रायपुर (नईदुनिया प्रतिनिधि)। Naiduniya Gurukul: भारतीय ज्ञान परम्परा संस्कृति सभ्यता, शिक्षा के साथ-साथ कर्तव्य बोध की सजग प्रहरी रही है। शिक्षा का मूल मंत्र ही है अपने कर्तव्यों का पालन करना। कर्तव्य चाहे अपने देश के प्रति हो, समाज के प्रति हाें अथवा सम्पूर्ण मानवता के लिये हो उनका निर्वहन पूरी ईमानदारी और जिम्मेदारी से होना चाहिये। हमारे संविधान में भी मौलिक अधिकारों से पहले मौलिक कर्तव्यों की बात लिखी हुई है। ये बातें रायपुर के ज्ञान गंगा स्कूल की प्राचार्या प्रतिमा राजगौर ने कहीं।
सार्वजनिक सम्पत्तियाें की बात हो, प्रकृति के दोहन की बात हो सभी में ईमान दारी की आवश्यकता है। सभी देशवासी अपने दायित्वाें का निर्वहन पूरी ईमानदारी से करने लगे तो देश में भ्रष्टाचार रूपी दीमक का नाश हो जायोगा जो हमारे विकास पथ का सबसे बड़ा रोड़ा है। गांधी जी ने सादगी का नारा सिर्फ दिया नहीं था, बल्कि उसे अपने जीवन में अपनाया भी था। कपड़े कम इसलिये पहनते थे, ताकि शेष हिस्सा किसी गरीब के काम आ सके।
सामाजिक जीवन में हमें हमेशा पारदर्शिता रखना चाहिये। सरकारी संपत्तियों का उपयोग उतना ही करें जितनी आवश्यकता है। जैसे ट्रेन में यात्रा करते समय स्वच्छता का ध्यान रखें, बिजली पंखे आवश्यकतानुसार ही चलाएं। पानी की बर्बादी न करें इत्यादि। आज मानव अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए सतत प्रकृति का दोहन कर रहा है, जिसके दुष्परिणाम अब हमारे सामने सुरसा के मुंह की तरह निगलने के लिये खड़े हैं। हमने अपनी नदियों, तालाबों, झीलों और झरनों को प्रदूषित कर दिया है। गंगा-यमुना जैसी पवित्र नदियों का जल आचमन के लायक नहीं रह गया है।
ग्लेशियराें और पर्वतों का क्षरण मानव के अस्तित्व को चुनौती दे रहा है। प्राचीन काल में ऋषि-मुनि प्रकृति के मध्य रह कर तप और ज्ञानार्जन करते थे, उसका संरक्षण और विकास करते थे और आने वाली पीढ़ी को सुंदर रूप में स्थानांतरित करते थे। हम आने वाली पीढ़ी को क्या देंगे यह विचारणीय प्रश्न है? हमें आज अपने प्रकृति को संरक्षण करने की आवश्यकता है।
सादगी पूर्ण जीवन भी एक सभ्य समाज की पहचान होती है। आज के महान उद्योगपति वारेन वाफेट सिर्फ चार कमरे के मकान में रहते हैं , कभी प्राइवेट प्लेन में नहीं चलते हैं जबकि खुद एयरलाइन के मालिक हैं। हमारे वर्तमान प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी जी भी बहुत सादगी पूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं।
उनके पास आज भी अपनी कोई कार और मकान रजिस्टर्ड नहीं है। सभी को सादगीपूर्ण जीवन जीते हुए अपने समाज और देश हित में योगदान देना चाहिये। स्वार्थ से ऊपर उठकर परोपकार की भावना रखना चाहिए। प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ मानव को माना जाता है। इसका सबसे बड़ा कारण है मानव की बुद्धि जो उसे धरती के अन्य सभी प्राणियों से अलग और विशिष्ट स्थान प्रदान करती है। इसी बुद्धि के बल पर मानव ने तमाम अविष्कार किए सृजन किए चमत्कार करने वाले मत सिद्धांत और ज्ञान का अकूत खजाना तैयार किया। धीरे-धीरे सभ्यता की सीढ़ियां चढ़ते हुए समूची दुनिया में विभिन्न देशों की परिधि में अनेक सभ्यताएं संस्कृति फल फूल रही हैं।
