मृगेंद्र पांडेय/रायपुर। Chhattisgarh Election 2023: चुनावी समर में राजनीतिक दल अब जनता के दरबार में दस्तक दे रहे हैं। सत्ता पक्ष हो या विपक्ष हर दल और उसके नेता जनता के बीच वादों की सौगात लेकर पहुंच रहे हैं। इन वादों का चुनाव परिणाम पर क्या असर पड़ेगा, यह तो वक्त बताएगा, लेकिन लोकलुभावन वादों से पार्टियां वोटरों को अपने पाले में करने की जुगत में हैं। इस चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के अलावा तीन दल आम आदमी पार्टी, जकांछ और बसपा भी वादों को लेकर चुनावी मैदान में ताल ठोंक रहे हैं।
पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा की 15 साल की सत्ता को हटाने में कांग्रेस के चुनावी वादों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। कांग्रेस के दमदार घोषणा पत्र को देखकर किसान, महिला, मजदूर हर वर्ग ने मतदान किया। अब इस चुनाव में भाजपा भी उसी फार्मूले पर आ गई है।
घर-घर वोट मांगने से पहले भाजपा की घोषणा पत्र समिति वादों का मजबूत पिटारा जनता के सामने रखने की तैयारी कर रही है। वहीं, कांग्रेस अपनी सरकार के काम के दम पर ताल ठोंक रही है। चुनाव में धान की कीमत और किसानों को राहत सभी दलों के लिए मुख्य मुद्दा है। धान और किसान के बहाने सभी सत्ता पाने के लिए प्रयास कर रहे हैं।
राजनीतिक प्रेक्षकों की मानें तो चुनाव मैदान में पांच प्रमुख मुद्दे हैं। 2023 का विधानसभा चुनाव इन पांच मुद्दों भगवान श्रीराम, छत्तीसगढ़ियावाद, आरक्षण, भ्रष्टाचार और शराबबंदी के इर्द-गिर्द घूमता नजर आएगा। राजनीति में आस्था का तड़का लगाकर कांग्रेस इस बार भगवान श्रीराम के नाम को भुनाने की तैयारी में है। कांग्रेस सरकार ने रामवनगमन पथ का निर्माण कराया है।
अब उनकी चुनावी गाड़ी इसी पथ पर सरपट दौड़ने को तैयार है। ऐसा नहीं है कि भाजपा ने भगवान श्रीराम से परहेज कर लिया है। भाजपा अयोध्या में बन रहे श्रीराम मंदिर को लेकर जनता के बीच जा रही है। नेता और कार्यकर्ता यह बताने में गुरेज नहीं कर रहे हैं कि केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद ही मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हो गया है।
दूसरा मुद्दा छत्तीसगढ़ियावाद है, जिसकी अलख तो कांग्रेस ने जगाई, लेकिन पीछे-पीछे भाजपा भी उसी दिशा में आगे बढ़ रही है। मुख्यमंत्री निवास में छत्तीसगढ़ी पर्व, खान पान से शुरू हुई कहानी अब गेड़ी दौड़ पर पहुंच गई है। कांग्रेस यह दावा करती है कि उनकी सरकार आने के बाद छत्तीसगढ़ियों की सरकार बनी, उनकी बातों को सरकार ने सुना और उसके आधार पर विकास का खाका तैयार किया। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के ठेठ छत्तीसगढ़िया अंदाज का जवाब देने के लिए भाजपा ने ओबीसी वर्ग के अरुण साव को प्रदेश अध्यक्ष बनाया। अब सीएम को चैलेंज देने के लिए दुर्ग सांसद विजय बघेल को पाटन से उम्मीदवार भी बना दिया है।
तीसरा मुद्दा आरक्षण है। कांग्रेस सरकार ने एसटी, एससी, ओबीसी वर्ग का आरक्षण बढ़ाया। इसके लिए आरक्षण संशोधन विधेयक विधानसभा में पारित कराया, लेकिन यह विधेयक राजभवन में लटक गया। आरक्षण को लेकर कई मामले कोर्ट में लंबित हैं। इस बीच, कांग्रेस और भाजपा के बीच आरक्षण को लेकर जमकर सियासी तकरार हुई। अब चुनाव मैदान में कांग्रेस जहां आरक्षण को रोकने का मुद्दा उठा रही है, तो भाजपा सरकार पर आरक्षण के नाम पर धोखा देने का मुद्दा उठा रही है। आरक्षण कम होने के कारण एससी वर्ग की नाराजगी को साधने के लिए दोनों दल जुटे हुए हैं।
चौथ मुद्दा भ्रष्टाचार है, जिसे लेकर भाजपा आक्रामक है। पीएम मोदी की रायपुर के साइंस कालेज मैदान की सभा में भी भ्रष्टाचार को लेकर जमकर तीर चले। पीएम मोदी ने कोयला घोटाला, शराब घोटाला, गोठान का घोटाला सहित अन्य घोटालों का जिक्र किया। वहीं, कांग्रेस ने जवाबी हमला बोला और केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाया। आने वाले समय में तय होगा कि मतदाता भाजपा नेताओं की बात पर भरोसा करता है, या फिर कांग्रेस के पक्ष में आता है।
पांचवां मुद्दा शराबबंदी है, जिसे प्रदेश में लागू करने का कांग्रेस ने पिछले चुनाव में वादा किया था। शराबबंदी के वादे पर जमकर मतदान हुआ। अब भाजपा मतदाताओं को याद दिला रही है कि शराबबंदी पूरी नहीं हुई। इसे महिला वोटरों का अपमान बता रही है। जबकि कांग्रेस प्रदेश की परिस्थितियों का हवाला देकर शराबबंदी की जगह नशाबंदी की दिशा में आगे बढ़ रही है। आदिवासी ब्लाक में शराबबंदी लागू करने में सरकार को दिक्कत आ रही है। बावजूद इसके इस चुनाव में शराबबंदी की गूंज सुनाई देगी।
स्थानीय मुद्दे भी दिखाएंगे अपना असर
बस्तर से लेकर सरगुजा तक हर क्षेत्र के कुछ स्थानीय मुद्दे हैं, जो चुनाव में असर दिखाएंगे। बस्तर में विकास, नक्सल प्रभावित क्षेत्र में पुलिस कैंप खुलने से आए बदलाव, स्थानीय विरोध, मतांतरण जैसे मुद्दे प्रभावी रहेंगे। सरगुजा में खराब सड़क, खनन प्रभावित क्षेत्र में अधूरा विकास, हसदेव अरण्य में कोल खनन जैसे मुद्दे रहेंगे। वहीं, मैदानी छत्तीसगढ़ में सड़क, बिजली, पानी जैसे मुद्दे भी कई विधानसभा क्षेत्र का समीकरण बना और बिगाड़ सकते हैं।