राजकुमार धर द्विवेदी, रायपुर। Raipur Weekley Column Duniya ki goth
होली का रंग करें गाढ़ा
होली में तन के साथ मन का रंग-युक्त होना बहुत जरूरी है। आज प्रेम का रंग फीका पड़ता जा रहा है। घर, परिवार, समाज और देश में प्रेम के रंग को गाढ़ा करना है। प्रेम को नफरत ने बुरी तरह सता रखा है। इस होली में नफरत को जलाने का संकल्प लें। संगीतमय फाग की ऐसी स्वर लहरी गूंजे कि नफरत की आग भड़कने ही न पाए। वह सुलगे भी नहीं। प्राय: कुछ लोग होली में उत्पात मचाते हैं और हंसी-खुशी की जगह मातम छा जाता है। उस स्थिति से बचने के लिए लोग सजग रहें, प्रशासन भी सक्रिय रहे। अपराधी-प्रवृत्ति के लोगों को पहले ही ठिकाने लगा दिया जाए, ताकि वे रंग में भंग न कर सकें। दो साल कोरोना ने रुलाया। होली खेलते समय यह ख्याल रखें कि कोरोना की वापसी न होने पाए। शारीरिक दूरी बनी रहे। उम्मीद की जानी चाहिए कि सभी की होली आनंदपूर्ण होगी।
जीवन संवारें, उसे खत्म न करें
राज्य में आत्महत्या की घटनाएं बढ़ी हैं, जिन्हें पढ़-सुनकर अत्यंत दुख होता है। माना कि जीवन में अनेक समस्याएं हैं, लेकिन उनका निदान भी है। ताला है तो उसे खोलने और बंद करने के लिए उसकी कुंजी भी है। समस्याओं से विचलित होकर मौत को गले नहीं लगाना चाहिए। यह मनुष्य तन बड़े भाग्य से मिला है। इसे व्यर्थ न गंवाएं। ऐसा कोई मनुष्य नहीं है, जिसके जीवन में समस्या न हो। लेकिन जो लोग बुरे वक्त में समझदारी से काम लेते हैं, वे समस्याओं से उबर जाते हैं। जान देने से कुछ नहीं मिलेगा, बल्कि घर-परिवार को असहनीय कष्ट सहना पड़ेगा। कोई घर का मुखिया अगर जान दे देता है तो उसका परिवार बिखर जाता है। अगर कोई संतान आत्महत्या कर लेती है तो घर में अंधेरा छा जाता है। अपने जीवन को सुखमय और अनुकरणीय बनाएं, मन को मजबूत रखें। किसी भी हालत में आत्मघाती कदम न उठाएं।
अच्छी पुस्तक का साथ
अच्छी पुस्तकें अवश्य पढ़ें। पुस्तकों से आत्म-सुधार होता है, मन प्रसन्न होता है। बीती रात मेरी नींद अचानक खुल गई। कई समस्याओं को लेकर मन बेचैन था। उसी दौरान कमरे में एक पुस्तक दिखाई पड़ गई- 'अतीत की समाधि।" पुस्तक के लेखक दलेर चावला हैं। पुस्तक में उनके संस्मरण हैं। राष्ट्र-विभाजन से लेकर आपातकाल, 1984 के दंगों से उनके परिवार को कितने कष्ट उठाने पड़े, यह पढ़कर मुझे अपनी समस्याएं बहुत ही छोटी लगीं। उनके संस्मरण पढ़कर जीवन में बाधाओं को परास्त कर आगे बढ़ने का रास्ता मिला। मन इस तरह रमा कि सुबह पांच बजे तक यह पुस्तक पढ़ता रहा। सेवा, सहयोग, मित्रता, प्रेम विषयक संस्मरण हृदय स्पर्शी लगे। ईमानदारी और मेहनत की भी सीख मिली। अगर बीती रात इस पुस्तक का साथ न मिलता तो व्यर्थ की चिंता में समय बर्बाद होता, नींद खराब होती, दिन भी व्यर्थ बीतता। सच कहा गया है कि पुस्तकें सच्ची दोस्त हैं।
भविष्य में न चूकें, पाएं मंजिल
ट्रेनों की लेटलतीफी पर विराम न लगने से यात्रियों को बड़ी परेशानी हो रही है। लंबे समय से यह समस्या बनी हुई है, जो खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। पिछले दिनों इस समस्या के चलते कई युवा न्यायाधीश की परीक्षा से वंचित रह गए। ट्रेनें लेट होने के कारण वे समय से रायपुर नहीं पहुंच पाए और परीक्षा से चूक गए। एक सुनहरा अवसर उनके हाथ से निकल गया। यह अत्यंत दुखद है। लेकिन इन युवाओं के साथ-साथ सभी को यह सीख लेनी चाहिए कि अगर किसी आवश्यक काम से निकलें तो एक दिन पहले नियत स्थल पर पहुंचें। जब इन युवाओं को पता था कि ट्रेनों की लेटलतीफी चल रही है तो ऐसा समय-प्रबंधन करना था कि एक दिन पहले पहुंच जाते। तब सुनहरा अवसर न चूकने पाता। इसमें गलती उनकी भी है। उसे स्वीकारें और भविष्य में सचेत रहें। आत्म-सुधार से मंजिल अवश्य ही मिलेगी।