संजीत कुमार, रायपुर।Ajit Jogi In Memories: इंजीनियर, वकील, प्रोफेसर, आइपीएस, आइएएस, राज्यसभा सदस्य, मुख्यमंत्री...क्या एक व्यक्ति एक ही जीवन में इतना कुछ कर सकता है? ज्यादातर लोग का जवाब होगा नामुम्मिकन, लेकिन अजित जोगी ने एक ही जीवन में इतना सब कुछ हासिल किया। हालांकि पूरा जीवन बेहद उतार-चढ़ाव भरा रहा। अविभाजित मध्यप्रदेश में 13 वर्ष तक कलेक्टरी की, वह भी इंदौर समेत कई बड़े जिलों में। स्व. राजीव गांधी के कहने पर कलेक्टरी छोड़कर राजनीति में प्रवेश किया। राज्यसभा सदस्य बने। छत्तीसगढ़ बना तो विद्याचरण शुक्ल समेत सभी दिग्गजों को पछाड़ कर मुख्यमंत्री बने। जोगी 2004 में महासमुंद सीट से लोकसभा का चुनाव लड़े, जीते भी, लेकिन उस चुनाव के दौरान गंभीर हादसे का शिकार हुए और उनकी कमर के नीचे के हिस्से ने काम करना बंद कर दिया। दुर्घटना इतनी भयानक थी कि उनका बचना मुश्किल था। इसके बावजूद 16 वर्ष तक अपनी शारीरिक कमजोरी के बावजूद न केवल सक्रिय रहे, बल्कि राजनीतिक रूप से ताकतवर बने रहे। जोगी ने एक साक्षात्कार में बताया था कि 2004 में इंग्लैंड के जिस अस्पताल में उनका इलाज हुआ, वहां के डॉक्टर ने उनसे खुद कहा था कि वे अब किसी भी सूरत में जीवन भर चल नहीं सकते। इसके बावजूद जोगी ने कभी हार ही नहीं मानी। कभी स्टेमसेल के जरिए ठीक होने तो कभी रोबोटिक पैरों से चलने की कोशिश करते रहे। गांधी परिवार के बेहद करीब रहे जोगी राजनीति के माहिर खिलाड़ी थे।
गांधी परिवार के रहे बेहद करीब
जोगी गांधी परिवार के बेहद करीब रहे। कहा जाता है कि वह जब कलेक्टर हुआ करते थे तभी से उन्होंने नेताओं से करीबी बनानी शुरू कर दी थी। रायपुर में रहते हुए उन्होंने सबसे पहले कांग्रेस के शीर्ष नेता विद्याचरण शुक्ला और श्यामाचरण शुक्ला से नजदीकी बढ़ाई। इस बीच वह अर्जुन सिंह के भी करीब आ गए। कहा जाता है कि जिन दिनों वह रायपुर में कलेक्टर हुआ करते थे, उन दिनों राजीव गांधी इंडियन एयरलाइन्स में पायलट थे। वह रायपुर भी कभी-कभी जाते रहते थे। कहा जाता है कि उन दिनों कलेक्टर जोगी के निर्देश थे कि जिस दिन राजीव गांधी आएं, उन्हें पहले से सूचना दे दी जाए। ऐसे में राजीव के आने पर वह अपने घर से नाश्ता लेकर वहां पहुंच जाते थे।
गरीबी और तंगहाली से शुरू हुआ बचपन
जोगी का जन्म बिलासपुर के पेंड्रा में 29 अप्रैल, 1946 को हुआ था। बेहद पिछड़े आदिवासी क्षेत्र में जन्म लेने के बावजूद उन्हें तरक्की की राह चुनी। जोगी के मुताबिक वे बचपन में नंगे पैर स्कूल जाया करते थे। पिता के ईसाई धर्म अपनाने के बाद उन्हें मिशनरी से मदद मिली। भोपाल से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने कुछ समय तक प्रोफेसर की नौकरी की। 1968 में आइपीएस बने और दो साल बाद आइएएस बने।
संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रतिनिधित्व की कहानी जोगी की जुबानी
संयुक्तराष्ट्र संघ की 50वीं वर्षगांठ में जोगी ने भारत का प्रतिनिधित्व किया था। 16 अगस्त 2018 को नईदुनिया से चर्चा में जोगी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी से जुड़ी अपनी यादें साझा करते हुए अपनी संयुक्त राष्ट्र की यात्रा की कहानी भी सुनाई थी। बकौल अजीत जोगी, अटलजी हमेशा युवाओं को मौका देते थे। संयुक्त राष्ट्र संघ की पचासवीं वर्षगांठ के मौके पर वहां दो सौ राष्ट्रों के प्रतिनिधि मौजूद थे। उसमें भारत से अटल विहारी वाजपेयी, शरद पवार और मुझे (जोगी) को जाने का मौका मिला। संयुक्त राष्ट्र संघ में अटल को प्रतिनिधित्व करना था भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. पीवी नरसिंहा राव का फोन अटल जी के पास आया। राव ने अटल जी से कहा कि कल भारत की तरफ से आपको प्रतिनिधित्व करना है, तैयारी कर लें। अटल जी ने जबाब दिया कि हमारी तैयारी हो गई है। थोड़ी देर बाद उन्होंने मुझे बुलाया और कहा कि अजीत भारत की तरफ से कल तुम संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रतिनिधित्व करोगे। जब मैंने कहा कि प्रतिनिधित्व तो आपको करना है, तो उन्होंने कहा कि तुम भारत की तरफ से प्रतिनिधित्व करोगे, मुझे कई मौके मिलेंगे, लेकिन तुमको नहीं मिलेगा। अटल जी के आदेश के बाद हमने संयुक्त राष्ट्र संघ का प्रतिनिधित्व किया था।
