हेमंत कश्यप, जगदलपुर। छिंदक नागवंशीय राजाओं द्वारा वर्ष 1065 के पहले राजपुर में बनवाए गए महल में चालुक्यों के बाद मराठों ने कब्जा किया था और पूरे 174 साल तक यहां रहते हुए बस्तर रियासत से कर वसूली कर धान नागपुर भेजते रहे। इस महल के भग्नावशेष आज भी राजपुर में विद्यमान है। लोक मान्यता है कि यहां गड़े धन संपत्ति की रक्षा अंतिम नागवंशीय राजा रानी इच्छाधारी नाग नागिन के रूप में करते हैं इसलिए इस खंडहरों की तरफ आने से आज भी ग्रामीण घबराते हैं।
कहां है राजपुर महल
बस्तर विकासखंड अंर्तगत राजपुर नारंगी नदी किनारे ग्राम पंचायत मुख्यालय है। इस गांव के बाहर वनप्रांत में पुराने महल का भग्नावशेष हैं। करीब दो एकड़ में महल के भग्नावशेष बिखरे पड़े हैं। स्थानीय ग्रामीण इसे छेरकीन महल भी कहते हैं। महल के सामने भव्य प्रवेश द्वार है।
वहीं महल का मुख्यद्वार जगदलपुर राजमहल के सिंहद्वार से भी बड़ा है। महल का आवासीय हिस्सा पूरी तरह ढह चुका लेकिन महल के रक्षक देव के रूप में भगवान गणेश और घोड़े पर सवार करनाकोटीन देव की प्रतिमा आज भी विद्यमान है किंत सिंहद्वार के छह खंडों में स्थापित पुरानी मूर्तियां गायब हो चुकी हैं।
ऐतिहासिक है महल
पांच अप्रेल 1065 ई. का राजपुर अभिलेख यह प्रमाणित करता है कि नागवंशी बोदरागढ़ नरेश मधुरांतक देव का यहां आधिपत्य था। उसने नरबलि के लिए राजपुर नामक गांव माणिकेश्वरी देवी मंदिर को अर्पित किया था। जब यहां चालुक्य राजाओं का आक्रमण हुआ तो उस दौर के राजा-रानी की महल में हत्या कर दी गई थी। वर्ष 1774 तक यहां चालुक्य राजाओं का कब्जा रहा। इसके बाद नागपुर के भोंसले प्रशासन का यहां कब्जा हो गया और वे यहां करीब दो शताब्दी तक रहे।
इच्छाधारी नाग हैं रक्षक
राजपुर सहित मुंडागांव, गुनपुर, सरगीगुड़ा, कावड़गांव सहित दर्जनभर गांव के लोग इस महल में आने से कतराते हैं। मुडागांव स्थित माणिकेश्वरी (मावली) मंदिर के पुजारी सुखदेव ठाकुर व ग्रामीण पूरनलाल पटेल बताते हैं कि वे अपने बुजुर्गों से सुन रखे हैं कि करीब साढ़े नौ सौ साल पहले जब छेरकीन महल में हमला हुआ था, तब तत्कालीन राजा-रानी ने अपनी संपत्ति महल के तहखाने में छुपा दी थी।
इधर आक्रमणकारियों ने राजा-रानी की हत्या कर दी। वही राजा-रानी इस महल में इच्छाधारी नाग-नागिन के रूप में रहते हुए हैं और अपनी संपत्ति की रक्षा करते हैं। वे यहां आने वाले लोगों को मार सकते हैं। इस डर से ग्रामीण इस महल की तरफ नहीं आते।
ग्रामीण इस बात को भी स्वीकारते हैं महल की तरफ आवाजाही नहीं होने का लाभ मूर्ति चोरों ने उठाया और सिंहद्वार में लगी पुरानी मूर्तियां चुराकर ले गए हैं। हर साल दशहरा के मौके पर ग्रामीण यहां गणेश और करनाकोटीन देव की पूजा करने आते हैं। ग्रामीणों की यहां काफी आस्था है। आसपास के क्षेत्रों से पर्यटक भी खंडहर हो चुके इस महल को देखने के लिए आत है।