हेमंत कश्यप, जगदलपुर। 326 साल पहले उत्तर भारत के नारलोन से आए और बस्तर में बसे सतनाम समाज के लोगों को अहिंसा का संदेश देने गुरु घासीदास 212 साल पहले बस्तर के चिड़ईपदर आए थे। यहां रावटी (धर्मसभा) कर लोगों को हिंसा त्यागने और सद्मार्ग पर चलने की शिक्षा दी थी। वहीं दंतेवाड़ा जाकर पुजारियों से बलि प्रथा बंद करने की अपील की थी।
बाबा के बस्तर प्रवास को चिरस्थायी बनाने के उद्देश्य से 68 साल पहले मिनी माता ने चि़ड़ईपदर में जैतखाम की स्थापना की थी। इधर विमान दुर्घटना में मिनी माता की आकस्मिक मृत्यु के बाद गुरुवंश के अगमदास ने चिड़ईपदर की ही सुमरित से विवाह रचाया था। आज भी गुरु घासीदास के रिश्तेदार चिड़ईपदर में निवासरत हैं।
नारलोन हरियाणा से आए थे बस्तर
सतनामी समाज के लोग करीब 326 साल पहले बस्तर आए थे। बताया गया कि औरंगजेब द्वारा किए जा रहे मार-काट और धर्म परिवर्तन से डरकर इस समाज के लोग नारलोन हरियाणा से भागकर पहले छत्तीसगढ़ के मैदानी इलाकों में आए, तत्पश्चात रोजगार की तलाश में बस्तर आए थे। बाद में वे यहीं के होकर रह गए। बस्तर जिले के 17 गांवों में सतनाम समाज के करीब 42 हजार लोग निवासरत हैं।
1806 में पहुंचे थे बाबा
जिला मुख्यालय से 11 किमी दूर तथा रायपुर मार्ग पर स्थित चिड़ईपदर के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति हीरासिंह गेडरे (85) बताते हैं कि उनके पिता मंगलूदास ने बताया था कि वर्ष 1806 के आसपास गुरु घासीदास चिड़ईपदर आए थे। उस समय बाबा की उम्र करीब 50 साल रही होगी। उन्होंने आसपास के गांवों में निवासरत सतनामी समाज के लोगों के साथ चिड़ईपदर में धर्मसभा की थी। तत्पश्चात वे बैलगा़ड़ी से दंतेवा़़ड़ा गए और वहां दंतेश्वरी मंदिर के पुजारियों से मुलाकात कर मंदिरों में बलि न देने व अहिंसा को अपनाने की अपील की थी।
बनवाया पहला जैतखाम
लगभग 70 साल पहले गुरुवंश के बाबा अगमदास पत्नी मिनीमाता के साथ चिड़ईपदर आए थे। जिस स्थान पर गुरु घासीदास ने 212 साल पहले धर्मसभा की थी, वहां पर बाबा के बस्तर आगमन की स्मृति में पहले जैतखाम की स्थापना की थी। तब से पुरानी बस्ती के लोग यही पर गुरु घासीदास जयंती मनाते आ रहे हैं। चार साल पहले ही पुराने स्मारक का जीर्णोद्घार किया गया है।
रिश्तेदारी भी की
चिड़ईपदर के गोवर्धन टंडन बताते हैं कि 11 अगस्त 1972 में मिनी माता की विमान दुर्घटना में आकस्मिक मृत्यु के कुछ साल बाद गुरुवंश के अगमदास हाथी पर सवार होकर पुनः चिड़ईपदर आए थे और उनकी बुआ सुमरित से विवाह रचाया था। वे दोनों खड़वा में रहते थे। विवाह पश्चात उनकी बुआ सुमरित माता के नाम से चर्चित रहीं। उनकी पुत्री मंत्रा करीब 20 साल पहले चिड़ईपदर आई थीं।
स्मारक बनाएं
प्रगतिशील छत्तीसगढ़ समनाम समाज के संरक्षण इंदर प्रसाद बंजारे व अध्यक्ष मोहन बंजारे बताते हैं कि बाबा की जीवनी में भी उनके चिड़ईपदर बस्तर प्रवास का उल्लेख मिलता है। बस्तर लंबे समय से हिंसाग्रस्त रहा। यहां के लोगों को जादू-टोना और हिंसा से दूर रखने का प्रयास 212 साल पहले गुरु घासीदास ने किया था। चिड़ईपदर में हजारों लोगों को अहिंसा का मार्ग दिखाया था, इसलिए उक्त धर्मसभा स्थल में एतिहासिक स्मारक बनाने की मांग तीन साल से प्रदेश सरकार से मांग कर रहे हैं।