ढाई घंटे में बदला रास्ता
जोगी 1985 में इंदौर कलेक्टर रहते आइएएस की नौकरी छोड़कर राजनीति में आए। 1986 से 1998 तक राज्यसभा के सदस्य रहे। इस दौरान वह कांग्रेस में अलग-अलग पद पर कार्य करते रहे। लंबे समय तक कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रहे। 1998 में रायगढ़ से लोकसभा सांसद चुने गए। 2000 में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बने। 2001 में मरवाही सीट से विधायक बने। 2004 में महासमुंद सीट से सांसद चुने गए। जोगी ने महज ढ़ाई घंटें में प्रशासनिक सेवा छोड़कर राजनीति में आने का फैसला किया था। यह बात उन्होंने कई बार खुद बताया था। वे तब इंदौर के कलेक्टर थे। एक दिन ग्रामीण इलाके में दौरे के लिए गए थे। रात को जब घर लौटे तो पत्नी रेणु ने बताया कि प्रधानमंत्री कार्यालय से फोन आया था, पीएम राजीव गांधी बात करना चाह रहे थे। जोगी ने सोचा कि पीएम क्यों एक कलेक्टर को फोन करने लगे। इसके बाद रात करीब 9:30 बजे उन्होंने पीएम ऑफिस के नंबर पर फोन किया। राजीव गांधी के तत्कालीन पीए वी जॉर्ज ने फोन उठाया और कहा, 'कमाल करते हो यार, देश का प्रधानमंत्री तुमसे बात करना चाह रहा है और तुम गांव में घूम रहे हो।" वी जॉर्ज ने कहा कि पीएम सुबह से उनसे संपर्र्क करने की कोशिश कर रहे हैं। वे चाहते हैं कि वे तुरंत कलेक्टर पद से इस्तीफा दें। अचानक इस्तीफे की बात सुनकर जोगी चौंक गए और कहा कि वे डेप्युटेशन पर पीएम ऑफिस ज्वाइन कर सकते हैं, इसमें रिजाइन देने की क्या जरूरत है। इस पर जॉर्ज ने कहा कि पीएम चाहते हैं कि वे राज्यसभा के लिए मध्य प्रदेश से नामांकन भरें। उनसे कहा गया कि रात 12 बजे तक दिग्विजय सिंह उन्हें लेने इंदौर पहुंच जाएंगे और इस्तीफे की सारी औपचारिकता सुबह 11 बजे तक पूरी हो जाएगी। उनके पास ढाई घंटे का समय है फैसला करने के लिए। इसके बाद जोगी केवल तीन लोगों से बात कर पाए थे, अपनी पत्नी रेणु जोगी, पीए और इंदौर के एक आइरिश डॉक्टर से। तीनों ने उन्हें प्रोत्साहित किया। इसके बाद उन्होंने नौकरी छोड़ कर राजनीति में जाने का फैसला किया और दूसरे ही दिन भोपाल जाकर राज्यसभा के लिए नामांकन भरा।
कांग्रेस ने निकाला नहीं, इस्तीफा दिया
जोगी कांग्रेस में उल्टी गिनती 2014 अंतागढ़ विधानसभा सीट के उपचुनाव के साथ शुरू हुई। कांग्रेस की ओर से मंतूराम पंवार प्रत्याशी थे। पवार ने एन वक्त पर नाम वापस ले लिया। 2015 के आखिर में एक ऑडियो टेप सामने आया, जिसमें खरीद-फरोख्त की बात थी। आरोप लगे कि टेप में जोगी, उनके बेटे अमित जोगी और मुख्यमंत्री रमन सिंह के दामाद पुनीत गुप्ता की आवाज थी। बातचीत मंतूराम पंवार के नाम वापस लेने के बारे में थी। इस टेप कांड के सामने आने के बाद छह जनवरी को प्रदेश कांग्रेस कमिटी ने बेटे अमित जोगी को छह साल के लिए पार्टी से निकाल दिया। साथ ही जोगी को भी पार्टी से निकालने की सिफारिश कर दी। आलाकमान इस सिफारिश पर कोई फैसला कर पाता, उससे पहले ही 6 जून 2016 को जोगी ने कांग्रेस से अलग होने का फैसला कर लिया। अपने विधानसभा क्षेत्र मरवाही के कोटमी में हजारों लोगों के बीच पत्नी और बेटे के साथ मौजूद जोगी ने कहा कि वो कांग्रेस से अलग होकर नई पार्टी बना रहे हैं। 23 जून 2016 को जोगी ने अपनी नई पार्टी बना ली और इसका नाम रखा छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस (जे)। इस वक्त सदन में पार्टी के पांच विधायक है। इसमें जोगी और उनकी पत्नी डॉ. रेणु जोगी भी शामिल हैं।
