एक माह में 400 से अधिक हाथियों से आर्थिक नुकसान, किसानों में मुआवजा दर को लेकर नाराजगी
वर्तमान में, हाथियों द्वारा फसल हानि पर रुपए 9 हजार प्रति एकड़ की दर से औसत क्षतिपूर्ति रुपए 15 करोड़ प्रतिवर्ष दी जाती है। अगर धान फसल की क्षतिपूर्ति रुपए 50 हजार प्रति एकड़ कर दी जाती है तो राज्य सरकार को 65 करोड रुपए का अतिरिक्त व्यय आएगा। राज्य के रुपए 1,25,000 लाख करोड़ के बजट का सिर्फ 0.05 प्रतिशत ही होगा।
By Manoj Kumar Tiwari
Publish Date: Mon, 18 Nov 2024 09:43:47 AM (IST)
Updated Date: Mon, 18 Nov 2024 09:43:47 AM (IST)
हाथियों का दल HighLights
- देश का एक प्रतिशत हाथी छत्तीसगढ़ में।
- सिर्फ रायगढ़ जिले में 150 से अधिक हाथी ।
- हाथी-मानव द्वंद का कारण लोग परेशान।
नईदुनिया प्रतिनिधि, रायगढ़। छत्तीसगढ़ में देश के 1 प्रतिशत हाथी है। मानव द्वंद से जनहानि की दर 15 प्रतिशत से अधिक है।
वर्तमान में प्रचलित, हाथियों द्वारा फसल हानि की क्षतिपूर्ति की दर 8 वर्ष पहले 2016 में, तत्कालीन दरों से रुपए 9 हजार प्रति एकड़ निर्धारित की गई थी, मुआवजा राशि बेहद कम है।आलम यह है कि रायगढ़ जिले में सबसे ज्यादा 152 हाथियों की मौजूदगी है। इधर किसानों की धान की फसल कही पक कर तैयार तो कही कतार में है।
किसानों में भारी रोष
आबादी और खेत खलिहान में हाथियों के तांडव मचाने किसानों को वृहद स्तर में आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। जिसमे जिले में एक माह में 400 से अधिक बड़े तथा आंशिक तौर पर फसल नुकसान के प्रकरण सामने आए है।
बीते सप्ताह भर से प्रतिदिन 30 से अधिक प्रकरण दर्ज हुए हैं। ऐसे में आर्थिक नुकसान में मिलने वाले मुआवजा प्रकरण की राशि कम होने पर किसानों में भारी रोष है।
हाथियों द्वारा फसल हानि की क्षतिपूर्ति की दर 8 वर्ष पहले 2016 में, तत्कालीन दरों से रुपए 9 हजार प्रति एकड़ निर्धारित की गई थी। वर्ष 2016 में धान की मिनिमम सेल्लिंग प्राइस अर्थात एम.एस.पी. रुपए 1410 प्रति क्विंटल थी।
सरकारी खरीदी दर बढ़ कर 2024 में रुपए 3100 प्रति क्विंटल
छत्तीसगढ़ में धान की सरकारी खरीदी दर बढ़ कर 2024 में रुपए 3100 प्रति क्विंटल हो गई है। तुलना करने पर रुपए 1410 से 120 प्रतिशत बढ़ कर 2024 में 3100 प्रति क्विंटल हो गई है।
हाथियों से नुकसान पर मुआवजा और समर्थन मूल्य में भारी अंतर
किसानों को फसल हानि की क्षतिपूर्ति तब ही दी जाती है जब कम से कम 33 प्रतिशत का नुकसान हुआ हो। इस तरह से 2024 के दौर में 2016 के दर से मुआवजा राशि निर्धारित के हिसाब से दी जा रही है। वही, हाथियों का दल यदि एक एकड़ में लगी धान की फसल को शत -प्रतिशत नुकसान पहुंचाता हैं तो किसान को अधिकतम नौ हजार रुपये का ही मुआवजा मिल सकता है।
उसी एक एकड़ से उत्पादित 21 क्विंटल धान को समर्थन मूल्य पर बिक्री करने से किसान को सीधे 65 हजार रुपये मिलते हैं। हाथियों से नुकसान पर मुआवजा और समर्थन मूल्य में भारी अंतर है। यह अंतर मानव-हाथी द्वंद का एक प्रमुख कारण बनता जा रहा है।
करंट से हो रही हाथियों की मौत
