रायपुर। Padmashree award 2023 गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्म पुरस्कार विजेताओं के नामों की घोषणा की गई है। छत्तीसगढ़ से तीन कलाकारों को पद्मश्री के लिए चुना गया है। बालोद जिले के नाचा कलाकार डोमार सिंह कुंवर और कांकेर जिले के काष्ठ शिल्पी अजय कुमार मंडावी और दुर्ग की अंतरराष्ट्रीय पंथी व पंडवानी गायिका ऊषा बारले को यह सम्मान मिलेगा।
पंडवानी गायिका ऊषा बारले
पंडवानी गायिका ऊषा बारले का 2 मई 1968 को भिलाई में जन्म हुआ। माता श्रीमती धनमत बाई पिता स्व. खाम सिंह जांगड़े है। विवाह अमरदास बारले के साथ बाल विवाह 1971 में हुआ। उन्होंने सात वर्ष की उम्र में गुरू मेहत्तरदास बघेलजी से पंडवानी गायन की शिक्षा ली। उन्होंने अपना पहला कार्यक्रम भिलाई खुर्सीपार में दिया। फिर धीरे-धीरे भिलाई स्टील प्लांट के सामुदायिक विभाग के लोक महोत्सव से 1975 में भाग लिया जो आज तक जारी है। पदम् विभूषण डा. तीजन बाई से प्रशिक्षण लिया। तपोभूमि गिरौदपुरी धाम में स्वर्ण पदक से 6 बार सम्मानित किया गया। उनकी अंतिम इच्छा है कि मंच पर पंडवानी गायन करते हुए उनके प्राण जाए। बता दें उनकी अपनी संस्था द्वारा सेक्टर 1 भिलाई में निश्शुल्क पंडवानी प्रशिक्षण दिया जाता है। छत्तीसगढ़ के अलावा न्यूयार्क, लंदन, जापान में भी पंडवानी गायन कर चुकी है।
नाचा कलाकार डोमार सिंह कुंवर
75 वर्षीय नाचा कलाकार डोमार सिंह कुंवर बालोद जिले के ग्राम लाटाबोड़ के रहने वाले हैं। उन्होंने पिछले पांच दशकों से नाचा की परंपरा को जीवित रखने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है। उनके नाटक की छत्तीसगढ़ सहित देशभर में 5,000 से अधिक प्रस्तुति हो चुकी है। वे अपने नाटकों के माध्यम से अंधविश्वास और बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियों को खत्म करने के बारे में जागरूकता फैलाते हैं। इस बेहतर कार्य के लिए राज्य शासन, संस्कृति विभाग व जिला प्रशासन सहित विभिन्न सामाजिक व सांस्कृतिक एवं धार्मिक संगठन कलाकार डोमार सिंह का सम्मान भी कर चुके हैं।
उन्होंने 12 साल की उम्र में पहली बार मंच पर प्रस्तुति दी थी। तभी से नाचा व गम्मत की प्रस्तुति कर रहे है। वे नाचा गम्मत की प्रस्तुति के साथ ही 150 से ज्यादा प्रेरणाप्रद गीत भी लिख चुके हैं। इसके अलावा मन के बात मन म रहिगे जैसी तीन छत्तीसगढ़ी फिल्म का निर्माण और उसमें काम कर चुके हैं। इनके लिखे गाने की प्रस्तुति आकाशवाणी एवं नाचा का प्रसारण बीबीसी लंदन से भी प्रसारित हुआ था।
काष्ठ शिल्पी अजय कुमार मंडावी
वहीं, कांकेर जिले से सटे ग्राम गोविंदपुर निवासी काष्ठ शिल्पी अजय कुमार मंडावी का पूरा परिवार किसी न किसी कला से जुड़ा है। यूं कहें कि कला उन्हें विरासत में मिली। शिक्षक पिता आरपी मंडावी मिट्टी की मूर्तियां बनाते हैं जबकि मां सरोज मंडावी की रुचि पेंटिंग में है। भाई विजय मंडावी अच्छे अभिनेता व मंच संचालक हैं।
मंडावी ऐसे कलाकार हैं, जो अपनी कला के जरिए देश के लिए नासूर बनी नक्सलवादी विचारधारा रखने वाले लोगों के विचारों में परिवर्तन ला रहे हैं। जिला जेल के करीब दो सौ ऐसे बंदियों को उन्होंने काष्ठ शिल्प में पारंगत किया है, जो कभी नक्सली थे। कई नक्सली अपनी सजा खत्म होने के बाद उनकी सिखाई कला की बदौलत ही आज समाज में सम्मान की जिंदगी जी रहे हैं। अजय ने कई धार्मिक ग्रंथों के साथ ही हरिवंशराय बधान की अमर कृति मधुशाला को भी काष्ठ पर जीवंत किया है। उनके पास कई अमूल्य कृतियां हैं। अजय की कलाकृति पर राज्य सरकार ने वर्ष 2006 में स्टेट अवार्ड प्रदान किया है।