सेहतमंद उपज: जीवामृत ने कृषि करने की लागत को किया कम, प्राकृतिक खेती से राह हुई आसान
जीवामृत विधि से बीते वर्ष 34 किसानों ने खेती की थी। जिसका परिणाम बेहतर आया मिला। कम लागत में अधिक उपज होने से प्राकृतिक विधि से खेती करने वालों की संख्या 154 हो गई है।करतला विकासखंड के किसानों को प्राकृतिक खेती भाने लगी हैँ।
By Manoj Kumar Tiwari
Publish Date: Sun, 24 Nov 2024 08:56:56 AM (IST)
Updated Date: Sun, 24 Nov 2024 08:56:56 AM (IST)
जीवामृत के छिड़काव से कम लागत में तैयार सुगंधित धान, नईदुनिया HighLights
- किसानों ने प्राकृतिक खेती की राह में जीवामृत तैयार किया।
- जीवामृत गोमूत्र, गोबर, गुड़ व बेसन के मिश्रण से होता है तैयार।
- रासायनिक खाद व दवा से मुक्त खेतों में बढ़ रही उर्वरा क्षमता।
नईदुनिया प्रतिनिधि, कोरबा। रासायनिक खाद और दवाओं के छिड़काव से खेतों को मुक्त करने के साथ लागत में कमी लाने के लिए रामपुर, डोंगदरहा, नोनबिर्रा और जोगी पाली के किसानों ने प्राकृतिक खेती की राह चुन ली है। इसके उन्होने जीवामृत तैयार किया है।
गोबर, गोमूत्र, गुड़ और बेसन के मिश्रण से इसे तैयार कर खेतों में छिड़काव किया जाता है। रासायनिक खाद और दवा डालने से प्रति एकड़ 10 हजार रुपये खर्च आता था। साल दर साल मिट्टी की उर्वरा क्षमता घटने और उत्पादन में कमी आने से किसान खासे परेशान थे।
नाबार्ड यानी नेशनल बैंक फार एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट से सहयोग
ग्राम बरतोरी शिक्षण विकास समिति के अध्यक्ष सूर्यकांत सोलखे ने इस समस्या को गंभीरता से लिया। उन्हाेने क्षेत्र के बुधराम राठिया, रामेश्वर राठिया, रामलाल सहित अन्य किसानों ने प्राकृतिक खेती करने का निर्णय लिया। इसके लिए उन्होने नाबार्ड यानी नेशनल बैंक फार एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट से सहयोग लिया।
संस्था से जुड़ी कृषि प्रशिक्षण टीम ने किसानों का जीवामृत से अवगत कराया।
- प्रारंभिक वर्ष में 34 किसानों ने 34 एकड़ में प्राकृतिक खेती की।
- जीवामृत छिड़काव केवल डेढ़ हजार रुपये खर्च आया। यानी लागत में 8.50 हजार रुपये की कमी आई।
- किसानों ने अपने खेत में सुगंधित धान और मूंगफली का फसल लिया। फसल उत्पाद में सफलता को देखते हुए इस वर्ष किसानों की संख्या में वृद्धि हुई है। 245 एकड़ में फिर से यही फसल लिया है।
किसान रामसिंह केवट का कहना है कि उसने अपने खेत में रामजीरा धान का फसल लगाया है। जिस लागत में मोटा अनाज तैयार होता था उसी में सुगंधित धान की उपज हुई। प्रदेश सरकार 3100 रुपये में धान खरीदी रही है। सुगंधित धान का बाजार में 4500 रुपये होने से उसे अधिक लाभ होगा।इस तरह तैयार होता है
जीवामृत खाद
जीवामृत खाद तैयार किए जाने के संबंध में ग्राम बरतोरी शिक्षण समिति के अध्यक्ष सोलखे ने बताया कि एक एकड़ खेत में जीवामृत तैयार करने में 10 लीटर गोमूत्र, 10 किलो गोबर, एक किलो गुड़ और एक किलो बेसन को मिलाया जाता है। ड्रम में इस मिश्रण को घोल को सात दिन छांव में रखा जाता है। इस दौरान घोल को प्रतिदिन डंडे से हिलाया जाता है। जीवामृत के इस मिश्रण को तैयार करने के चार से पांच दिन के भीतर खेतों में छिड़काव कर लिया जाता है। लंबे समय तक उपयोग के लिए इसे कंडा जैसा आकार देकर छांव में सुखाया जाता है।
फसल परिवर्तन से उत्पादन में वृद्धि
किसानों ने बताया कि धान और मूंगफली के बाद रबी में हल्दी, अदरक व सब्जी खेती की तैयारी कर रहे हैं। एक ही तरह की फसल बार-बार लिए जाने से खेतों की उर्वरा क्षमता में कमी आती है। फसल परिवर्तन की राह अपनाते हुए कई किसान अपने खेत में सब्जी, दलहन व तिलहन की फसल बोआई कर रहे हैं। क्षेत्र के ज्यादातर किसान व्यवासियक खेती से जुड़े होने की वजह तकनीकी विधि से कृषि की राह अपना रहे हैं।
तैयार हो रहा उपचारित बीज
जीवामृत से खेती करने का सबसे बड़ा लाभ किसानों को यह है कि उन्हे बाजार बीज खरीदने की जरूरत नहीं पड़ रही। उपचारित बीज का न केवल स्वयं उपयोग कर रहे हैं बल्कि बिक्री से भी अच्छी आमदनी हो रही है। इस बीज के उपयोग से फसल में बीमारी की आशंका भी कम रहती है। पारंपरिक प्राकृतिक खेत के माध्यम से क्षेत्र में सामूहिक खेती को बढ़ावा मिल रहा है। किसान अपने उपज को बाजार में खपाने में समर्थ हैं। मूंगफली की खपत शहर के बाजारों में ही हो जाती है। वहीं सुगंधित धान को महामाया समिति के माध्यम से विक्रय कर रहे हैं।