भारत की सभ्यता और संस्कृति समूचे विश्व में एक सम्मानजनक पद पर आसीन है हमारी विश्व बंधुत्व की अवधारणा वसुधैव कुटुंबकम का सिद्धांत हमारी विनय शीलता उदारता और अमन पसंदगी का परिचायक है। ऐसा नहीं है कि हमारे देश की मौजूदा छवि उपलब्धि और तस्वीर हम भारतीयों को मनभावन और मंत्रमुग्ध करने वाली है और हमें आत्मावलोकन की कोई जरूरत नहीं है।
दरअसल, हमें दूसरों की अच्छी बातें आदतें अपनाने की जरूरत है। थोड़ा है थोड़े की जरूरत है, यह महज एक वाक्य नहीं है, बल्कि उत्तरोत्तर उन्नति के लिए आशावादिता के साथ किए जाने वाले प्रयास की प्रेरणा है। कहा गया है कि बदलाव की शुरुआत खुद से होती है। यदि हम किसी व्यवस्था में सोचने परिदृश्य में कोई सकारात्मक बदलाव लाना चाहते हैं तो शुरुआत खुद से करनी होगी। मसलन यदि हम चाहते हैं हमारा पर्यावरण साफ सुथरा हो तो स्वयं उदाहरण पेश करें। स्वच्छता हमारी क्रियाकलाप से झलकी तो लोग प्रेरित होंगे।
महात्मा ने ऐसे सुधारी अपनी गलती, फिर दिया उपदेश
खुद करे तब दूसरे को कोई काम करने को कहो तो बात बनती है। एक बार एक मां अपने बच्चे को लेकर एक महात्मा के पास गई और कहा मेरा बेटा बहुत मीठा खाता है कृपया उसकी आदत छुड़ाने में मदद करें। महात्मा जी ने उन्हें एक सप्ताह बाद आने को कहा। नियत समय पर मां बच्चे को लेकर आई। महात्मा जी ने बड़े प्यार से अधिक मीठा खाने के नुकसान बताते हुए बच्चे को मीठा ज्यादा न खाने की नसीहत दी। और उन्हें जाने को कहा। बच्चे को बाहर छोड़कर मां वापस आई और महात्मा जी से पूछा यह जो समझा इस आज आपने दी है वह तो एक हफ्ते पहले ही समझा सकते थे।
महात्मा ने कहा मैं ऐसा कैसे करता बहन, जबकि तब मैं खुद बहुत मीठा खाता था। तुम्हें भेजने के बाद मैंने एक हफ्ते में अपनी यह बुरी आदत बदल डाली और जब मैं स्वयं यह आदत छोड़ चुका हूं तब बच्चे को ऐसा करने से रोकना उचित था। बात बहुत विचारणीय है। हम बदलाव तो चाहते हैं, मगर खुद बदलना नहीं चाहते।
... तो देश की तस्वीर बनेगी सुंदर
कचरा मत फैलाओ पानी मत बर्बाद करो सार्वजनिक स्थल पर्यटन स्थल सार्वजनिक और राष्ट्र की संपत्ति के रखरखाव के लिए दूसरों से यह उपेक्षा रखते हैं कि वे इनके प्रति सतर्क जागरूक और संवेदनशील रहे राष्ट्र की एक एक लोक सुविधा से जुड़ी संपत्ति को सहेजना उसकी सुरक्षा करना हर एक भारतीय का दायित्व है। स्वप्रेरणा से अपने हिस्से के ईमानदार कर्तव्य पालन की बदौलत हम आजादी के अमृत महोत्सव के इस महायज्ञ में अपनी लापरवाहीयाें की आहुति देकर जिम्मेदार नागरिक बने तो देश की तस्वीर और भी सुंदर होगी अनुपम होगी!
प्राचार्य 24 सितंबर को फेसबुक पर लाइव
ज्ञान गंगा स्कूल की प्राचार्य प्रतिमा राजगौर 24 सितंबर को दोपहर एक बजे नईदुनिया गुरुकुल फेसबुक पेज पर लाइव होंगी। वह नईदुनिया गुरुकुल पर प्रकाशित कहानी सार्वजनिक संपत्ति का सम्मान पर अनुभव साझा करेंगी।