सुरेश देवांगन, कोरबा। Heritage Of Chhattisgarh: दक्षिण कौशल के नाम से विख्यात छत्तीसगढ़ की प्राचीन राजधानी तुम्हाणखोल अपनी ऐतिहासिक गरिमा धरोहर संरक्षण के अभाव में धूमिल हो रही है। जिला के अस्तित्व में आने के 20 वर्ष बाद भी जिला पुरातत्व संग्रहालय को समृद्ध नहीं किया जा सका है। सामरिक महत्व के स्थलों में प्राचीन धरोहर असुरक्षित हैं। पुरातत्व विभाग में एक भी नियमित कर्मचारी नहीं है। ऐसे में पुरातत्व संग्रहालय का औचित्य महज औपचारिक ही साबित हो रहा है।
तुमान के नाम से विख्यात कलचुरी राजाओं की राजधानी तुम्हाणखोल गौरवशाली इतिहास का साक्षी रहा है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद संरक्षण के आसार अब बिखरते नजर आ रहे हैं। कहने को तो यहां भारत सरकार की ओर से संरक्षित धरोहर है, जिसे सुरक्षित करने उनकी सीमा बना दी गई है। सांस्कृतिक धरोहर संरक्षण के लिए कर्मचारियों की आवश्यकता होने के बाद भी नियुक्ति नहीं की है।
नियमित वेतनभोगी के तौर पर कार्यरत तीन कर्मचारियों को जगदलपुर संग्रहालय से स्थानांतरित कर कोरबा भेजा गया है। संरक्षित स्मारक वाले स्थलों में कर्मचारियों का अभाव है। तुमान में मंदिरों की श्रृंखला देखकर पता चलता है कि यहां बहुत से और भी पुरातात्विक धरोहरों की भरमार होगी। बस्ती में स्थित तालाब के गहरीकरण के दौरान भी ईंटों से बना एक मंदिर व स्मारक की नींव प्राप्त हुई थी, जिसे जेसीबी मशीन से खोदाई कर तोड़ दिया गया था।
गांव के बुजुर्गों की मानें तो जटाशंकर नदी के उस पार पहले सतखंडा महल हुआ करता था, जिसका निर्माण बड़े-बड़े पत्थरों से हुआ था। संरक्षण के अभाव में यह नष्ट हो चुका है। एक बार तो वहां से दो घड़े कौड़ी से लदे निकले और अन्य सामान भी निकला था, जो नदी में बह गया। प्रशासन स्तर पर पुरातात्विक संरक्षण के अभाव में प्राचीन धरोहर धीरे-धीरे विलुप्त हो रहे हैं। जिला पुरातत्व विभाग में दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों का उनके मूल स्थान जगदलपुर से स्थानांतरण करा कर उन्हें परेशान किया जा रहा है। कर्मचारियों को अप्रैल माह से अब तक वेतन का भुगतान नहीं हुआ है।
जमीन के भीतर छुपा राज
तुमान का ऐतिहासिक रहस्य आज भी जमीन के भीतर दबा हुआ है। उत्खनन से कई बाते सामने आ सकती है। प्राचीन काल 850-1015 के बीच यहां कलचुरी नरेश का शासनकाल था। तुमान में पृथ्वी देवेश्वर नाम से एक मंदिर का निर्माण करवाया जो इसी परिसर में है पर वह कौन सा मंदिर है, इसे बताने वाला कोई नहीं। पृथ्वी देव प्रथम ने ही अपने शासनकाल में प्रसिद्ध महिषासुर मर्दिनी मंदिर का निर्माण चैतुरगढ़ में कराया था, जो आज भी दर्शनीय स्थल में शामिल है।
गड़ा धन की तलाश में धरोहर की क्षति
जानकारों की मानें तो वर्षों पहले कौड़ी से भरा घड़ा यहां पाया गया था। ऐतिहासिक स्थल होने से लोग अक्सर यहां गड़ा धन होने की संभावना लेकर उत्खनन के लिए आते हैं। संरक्षक नियुक्त नहीं होने के कारण ऐतिहासिक स्थल परिसर में रखी प्रतिमाएं खंडित हो चुकी है। पुरातात्विक संग्रहालय में कुछ सामानों को सहेजा जा सका है, जबकि ऐसे कई समान हैं जो स्थानीय ग्रामीणों के निजी कब्जे में हैं।