प्रवचन में आचार्य विशुद्ध सागर बोले- जिसके पास धर्म का धन नहीं है वह संसार का सबसे दरिद्र पुरुष
Acharya Vishuddha Sagar Maharaj Pravachan: आचार्य ने कहा कि जिसके पास रत्न नहीं, स्वर्ण नहीं, धन-धान्य नहीं, दासी-दास नहीं, वह मित्र दरिद्र नहीं है, संसार का सबसे बड़ा दरिद्र तो वह है, जिसके अंत:करण में धम्म (धर्म) धन नहीं।
By Ashish Kumar Gupta
Edited By: Ashish Kumar Gupta
Publish Date: Fri, 14 Oct 2022 04:40:09 PM (IST)
Updated Date: Fri, 14 Oct 2022 04:40:09 PM (IST)
रायपुर। जिसके पास रत्न नहीं, स्वर्ण नहीं, धन-धान्य नहीं, दासी-दास नहीं, वह मित्र दरिद्र नहीं है, संसार का सबसे बड़ा दरिद्र तो वह है, जिसके अंत:करण में धम्म (धर्म) धन नहीं। जिनके पास भूमि नहीं, धन-धरती नहीं, कुटुंब-परिवार नहीं, लेकिन धर्म है वह संसार का सबसे विभूति संपन्न पुरुष है। यह संदेश सन्मति नगर फाफाडीह में आचार्य विशुद्ध सागर ने दिया।
आचार्य ने कहा कि धन से दरिद्र हो लेकिन धर्म से संपन्न हो उसे मेरा प्रणाम है। संसार की विभूति चाहिए तो धर्म धनी बन जाइए। संसार का धन भी तभी आएगा जब धर्म होगा। जिसके पास वीतराग धर्म है वही जीव वित्त को प्राप्त कर सकता है। यदि आपको दिन में किंचित मात्र भी समय न मिलता हो तो रात्रि में भगवान का नाम ले लेना, रात्रि भोजन त्याग हमारे यहां बताया गया है, लेकिन भगवान का नाम तो दिन रात ले सकते हो।
आचार्य ने कहा कि कुछ ऐसे अभागे लोग हैं, जो दिन में व्यापार करते हैं, रात्रि में भोजन करते हैं और जो समय बचता है, घर के संबंधियों से संबंध की बातें करते हैं। जिससे सब कुछ मिलता है उस धर्म को भूल ही जाते हैं। यदि आपने वीतराग संपत्ति का आश्रय न लिया होता तो आज यहां तक नहीं होते। जितने भी मित्र आपके हैं सब से बोल देना कि एक बार भोजन का समय काट देना, पानी का समय रोक देना, लेकिन अरिहंत की भक्ति का समय मत रोकना, निगर््रंथों के दान का समय मत रोकना, बागेश्वरी जिनभारती जिनवाणी के श्रवण का समय मत रोकना।