रायपुर। बस्तर के दंतेवाड़ा स्थित बैलाडीला लौह अयस्क खदान-13 को लेकर सियासत गरमाई हुई है। आदिवासी अपने देवता के स्थान (नंदराज पहाड़) को बचाने के लिए तीन दिन से संघर्ष कर रहे हैं। इधर, राजधानी में राजनीतिक हमले तेज हो गए हैं। कांग्रेस इस पूरे मामले का ठीकरा पूर्ववर्ती भाजपा सरकार पर फोड रही है। वहीं, भाजपा कह रही है कि खनन के लिए पर्यावरण संरक्षण मंडल की अनुमति कांग्रेस सरकार ने दी है।
इस बीच राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एनएमडीसी) ने स्पष्ट किया है कि खदान एनएमडीसी व छत्तीसगढ़ खनिज विकास निगम (सीएमडीसी) का है। खदान का पट्टा किसी भी को भी ट्रांसफर नहीं किया जा रहा है। इस विवाद के बीच 'नईदुनिया" ने खदान से जुड़े दस्तावेजों की पड़ताल की। इसमें खुलास हुआ कि अडानी की कंपनी को विकासकर्ता सह प्रचालक (एमडीओ) यानी उत्खन्न् की अनुमति 20 सितंबर 2018 में दी गई थी।
यह फैसला एनएमडीसी- सीएमडीसी के संयुक्त उपक्रम एनसीएल की बोर्ड ने टेंडर के आधार पर किया था। तब राज्य में भाजपा की सरकार थी। एनसीएल और अडानी के बीच समझौता (एमओयू) 6 दिसंबर 2018 को हुआ। इस दौरान राज्य चुनावी मोड में था। इस एमओयू के छह दिन बाद मतगणना हुई। 27 अप्रैल 2019 यानी कांग्रेस के राज्य की सत्ता में आने के बाद राज्य पर्यावरण संरक्षण मंडल ने खदान के संचालन के लिए सहमति पत्र जारी की।
राज्य सरकार की भूमिका नहीं
एनएमडीसी और सीएमडीसी के अफसरों के अनुसार ऑन पेपर इस पूरे मामले में राज्य सरकार चाहे वह भाजपा की थी या अब कांग्रेस की है, इनकी कोई भूमिका नहीं है। इस मामले में जिनते भी दस्तावेजी कामकाज हुए हैं, सभी अलग-अलग स्वयंत्र एजेंसियों ने किया है।
क्यों नहीं रोका कंसेट टू ऑपरेटर
पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का कहना है कि इस माइंस को लेकर कांग्रेस को अगर कोई आपत्ति थी, कोई विरोध था तो अप्रैल माह में कंसेंट टू ऑपरेट रोक देते। कंसेंट पर्यावरण संरक्षण मंडल ने जारी किया है, जिसके अध्यक्ष मंत्री मोहम्मद अकबर हैं। अगर उसी समय रोक दिए होते तो कोई झंझट ही नहीं होता। उन्होंने कहा कि सरकार बनने के बाद इसको रोका जा सकता था। अगर पर्यावरण मंडल की बैठक में गए थे तो अप्रैल में ही रोक देना था।
- सहमति पर्यावरण विभाग ने नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण बोर्ड ने दी है। पर्यावरण संरक्षण बोर्ड केंद्र सरकार की जल एवं वायु प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम के तहत गठित एक स्वायतशासी संस्था है, जिसकी कार्रवाई अलग से चलती है। बोर्ड के फैसले अलग से होते हैं। चूंकि वह एक स्वतंत्र इकाई है इसलिए उसकी बैठकों में मंत्री शामिल नहीं होते। जो कंसेट दिया गया है वह केंद्र सरकार के उपक्रम एनएमडीसी व सीएमडीसी के संयुक्त उपक्रम के नाम से जारी किया गया था न कि किसी प्राइवेट कंपनी को। हमने वन काटने की अनुमति या सहमति कभी नहीं दी है। पेड़ों को काटने की अनुमति पूर्ववर्ती सरकार ने जनवरी 2018 में दी थी। - मोहम्मद अबकर, वन, पर्यावरण एवं आवास मंत्री
खनन पट्टा किसी को भी नहीं किया जा रहा ट्रांसफर : एनएमडीसी
इस बीच एनएमडीसी ने स्पष्ट किया है कि खदान-13 का स्वामित्व एनसीएल के पास है। खनन पट्टा संयुक्त उद्यम कंपनी के साथ पंजीकृत है। खनन पट्टा अडानी अथवा किसी अन्य को किसी भी समय स्थानांतरित नहीं किया जाएगा। एनएमडीसी ने कहा है कि इस परियोजना के अधीन वांछित भूमि का अधिग्रहण ज्वाइंट वेंचर कंपनी के नाम पर ही किया जाएगा।
खदान-13 से उत्पादित लौह अयस्क की केवल बिक्री का अधिकार एनसीएल के पास होगा। मेसर्स अडानी इंटरप्राईजेज लिमिटेड को उत्खनन एवं खान विकास की संविदा केवल खान विकासकर्ता सह प्रचालक (एमडीओ) के रूप में दी गई है। अडानी को यह कार्य खुली निविदा के आधार पर एमएसटीसी (भारत सरकार का उद्यम) का पारदर्शी ई-निविदा पोर्टल के माध्यम से दिया गया था।
25 वर्ष पहले शुरू हुई प्रक्रिया
दस्तावेजों के अनुसार 13 अक्टूबर 1994 को पहली बार एनएमडीसी ने इस खदान के लिए केंद्र सरकार को आवेदन दिया था। उस वक्त 631.34 हेक्टेयर में खनन की अनुमति मांगी गई थी। इस बीच एनएमडीसी और सीएमडीसी ने 1 जुलाई 2007 को संयुक्त उपक्रम बनाया।
इसमें 51 फीसद हिस्सेदारी एनएमडीसी और 49 फीसद सीएमडीसी की है। 13 फरवरी 2007 को केंद्र सरकार ने 413.745 हेक्टेयर के लिए एलओआइ जारी किया। 5 मई 2010 को किरंदुल में पहली जनसुनवाई हुई। इसके बाद 4 जुलाई 2014 को फारेस्ट की अनुमति के लिए जनसुनवाई हुई। 2015 और 2017 में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने अनुमति दे दी।