रायपुर। इंसान को सांपों से बचाने और पकड़कर सुरक्षित स्थानों पर छोड़ने जैसे अनेक जागरूकता कार्यक्रम चलाने वाली ग्रीन नेचर वेलफेयर सोसाइटी (जीएनडब्लयूएस) के काम अब सात समंदर पार पहुंच चुके हैं। इसलिए नागलोक की वास्तविकता जानने के लिए दो युवा जर्मन विशेषज्ञ मर्लिन और मैथियस जशपुर स्थित तपकरा पहुंच गए। दरअसल संस्था के सदस्य कैसर हुसैन की दोस्ती इन युवाओं के साथ कई महीने पहले फेसबुक से हुई। धीरे-धीरे फेसबुक के पेजेस पर सांपों की कई फोटो और जानकारियां इन युवाओं को दी।
इससे प्रभावित ये युवा पिछले दिनों तपकरा से लगे गांवों में पहुंच गए, जहां दुर्लभ प्रजाति के सांप और इस संस्था द्वारा सांप पकड़ने की विधि को सीख रहे हैं। इतना ही नहीं, ये युवा अब तक आधा दर्जन सांपों को पकड़ चुके हैं और उनकी एक-एक गतिविधि को नोट कर रहे हैं। गौरतलब है कि जर्मनी में बिना विष वाले सांप घरों में पाले जाते हैं। ऐसे में इन युवाओं को तपकरा में बड़े आकार के नाग और उनके फन को देखना रोमांचित कर दे रहा है।
ग्रीन विट वाइपर की नई प्रजाति
ये विशेषज्ञ ग्रीन विट वाइपर सांप की नई प्रजाति ढूंढ़ना चाहते हैं, ताकि उनके बल्ड सैंपल लेकर बड़े अंतरराष्ट्रीय लैब पर रिसर्च किया जा सके। हालांकि इसके लिए भारत सरकार से अनुमति लेनी होगी। संस्था और विशेषज्ञों के बीच संवाद कराने के लिए अनुज सिन्हा और मानव विश्वकर्मा सहयोग कर रहे हैं। मर्लिन और मैथियस गांवों में सांप से प्रभावित लोगों से भी जाकर मिल रहे हैं। इसके अलावा सांप से बचने के लिए अंधविश्वास पर न जाने की सीख दे रहे हैं और संस्था के सदस्यों द्वारा सांप के स्वाभाव को बताने का प्रयास कर रहे हैं।
नागलोक की विशेषता
तपकरा के नागलोक और उससे लगे इलाके में सांपों की 70 से ज्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं। इसमें कोबरा की आधा दर्जन और करैत की कुछ प्रजातियां काफी विषैली हैं। गौरतलब है कि नागलोक में सांपों के डसने से सैकड़ों लोगों की मौत हो चुकी है। यहां समशीतोष्ण जलवायु और भुरभुरी मिट्टी सांपों के लिए अनुकूल है।