रायपुर। Raipur Local Edit: कभी नक्सली हिंसा के लिए बदनाम रहे दंडकारण्य इलाके में लाल आतंक का किला दरक चुका है। बीते दो साल में तीन बड़े कमांडरों की मौत से नक्सल संगठन बिखरने के कगार पर पहुंच चुका है। बस्तर के कम पढ़े-लिखे युवाओं को बरगलाकर बंदूक थमाने वाले नक्सल नेता खुद को बुद्धिजीवी वर्ग का बताते रहे हैं। ये सभी हाशिए पर पड़ी जनता के स्वास्थ्य, शिक्षा व अन्य बुनियादी सुविधाओं के विकास के लिए आवाज बन सकते थे, परंतु जनता को वर्ग-संघर्ष की थोथी परिकल्पना में उलझाकर मौत बांटने में लग गए। अब उनके खुद के हिस्से भी गुमनाम मौत ही आ रही है। बड़े नक्सल नेता मुठभेड़ में सामने नहीं होते।
बीते साल दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के सचिव रमन्ना की मौत सुकमा के जंगल में हुई। गंभीर बीमारी के वक्त उसे डाक्टरी मदद व दवाइयां तक नहीं मिल पाईं। नक्सलियों के संचार विभाग के प्रमुख हरिभूषण की मौत भी ऐसे ही हुई थी। अब रामकृष्ण उर्फ अक्कीराजू, हरगोपाल की मौत के बाद नक्सलवाद की कमर टूट चुकी है। रामकृष्ण, रमन्नाा व हरिभूषण जैसे नक्सल कमांडर अपने साथ तीन स्तर का सुरक्षा घेरा और लड़ाकों की कम से कम एक कंपनी साथ लेकर चलते हैं। मौत फिर भी पीछा नहीं छोड़ती।
अक्की हरगोपाल ने आंध्र, ओडिशा के सीमाई इलाकों में संगठन का विस्तार किया। जिस व्यक्ति पर एक करोड़ का इनाम था और हमेशा सुरक्षा के घेरे में रहता था, जिसे पुलिस व सुरक्षा एजेंसियां छू तक न पाईं, वह महज 57 साल की उम्र में बीमारी के कारण मारा गया। जिन इलाकों में नक्सलियों का प्रभाव है, वहां बुनियादी सुविधाएं न के बराबर हैं। नक्सली सड़क बनने नहीं देते हैं तो अस्पताल कैसे खुलें? स्वास्थ्यकर्मी अंदरूनी इलाकों तक नहीं पहुंच पाते हैं।
नक्सल कमांडर सप्लाई चेन के जरिए अपने लिए दवा व अन्य सामान मंगाया करते थे, पर अब उनकी सप्लाई चेन को भी पुलिस ने तोड़ दिया है। दवा की जगह जवान कब पहुंच जाएंगे, कोई ठिकाना नहीं है। ऐसे अविश्वास के माहौल में दर्द से कराहते बीमार नक्सलियों को कोई मदद नहीं मिल पा रही है। कोरोना की दूसरी लहर में खबरें आईं कि बस्तर के नक्सलियों को कोरोना से मरने के लिए छोड़ दिया गया है, जबकि आंध्र प्रदेश के नक्सल नेता बड़े शहरों में जाकर इलाज करा रहे हैं।
जिंदगीभर पुलिस व सरकार से छिपने का क्या फायदा? बीमारी व मौत से कोई बच नहीं सकता, यह बात नक्सल नेताओं को समझनी होगी। अपने ही लोगों का खून बहाने से कोई क्रांति नहीं होगी। जो दावा करते हैं कि उनके पास समाज की बेहतरी के विचार हैं, वे देश की तरक्की के लिए सामने आएं और समाज को मुख्यधारा से जोड़ने में सहयोग करें।