भीड़ तो जुटी, लेकिन सरकार नहीं बनी
जोगी कांग्रेस में तब भी और अपनी पार्टी बना लिए फिर भी उनकी सभाओं की भीड़ में कोई कमी नहीं आई। 2018 के विधानसभा चुनाव में जोगी की हर सभा भीड़भरी होती थी। रायपुर के साइंस कॉलेज मैदान में जब उनकी पार्टी की पहली सभा हुआ तो प्रदेशभर से लाखों की संख्या में लोग जुटे, लेकिन वह भी पार्टी के पक्ष में वोट में तब्दली नहीं हो पाई।
मायावती से चुनावी गठबंधन
राज्य में 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में जोगी की पार्टी छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस (जे) भी मैदान में उतरी। जोगी ने चुनाव से पहले ही बसपा और कुछ सीटों पर सीपीआइ से गठबंधन किया। दोनों पार्टियों ने मिलकर 90 में से सात सीटों पर जीत दर्ज की।
जब तक कांग्रेस में रहे जोगी की तूती बोली
जोगी जब तक कांग्रेस में रहे उन्हीं की तूती बोलती रही। संगठन में पदाधिकारी तय करने से लेकर पंचायत से लेकर विधानसभा और लोकसभा चुनाव में टिकट जोगी की ही मर्जी से फाइनल होते थे। विरोधी खेमा को यह पसंद नहीं आता था, लेकिन चाहकर भी वे कुछ नहीं कर पाते थे। आज ये अतीत की सारी बातें यादों में सिमटकर रह गई हैं। लोग उनकी याद कर जोगी के राजनीतिक प्रभाव की याद कर रहे हैं।
देश में बदला दलबदल कानून
देश के दलबदल कानून में बदला की एक बड़ी वजह जोगी हैं। वर्ष 2000 में राज्य गठन हुआ तब कांग्रेस बहुतम में थी। जोगी के नेतृत्व मंे कांग्रेस की सरकार बनी। मुख्यमंत्री समेत 23 मंत्री थे। चूंकि जोगी को विधायको ने नहीं बल्कि आलाकमान ने मुख्यमंत्री बना था, इस वजह से उन्हें बगावत का खतरा महसूस होता था। इसी वजह से उन्होंने विपक्षी पार्टी भाजपा में सेंध लगाई। पहले रामदयाल उइके से अपने लिए मरवाही सीट खाली कराई। फिर भाजपा के 13 विधायकों को कांग्रेस में शामिल कर लिया, उनमें से कुछ को मंत्री बना दिया। इसके बाद देश में दलबदल कानून बदलने के साथ मंत्रिमंडल के सदस्यों की संख्या सीमित की गई।
राजनीति में प्रवेश के साथ शुरू हुआ जाति का विवाद
जोगी राजनीति में आते ही उनकी जाति को लेकर विवाद शुरू हो गया। जोगी खुद को आदिवासी बताते रहे। 1986 में उनके राज्यसभा सदस्य बनते ही मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर बेंच में जोगी के जाति प्रमाण पत्र को लेकर एक याचिका दाखिल हुई। इसके बाद से याचिकाएं खारिज होती रही और नई दाखिल होती रहीं। छत्तीसगढ़ बनने के बाद भी जाति के इस विवाद से उनका पिछा नहीं छुटा। कुछ महीने पहले ही राज्य की उच्च स्तरीय छानबीन समिति ने उनके आदिवासी जाति प्रमाण पत्र को खारिज कर दिया। इसके बाद मामला फिर कोर्ट में है।
बेटी अनुषा का दर्द
जोगी के पुत्र अमित जोगी इस वक्त उनकी क्षेत्रीय पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) के प्रदेश अध्यक्ष हैं। जोगी की एक बेटी भी थी, नाम था अनुषा। जोगी बेटी से बहुत प्यार करते थे। घटना 12 मई 2000 की है। उस समय जोगी का परिवार इंदौर में रहता था। बताते हैं उस दिन सोनिया गांधी इंदौर आई थीं, पिता सोनिया गांधी की अगवानी में लगे थे। घर में बेटी ने जान दे दी। इंदौर के कब्रिस्तान में उसे दफना दिया गया। जोगी बेटी के दफनाए जा चुके शव को पैतृक गांव जाना चाहते थे, लेकिन कब्र खोदने की अनुमति नहीं मिल रही थी। जोगी जब सीएम बने तो इंदौर नगर निगम ने अनुमति दे दी। 5 जून 2001 को रातों-रात कब्र खोदकर देह निकाली गई और छत्तीसगढ़ लाकर यहां दफन कर दिया गया।