मंत्रों का पाठ किया तो दूर हो गई बचपन से हकलाने की लत
बस स्टूडेंट के बेहतर भविष्य के लिए प्रयास किया और मां सरस्वती ने बच्ची का कंठ खोल दिया।
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Publish Date: Wed, 21 Feb 2018 03:57:29 AM (IST)
Updated Date: Wed, 21 Feb 2018 11:04:50 AM (IST)
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता। या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता। सा माम् पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा।
संस्कृत के इस मंत्र को बोलकर मां सरस्वती देवी की पूजा-प्रार्थना की जाती है। कुछ ऐसा ही दसवीं की छात्रा भावना राजवाड़े के जीवन में हुआ। इससे बचपन से हकलाने की आदत से छुटकारा ही नहीं मिला, बल्कि सामान्य छात्राओं की तरह वे बोलचाल कर रही हैं। वहीं भावना सहित पूरा परिवार इसके लिए स्कूल की संस्कृत शिक्षिका चंचल सिंह को आभार मानती है।
सरस्वती मंत्र को रोज पढ़ाया
शासकीय उच्चतर माध्यमिक स्कूल (सरगुजा ) में पढ़ा रही संस्कृत शिक्षिका चंचल सिंह ने बताया कि 9वीं क्लास में स्टूडेंट्स भावना के बारे में जानकारी हुई। इसके बाद रोज क्लास में स्टूडेंट्स को या कुन्देन्दुतुषारहारधवला ...सरस्वती देवी के मंत्रों को पढ़ाती थी, क्योंकि मैंने कहीं पढ़ा थी कि संस्कृत के मंत्रों का रोज उच्चारण करने से गले का स्वर खुलने के साथ शाब्दिक उच्चारणों में शुद्घता आती है। बस स्टूडेंट के बेहतर भविष्य के लिए प्रयास किया और मां सरस्वती ने बच्ची का कंठ खोल दिया।
संस्कृत सिर्फ भाषा नहीं
सभी भाषाओं की जननी कही जाने वाली संस्कृत को सिर्फ भाषा समझना उचित नहीं है। संस्कृत विद्यामंडलम बोर्ड के अध्यक्ष स्वामी परमात्मानंद का कहना है कि स्टूडेंट् भावना जैसे कई लोगों को हकलाने जैसे आदत से छुटकारा मिला है। वहीं स्पेस के साथ संस्कृत को पाठ करने से हृदय रोग होने के लक्षण कम होते है। इसलिए बोर्ड के माध्यम विभिन्न जिलों में संस्कृत संभाषण शुरू किया गया है। जिसके बेहतर परिणाम आ रहे है।