राज्य के अलग-अलग क्षेत्रों में करंट से हाथियों की मौत हो रही है। कही करंट से तो कहीं अन्य कारण प्रमुख वजह है। इसके साथ ही आम जन किसान खेतो की रखवाली समेत अन्य कारणों से मौत के आगोश में हाथियों के चलते समा रहे है। यही कारण है कि अब हाथियों से फसल क्षति पर मुआवजा में वृद्धि की मांग शुरू हो चुकी है।
नुकसान के मुकाबले कम मुआवजा
यहां यह बताना लाजमी होगा कि राज्य में सबसे अधिक हाथी रायगढ जिले के दोनों वन मंडल में हैं,प्रदेश में रिकार्ड के मुताबिक 340 हाथी विचरण विभिन्न जंगलों में कर रहे है। जबकि रायगढ़ में इनकी संख्या 152 से अधिक है, ये अलग-अलग झुंड में 30 से 40 की संख्या में विचरण कर रहे है।नुकसान के मुकाबले कम मुआवजा मिलने से वे काफी नाराज़गी भी जाहिर किए है। इसकी शुरुआत पखवाड़े भर पहले घरघोड़ा क्षेत्र के किसानो ने आंदोलन कर किए हैं और अब व्यापक स्तर में इसकी तैयारी कर रहे है।
बेहतर मुआवजा राशि से किसान होंगे सशक्त
किसान कई बार हाथी सहित अन्य वन्यप्राणियों से फसल बचाने के लिए तार में बिजली प्रभावित कर देते है, जिससे हाथी और अन्य वन्यप्राणि ही नहीं बल्कि ग्रामीणों की मृत्यु की भी घटनाएं बढ़ रही है।
अगर एकड़ में 50 हजार की दर से भुगतान करने पर किसान अपनी जान जोखिम में डाल कर फसल बचाने हाथी का सामना नहीं करेंगे और ना ही हाथियों को परेशान कर भगाने का प्रयत्न करेंगे, जिसमे जन हानि हो जाती है। इस तरह किसान भी सशक्त होंगे।
2024 के दौर में 2016 की दर से मुआवजा बना रहा है विसंगतियों का पहाड़ हाथियों द्वारा फसल हानि की क्षतिपूर्ति की दर 8 वर्ष पहले 2016 में, तत्कालीन दरों से रुपए 9 हजार प्रति एकड़ निर्धारित की गई थी। वर्ष 2016 में धान की मिनिमम सेल्लिंग प्राइस अर्थात एम.एस.पी. रुपए 1410 प्रति क्विंटल थी।
छत्तीसगढ़ में धान की सरकारी खरीदी दर बढ़ कर 2024 में रुपए 3100 प्रति क्विंटल हो गई है। तुलना करने पर रुपए 1410 से 120 प्रतिशत बढ़ कर 2024 में 3100 प्रति क्विंटल हो गई है। किसानों को फसल हानि की क्षतिपूर्ति तब ही दी जाती है जब कम से कम 33 प्रतिशत का नुकसान हुआ हो। इस तरह से 2024 के दौर में 2016 के दर से मुआवजा राशि निर्धारित के हिसाब से दी जा रही है।इस वजह से मांग रहे है
किसान 50 हजार रुपये एकड़ क्षतिपूर्ति
किसानों से सरकार 21 क्विंटल प्रति एकड़ धान खरीदती है। रुपए 3100 प्रति क्विंटल की दर से किसान को प्रति एकड़ रुपए 65,100 की राशि धान बिक्री से प्राप्त होती है और उसका प्रति एकड़ खर्चा लगभग रुपए 15 हजार कम कर दिया जावे तो किसान को प्रति एकड़ रुपए 50 हजार की बचत होती है। इसलिए धान की फसल की क्षतिपूर्ति की दर कम से कम रु 50 हजार प्रति एकड़ की जाये।बजट का सिर्फ 0.05 प्रतिशत राशि से जन हानि कम होगी।
अतिरिक्त क्षतिपूर्ति राशि मिलना सुनिश्चित पाए जाने पर ग्रामीणों में नाराजगी कम होने के साथ साथ किसानों/ग्रामीणों के मध्य मानव-हाथी द्वन्द कम होगा। जिससे जनहानि कम होने के साथ साथ वन्यप्राणी की भी रक्षा होगी और जनहानि पर दी जाने वाली राशि भी कम होगी।