रीतेश पांडेय, जगदलपुर (नईदुनिया)। मनुष्य की आवाज हूबहू नकल करने में तोते से भी अधिक सक्षम पहाड़ी मैना को छत्तीसगढ़ की राजकीय पक्षी का दर्जा हासिल है। बावजूद इसके बस्तर में तेजी से इनकी संख्या कम होती जा रही है। पिंजरे में मैना पक्षी की ब्रीडिंग के लिए कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान द्वारा बीते चार दशक से प्रयोग किया जा रहा है, लेकिन लाखों रुपये फूंकने के बाद भी यह कवायद सफल न हो सकी। अब विभाग पिंजरे से निकालकर कोटमसर व कोलेंग क्षेत्र में इन पक्षियों को शिफ्ट करने की योजना पर काम कर रहा है। विभाग भारतीय वन्य जीव संस्थान का सहयोग भी इसमें लिया जा रहा है। पहाड़ी मैना के उचित रहवास के लिए स्थल का सर्वे किया जा रहा है।
ज्ञात हो कि बस्तर में तिरिया, कोलेंग, कोटमसर व बैलाडीला के जंगल में पहाड़ी मैना पाई जाती है। चमकीले काले रंग, नारंगी चोंच और पैरों की बनावट से इसे आसानी से पहचाना जा सकता है। पहाड़ी मैना की दुनिया भर में लगभग 31 प्रजातिया पाई जाती हैं। इसका जीवनकाल 15 से बीस वर्ष के आसपास होता है। जब यह परिंदे गुस्से में होते हैं तो यह कर्कश आवाज पैदा करते हैं और जब शांत होते हैं तो मधुर आवाज निकालते हैं।
छत्तीसगढ़ राज्य के अस्तित्व में आने के बाद पहाड़ी मैना को राजकीय पक्षी घोषित किया गया। कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान द्वारा वर्ष 1992 से विशालकाय पिंजरे में मैना के जोड़ों को रखकर ब्रीडिंग का प्रयास किया जा रहा है। पक्षी विज्ञानियों के परामर्श से इन्हें सीजन अनुसार सत्तु, अनार, दाने आदि दिए जाते रहे हैं। पूर्व में दर्जन भर पक्षी पिंजरे में मौजूद थे, पर बीमारी के चलते उनकी मौत हो गई। वर्तमान में वन विद्यालय में एक जोड़ी मैना रखी गई है। इनकी देखभाल के लिए एक चौकीदार की तैनाती की गई है।
रोजाना एक पक्षी पर 75 रुपये का खर्च विभाग को होता है। जानकारों के अनुसार पहाड़ी मैना शांत स्वभाव का पक्षी है। उनका प्रजनन जंगल में नैसर्गिक परिवेश में होता है। फारेस्ट स्कूल एनएच से लगा हुआ है। वहीं कुछ दूरी पर रेलवे लाइन भी गुजरी है। ऐसे में पक्षियों को शांत वातावरण सुलभ नहीं हो पा रहा। यह भी बताया जाता है कि जंगल के प्राकृतिक आहार के प्रतिकूल भोजन के चलते भी पक्षी पिंजरे में अंडा तो देती है पर वह परिपक्व नहीं होता है इसलिए उससे चूजे उत्पन्ना नहीं हो पाते। विभाग की ओर से अब ब्रीडिंग के लिए प्राकृतिक परिवेश का चयन करने के लिए भारतीय वन्य जीव संस्थान के सहयोग से आसपास के वन्य गांवों का सर्वे किया गया है। इसके बाद पक्षियों को वहां शिफ्ट किया जाएगा।
प्रजनन काल
पहाड़ी मैना का प्रजनन काल मार्च और अक्टूबर के बीच होता है। मादा एक समय में लगभग तीन अंडे तक देती है, जो नीले रंग के होते हैं। मादा 14 से 18 दिनों तक अंडों को सेती है। चूजे आने पर उनका पालन पोषण नर और मादा दोनों ही पक्षी मिलकर करते हैं।
इन वजहों से विलुप्त हो रही है पहाड़ी मैना
जानकारों के अनुसार बस्तर में प्रचलित पारद (शिकार ) के चलते इनकी संख्या में घट रही है। ग्रामीण गुलेल से पक्षियों का शिकार करते हैं। इसके अलावा वर्ष 1967 में वाइल्ड लाइफ बोर्ड द्वारा बनाई गई नीति के अनुसार पांच से दस रुपये चुकाकर कुछ वन्य जीव व पक्षियों के शिकार की छूट दी गई थी। इस वजह से भी पहाड़ी मैना की आबादी में फर्क पड़ने की बात जानकार कहते हैं। वन विभाग के पास जंगल में मौजूद पक्षियों की संख्या का किसी प्रकार का रिकार्ड नहीं है। हांलाकि अन्य जीवों की संख्या का सालाना सर्वे किया जाता है।
विभाग सही योजना नहीं बना पाया
छत्तीसगढ़ राज्य वन्य जीव बोर्ड के सदस्य हेमंत कश्यप ने बताया कि 30 वर्षों से वन विद्यालय के विशाल पिंजरे में पहाड़ी मैना के संवर्धन का प्रयास किया जा रहा है पर विभाग असफल रहा है। पहाड़ी मैना के संवर्धन और उनकी दिनचर्या पर गंभीरता में अध्ययन करना है तो इस पिंजरे को कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के कोटमसर क्षेत्र में स्थानांतरित कर देना चाहिए। वन विद्यालय में जहां यह पिंजरा है उसके एक तरफ रेल लाइन तो दूसरी तरफ नेशनल हाइवे है। लगातार शोरगुल के चलते पहाड़ी मैना को वनांचल जैसा माहौल यहां नहीं मिल पा रहा है। लंबे समय से पिंजरे को कोटमसर में स्थानांतरित करने की चर्चा तो हो रही है लेकिन इस संदर्भ में विभाग अब तक कोई प्रोजेक्ट तैयार नहीं कर पाया है।
गांवों में चलाया जा रहा जागरूकता अभियान
पहाड़ी मैना के संवर्धन के लिए गांवों में जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। भारतीय वन्य जीव संस्थान के सहयोग से सर्वे भी करवाया गया है। उचित गांव का चयन कर वन विद्यालय से पक्षियों को वहां शिफ्ट किए जाने की योजना है।
विजया रात्रे, संचालक कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान