रायपुर। Kaal Bhairav Jayanti 2020: 200 साल पुराने ऐतिहासिक बूढ़ा तालाब के समीप स्थित बूढ़ेश्वर मंदिर में खुले आसमान तले भैरवनाथ विराजे हैं। चाहे भीषण बारिश हो या गर्मी या ठंड। हर मौसम में खुले प्रांगण में ही भैरवनाथ का श्रृंगार, पूजा आरती होती है। भैरवनाथ की मनमोहक प्रतिमा के ऊपर छत इसलिए नहीं ढाली गई है क्योंकि राजस्थान के कोडमसर गांव के मूल मंदिर में भी छत नहीं है।
रायपुर के मंदिर में विराजे भैरवनाथ कोडमसर गांव के भैरवनाथ के ही प्रतिरूप में विराजित किए गए हैं। जिस तरह की पूजा कोडमसर गांव में होती है, उसी तर्ज पर बूढ़ेश्वर मंदिर के भैरवनाथ की भी की जाती है। बताते चलें कि भैरव बाबा को भगवान शंकर के पांचवें रुद्रावतार के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि भैरव बाबा की पूजा-अर्चना से कालसर्प दोष, मांगलिक दोष, शनि, मंगल, राहु आदि के कुप्रभाव से मुक्ति मिलती है।
मंदिर का प्रसाद बाहर नहीं जाता
श्री पुष्टिकर समाज के नेतृत्व में मंदिर संचालित किया जा रहा है। समाज के प्रमुख ट्रस्टी परस राम वोरा बताते हैं कि मंदिर की परंपरा के अनुसार भैरवनाथ का प्रसाद मंदिर में ही खाया जा सकता है। प्रसाद को मंदिर परिसर से बाहर नहीं ले जाया जाता।
शराब नहीं चढ़ाते, चूरमा- रोट का प्रसाद
देश के अन्य भैरव बाबा के मंदिर में भक्तगण मदिरा का भोग लगाते हैं, लेकिन बूढ़ेश्वर मंदिर में स्थापित भैरवनाथ की प्रतिमा के समक्ष मदिरा का भोग लगाने की अनुमति नहीं है। यहां पेड़ा, रोट और चूरमे का भोग लगाकर मंदिर परिसर में ही ग्रहण करने की परंपरा निभाई जाती है। भक्तों को बार बार हिदायत दी जाती है।
कोरोना के दौर में सादगी से पूजा
इस साल कोरोना महामारी के चलते मंदिर में हर साल की तरह भव्य महाआरती का आयोजन नहीं किया जा रहा है। सादगी से श्रृंगार करके पूजा की जाएगी। कोरोना के कारण ज्यादा भक्तों को मंदिर में प्रवेश नहीं दिया जा रहा है। मंदिर में प्रवेश से पहले सैनिटाइज किया जाता है। साथ ही मास्क भी पहनना अनिवार्य है।
सोमवार को विशेष पूजा
सोमवार को शाम छह बजे भैरव बाबा का चमेली के तेल, सिंदूर से अभिषेक करके चांदी और सोने के वर्क से अलौकिक श्रृंगार किया जाएगा। रजत आभूषण भी अर्पित किए जाएंगे। शाम 7.30 बजे आरती की जाएगी। हर साल पूजा आरती के बाद सामाजिक प्रसादी का आयोजन होता है, जो इस बार कोरोना के चलते नहीं किया जा रहा है।