संतोष सिंह, जगदलपुर। अविभाजित मध्यप्रदेश के समय ही जगदलपुर की पहचान चौक-चौराहों के शहर के रूप में हो गई थी। इसकी व्यवस्थित बसाहट का इतिहास लगभग सौ साल पुराना है। 1910 के भूमकाल विद्रोह के बाद ब्रिटिश हुकूमत ने बस्तर में अपनी पकड़ मजबूत की। 1910 से 1947 तक का काल जगदलपुर और बस्तर के लिए महत्वपूर्ण रहा। इसी दौर में बस्तर रियासत के पालिटिकल एजेंट डीब्रेट व दीवान रायबहादुर पंडा बैजनाथ ने जगदलपुर शहर के व्यवस्थित तथा नियाेजित विकास के लिए प्रभावशाली कदम उठाए।
अंग्रेज प्रशासक जेम्स मे की भूमिका भी नगर नियाेजन में अहम रही। एक विस्तृत मास्टर प्लान बनाकर नगर बसाया गया, जिसने इसे चौराहों का शहर बना दिया। शहर की वर्तमान संरचना ग्रिड पद्धति पर आधारित है, जिसमें सड़कें एक-दूसरे को समकोण पर काटती हैं। एक ओर जहां जगदलपुर की ख्याति चौराहों के शहर के रूप में है, वहीं दूसरी ओर इसे विडंबना और प्रशासनिक उपेक्षा माना जाएगा कि शहर में कितने चौक-चौराहे और तिराहे हैं, इसका लिखित व प्रामाणिक विवरण मौजूद नहीं है?
न तो नगर निगम, न ही लोक निर्माण विभाग और न ही नगर तथा ग्राम निवेश विभाग के पास इससे संबंधित कोई तथ्य या रिकार्ड मौजूद हैं। ज्ञात हो कि शहर की करीब 30 किमी लंबी सड़कों के संधारण का भार लोक निर्माण विभाग पर है। अनेक चाैराहे-तिराहे उसके अधीन आने वाली सड़कों पर अवस्थित हैं। लोक निर्माण विभाग साल-दर-साल केवल सड़कों के डामरीकरण का ही काम कर रहा है। वहीं, शहर का मास्टर प्लान तैयार करने वाले नगर तथा ग्राम निवेश विभाग के अब तक प्रकाशित दोनों मास्टर प्लान से भी चाैक-चौराहों की खास जानकारी नहीं मिलती है।
चौराहे हुए संकरे, बढ़ा अतिक्रमण
अनेक चौराहे-तिराहे बढ़ते शहरीकरण व भवनों के निर्माण से संकरे हो गए हैं। कुछ का तो अस्तित्व ही खत्म हो चुका है। 1998 में एएसआई ने शहर का सर्वे किया था। इसमें जिन जगहों का उल्लेख किया गया है, उनमें से कुछ जगहों के नाम अब बदल गए हैं। मसलन, सोनी टाइपिंग तिराहा, दंतेश्वरी मसाला तिराहा, इनकम टैक्स तिराहा, मनोरमा फोटो कापियर तिराहा, यूनियन बैंक तिराहा आदि।
राज्य बनने के बाद यह सरकारी जुमला खूब उछाला जाता रहा है कि विकास के लिए राशि की कमी नहीं है, लेकिन सच्चाई यह है कि चौराहों के शहर के सुंदरीकरण की ओर ध्यान नहीं दिया गया। इसकी न तो कोई कार्ययोजना बनाई गई और न ही इससे संबंधित राशि का प्रावधान किया गया।
वर्ष 2007-08 में शहर के चार चौराहों का स्वरूप निखारा गया था। इसके बाद से आज तक इस दिशा में कोई सार्थक काम नहीं हुआ है। शहर विस्तार के साथ चौराहों व तिराहों का अतिक्रमण बढ़ा है। बढ़ते शहर की बदतर होती यातायात व्यवस्था के लिए सड़कों के किनारे होने वाला अतिक्रमण और चौराहों-तिराहों का संकरा होना भी जिम्मेदार है।
13 साल पहले हुआ था सुंदरीकरण
प्रसिद्धि के अनुरूप शहर के चौक-चौराहों के सुंदरीकरण के विशेष प्रयास आज तक नहीं किए गए हैं। इसके लिए ठोस प्लान भी नहीं बनाया गया। 13 साल पहले तत्कालीन कलेक्टर गणेश शंकर मिश्रा के कार्यकाल में शहर की चार सड़कों का चौड़ीकरण किया गया था। तब इन सड़कों पर स्थित चांदनी चौक, कुम्हारपारा चौक, एनएमडीसी चौक, अग्रसेन तिराहा का सुंदरीकरण हुआ था। बस्तर की जनजातीय संस्कृति को प्रदर्शित करने वाली प्रतिमाओं की स्थापना तीन जगहों पर की गई थी।
