जगदलपुर। लोहंडीगुड़ा ब्लाक के सतसपुर, चंदेला आदि ग्रामों से गुरूवार को कलेक्टर जनदर्शन में पहुंचकर दर्जनों युवाओं ने खुद को दोरला जनजाति का बताते हुए राजस्व अभिलेख से अंकित दोरा जाति को खारिज करने की गुहार लगाई है।
ये युवा अफसरों से मुलाकात में सिर्फ एक बात कह रहे थे कि साहब दोरा हैं हम दोरला बना दीजिए। कलेक्टर से इनकी मुलाकात नहीं हो पाई अलबत्ता इन्होंने उप संचालक आदिम जाति अनुसंधान एवं सर्वेक्षण इकाई से मिलकर विस्तार से अपनी मांग रखी।
युवाओं ने कहा कि स्कूल रिकार्ड में उनकी जाति दोरला चली आ रही है पर राजस्व रिकार्ड में जाति दोरा अंकित है जबकि भारत शासन द्वारा अधिसूचित अजा, अजजा और अपिवर्ग में दोरा नाम की किसी जाति का उल्लेख है नहीं। युवाओं का दावा था कि लोहंडीगुड़ा और कोंडागांव में निवासरत करीब दो सौ परिवार इस समस्या से जूझ रहे हैं।
वे लोग आदिवासी हैं पर जाति प्रमाणपत्र बनाने वाले अधिकारी इसे लेकर राजी नहीं हैं। इसके चलते उन्हें अनाररिक्षत वर्ग का मानकर शासन की अजजा वर्ग से जुड़ी कोई योजना का लाभ नहीं मिल रहा है। राजस्व रिकार्ड के आधार पर दोरा जाति दर्ज होनें से उन लोगों को बड़ी परेशानी हो रही है।
नईदुनिया से चर्चा में विश्वनाथ, मंगरू, सोमारू, सरादू, तुलसी आदि युवाओं ने बताया कि वे लोग पिछले आठ सालों से जाति से जुड़े इस मामले को लेकर लड़ाई कर रहे हैं पर अभी तक किसी तरह की सफलता नहीं मिली है।
बस्तर में ही निवास करती है दोरला
दोरला जनजाति गोंड की उपजाति है जो पूरे देश में सिर्फ बस्तर संभाग के सुकमा और बीजापुर जिले में ही निवासरत है। दक्षिण बस्तर में नक्सली हिंसा बढ़ने तथा रोजगार की तलाश में पलायन करके कुछ परिवार पड़ोसी राज्य तेलंगाना और आंध्रप्रदेश में बस गए हैं। वहीं बस्तर में दोरा जाति का कोई उल्लेख नहीं मिलता है। पहली बार दोरा का मामला प्रकाश में आया है।
उपसंचालक ने कहा शासन को अवगत कराउंगा
उपसंचालक आदिम जाति अनुसंधान एवं सर्वेक्षण इकाई एमएल पंसारी ने नईदुनिया को बताया कि उनके पास दोरा और दोरला का मामला आया है। ग्रामीणों से मिले आवेदन को शासन को भेजा जाएगा। पंसारी ने कहा कि यदि शासन का निर्देश होगा तो दोरा जाति का मानवशास्त्रीय अध्ययन करा लिया जाएगा पर अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। जांच के बिना वह कुछ नहीं कह सकते।