके बाद 2 वर्ष तक नए सिस्टम को बनाने और इनसे संबंधित परीक्षण करने में लगे। इस तरह चंद्रयान-2 के बाद इसरो को चंद्रयान-3 लॉन्च करने में 4 वर्ष लगे।
चंद्रयान-3 आत्मनिर्भर भारत का प्रतीक है। अंतरिक्ष हो या कोई अन्य क्षेत्र, कोई भी देश दूसरे देश को अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी ट्रांसफर नहीं करता है। दूसरे देशों को वही प्रौद्योगिकी ट्रांसफर की जाती है जो रणनीतिक-सामरिक रूप से महत्वपूर्ण नहीं हो या आम तौर पर प्रचलित हो गई हो। इसके अलावा राजनीतिक और कूटनीतिक कारणों से महत्वपूर्ण सिस्टम्स और उपकरणों की आपूर्ति रोकी जा सकती है। चंद्रयान-3 का रोवर मेक इन इंडिया है। इससे अंतरिक्ष क्षेत्र में सशक्त भारतीय इकोसिस्टम बनने की संभावनाएं पैदा हुई हैं और इसरो एवं औद्योगिक क्षेत्र में मजबूत जुड़ाव से इसमें और भी तेजी आएगी।
चंद्रयान के बाद गगनयान इसरो का अगला महत्वपूर्ण मिशन है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2018 में घोषणा की थी कि भारत अंतरिक्ष में मानव को भेजेगा। इसके लिए तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। गगनयान में चूंकि मानवीय जिंदगी शामिल है, इसलिए इसमें गलती की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी जा सकती। इसरो ने हाल ही में चंडीगढ़ में इस मिशन से संबंधित ड्रोग पैराशूट परीक्षण पूरे किए ताकि चालक दल मॉड्यूल के धरती पर वापस आने के दौरान इसकी गति कम की जा सके। लॉन्च मॉड्यल को मानव अनुकूल बनाया जा रहा है।
इसके अलावा अंतरिक्ष यात्रियों को स्पेस में भेजने से पहले दो बार रोबोट्स को स्पेस में भेजा जाएगा ताकि वहां के परिवेश, रेडिएशन्स और भारहीनता आदि के मानवीय शरीर पर असर का परीक्षण किया जा सके। गगनयान के साथ ही सूर्य के अध्ययन के लिए आदित्य एल 1 मिशन भी भेजा जाएगा। इसे सितंबर में लॉन्च किया जाएगा। यह मिशन लाग्रेंज प्वाइंट तक जाएगा। लाग्रेंज पृथ्वी और सूर्य के बीच ऐसी जगह है जहां दोनों का गुरुत्वाकर्षण बल समतुल्य होता है। इससे सेटेलाइट को बेहद कम ऊर्जा खपत के साथ ही वहां रखा जा सकता है।
इसरो की अंतरिक्ष में अपना स्पेस स्टेशन स्थापित करने की भी योजना है। आज अंतरिक्ष क्षेत्र के नासा जैसे बड़े संगठन भारत का सहयोग नहीं कर रहे बल्कि साथ मिलकर काम कर रहे हैं। दोनों संगठन मिलकर एनआईएसएआर परियोजना पर साथ मिलकर काम रहे हैं। इस परियोजना में सिन्थेटिक अपर्चर रडार समुद्र तल बढ़ोतरी, भूजल में बदलावों सहित भूकंप-सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाओं का अध्ययन करेगा।
कुछ लोग भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की आलोचना करते हैं कि भारत जैसे देश को अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर पैसे खर्च करने के बजाय गरीबी हटाने और विकास कार्यों पर पैसे खर्च करने चाहिए। ऐसे आलोचक अंतरिक्ष क्षेत्र के आर्थिक लाभों की अनदेखी करते हैं।
आज भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था चार प्रतिशत की दर से बढ़ रही है जबकि वैश्विक स्तर पर यह आंकड़ा दो प्रतिशत है। पिछले दो दशकों में इसरो ने 34 देशों के 381 उपग्रह प्रक्षेपित किए है। यह आंकड़ा इसरो और भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान की सफलता का प्रमाण है। आने वाले समय में भारत में अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी और विदेशी निवेश बढ़ेगा जिससे रोजगार और देश की आय दोनों में बढ़ोतरी होगी।
प्रेरणा कुमारी