सड़क किनारे म्यूरल्स का निर्माण कुम्हारपारा चौक में करवाया गया। तब से इसे दंडामी माड़िया चौक कहने का चलन भी बढ़ा है। पहले यह जहाजभाटा या कुम्हारपारा चौक के नाम से जाना जाता था। राष्ट्रीय राजमार्ग 30 पर शहर के प्रवेश द्वार को भव्य स्वरूप दिया गया। एनएमडीसी के वित्तीय सहयोग से सुंदरीकरण किया गया तो इसका नामकरण ही एनएमडीसी चौक हो गया।
राज्य बनने के पहले हुआ था अध्ययन
एक ओर जहां किसी भी सरकारी विभाग के पास शहर के चौक-चौराहों का रिकार्ड नहीं है, वहीं दूसरी ओर जर्नल आफ द एंथ्रोपोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया (एएसआई) के 2012 के अंक में जगदलपुर : ए टाउन इन ए ट्राइबल सेटिंग शीर्षक से प्रकाशित लेख में जगदलपुर शहर की स्थापना से लेकर यहां के अनेक पहलुओं का अध्ययन दर्ज किया गया है। यह अध्ययन छत्तीसगढ़ राज्य बनने के पहले किया गया था।
अध्ययन रिपोर्ट से जुड़ी रिसर्च टीम ने शहर के चौराहों- तिराहों का अध्ययन कर जानकारी जुटाई थी। इस अध्ययन में भी विरोधाभाषी तथ्य हैं। एक जगह कहा गया है कि जगदलपुर को चौराहों का शहर कहा जाता है, जहां करीब 200 चौराहे हैं। वहीं रिसर्च टीम ने शहर के 44 चौराहों, 54 तिराहों व एक पंचरास्ता (रेडियल रोड) की सूची ही दी है।
गौरतलब है कि जब यह सर्वे किया गया था, तब नगर निगम का गठन नहीं हुआ था। उस समय नगरपालिका परिषद में 31 वार्ड थे। यही वजह है कि सूची में धरमपुरा, हाटकचोरा, कंगोली, फ्रेजरपुर जैसे बाद में जुड़े क्षेत्रों के चौराहों-तिराहों का उल्लेख नहीं है। अनुपमा चौक से आगे धरमपुरा मार्ग के किसी भी स्थान का उल्लेख इस सर्वे में नहीं है।
तिराहों को चौक का नाम दिया
गीदम मार्ग पर गुरू गोविंद सिंह चौक, कांग्रेस भवन के पास अग्रसेन चौक, एनएमडीसी चौक, दंडामी माड़िया चौक जैसे कुछ जगहों को चौराहों का नाम दिया गया है जबकि इनकी मूल स्थिति तिराहे की है। ऐसी ही स्थिति कुम्हारपारा चौक की है। एक दशक पहले जब इस चौक का साैंदर्यीकरण किया गया, तब इसे दंडामी माड़िया चौक का नाम दिया गया। हालांकि, ज्यादातर लोग अब भी इसे कुम्हारपारा चौक के नाम से ही जानते हैं। कुछ जगहों पर गली व सीसी सड़कों से भी चौराहों का निर्माण हो गया है। जैसे कोर्ट के पास नयापारा की ओर की सीसी सड़क ने चौक बना दिया है। यही कहानी पोस्ट आफिस चौक की है।
पांच किमी में एक भी चौराहा नहीं
चौराहा वह स्थान होता है, जहां से यातायात का भार अलग-अलग चार दिशाओं की ओर डायवर्ट होता है। इससे भारी यातायात की समस्या से निजात मिलती है लेकिन शहर में एक मार्ग ऐसा है जहां पांच किमी तक एक भी चौराहा नहीं है। अनुपमा टाकीज के आगे कन्हैया किराना स्टोर के पास से धरमपुरा के आगे पल्ली गांव तक केवल सीधी सड़क चली गई है।
इस सड़क पर गायत्री मंदिर के पास, साई मंदिर के पास, धरमपुरा एक नंबर में आश्रम मार्ग, एलआइसी कार्यालय मार्ग, पीजी कालेज के आगे, इंजीनियिरंग कालेज के प्रवेश मार्ग समेत कुछ अन्य मार्ग जुड़ते हैं। यह सभी तिराहा बनाते हैं। इस मार्ग पर एक भी चौराहा नहीं है। ऐसे में ट्रैफिक का दबाव इस सड़क पर हमेशा बना रहता है। मास्टर प्लान में इस सड़क पर यातायात भार कम करने के लिए जो सुझाव दिए गए हैं, उन पर फोकस कर अब तक काम नहीं हुआ है।