जगदलपुर। चार साल पहले विधानसभा चुनाव के समय बस्तर संभाग में सत्ताधारी दल भाजपा की नाक में दम करने वाली माहरा जाति के जातिसूचक शब्द के उच्चारण विभेदों को खत्म करने के राज्य शासन के निर्णय से अनुसूचित जाति वर्ग में शामिल होने का रास्ता साफ हो गया है।
इससे समाज का एक छोटा तबका खुश है वहीं बड़ा तबका इसे चुनाव पूर्व सत्ताधारी दल द्वारा समाज को साधने का प्रयास मानकर चल रहा है। बस्तर संभाग के कांकेर को छोड़कर बाकी छह जिलों में माहरा जाति की आबादी साढ़े तीन लाख से अधिक है। इस वर्ग के मतदाताओं की संख्या भी डेढ़ लाख के आसपास है।
अविभाजित मध्यप्रदेश के समय अजा वर्ग में शामिल रही यह जाति छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद मात्रात्मक त्रुटि के चलते अजा वर्ग से बाहर चल रही थी। समाज के लोग हालांकि अनुसूचित जनजाति वर्ग में शामिल करने की मांग करते आ रहे हैं लेकिन राज्य शासन ने नृजातीय अध्ययन रिपोर्ट का हवाला देते हुए इन्हें अजा वर्ग में शामिल करने का प्रस्ताव किया हुआ था।
भले ही रिपोर्ट केन्द्र शासन को अभी तक नहीं भेजी जा सकी है। विदित हो कि साल 2013 के विधानसभा चुनाव के पहले यह मुद्दा काफी जोर- शोर से उठा था। यही नहीं माहरा आबादी और अजजा वर्ग दोनों कई मौकों पर आमने-सामने भी आ गए थे।
मात्रात्मक त्रुटि सुधार के निर्णय से माहरा जाति को अजा वर्ग में स्थान मिलना तय हो गया है। समाज के वरिष्ठ सदस्य ताजा हालत की समीक्षा करने में जुट गए हैं और आगामी दिनों में आगे की रणनीति तय करने बैठक भी बुलाने की बात कह रहे हैं।
सर्वाधिक आबादी बस्तर में
कांकेर को छोड़ संभाग के बाकी छह जिलों में माहरा समाज की काफी आबादी है। इस जाति के लोग सबसे अधिक बस्तर जिले में निवासरत हैं। माहरा समाज बस्तर संभाग द्वारा 2013 में कराए गए आबादी सर्वेक्षण जिसे आदिम जाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान रायपुर ने भी स्वीकार किया है, के अनुसार संभाग के 139 गांवों में इनकी आबादी उस समय 3 लाख 54 हजार बताई गई थी।
इनमें एक लाख 79 हजार पुरूष और एक लाख 75 हजार महिलाएं थीं। करीब पांच साल पूर्व हुए इस सर्वेक्षण के आंकड़ों में आज की स्थिति में 5 से 10 फीसदी की बढ़ोत्तरी होने की संभावना जताई जा रही है। बस्तर जिले में इनकी अनुमानित आबादी 2 लाख 72 हजार, दंतेवाड़ा में 22 हजार, बीजापुर में 19 हजार, सुकमा में 30 हजार, नारायणपुर में 5 हजार और कोंडागांव में करीब सात हजार बताई जाती है।
कांग्रेस ने चुनाव में उतार खेला था गेम
विधानसभा चुनाव के समय माहरा सामाज की सत्ताधारी दल भाजपा से नाराजगी का फायदा उठाने कांग्रेस ने जगदलपुर अनारक्षित सीट से समाज के सामूराम कश्यप को टिकट देकर चुनाव लड़ाया था। हालांकि कांग्रेस का यह दांव जगदलपुर सीट पर उल्टा पड़ गया था। चुनाव में यहां कांग्रेस को हार मिली लेकिन दूसरी ओर बस्तर, चित्रकोट व अन्य विधानसभा क्षेत्रों में काफी वोटों के अंतर से कांग्रेस की जीत में इस समाज के समर्थन को भी प्रमुख कारण बताया गया था।
नृजातीय अध्ययन रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुई
माहरा समाज द्वारा अजजा वर्ग में शामिल करने साल 2012-13 में चलाए गए आंदोलन व अभियान को ठंडा करने राज्य शासन ने नृजातीय अध्ययन कराया था। जानकारों की मानें तो 2013 में कराए गए नृजातीय अध्ययन की रिपोर्ट अभी तक केन्द्र शासन को नहीं भेजी गई है।
नईदुनिया को राजधानी के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार नृजातीय अध्ययन में संभाग के छह जिलों के 137 गांवों के 585 परिवारों को शामिल किया गया था। अध्ययन रिपोर्ट में माहरा जाति को अजा वर्ग के ज्यादा करीब बताया गया है। रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं होने से विस्तृत जानकारी चार साल बाद भी सामने नहीं आ पाई है।
तेरहवीं शताब्दी में आए थे बस्तर
नृजातीय अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार माहरा जाति की उत्पत्ति के संबंध में जानकारी का अभाव है। माहरा जाति के इतिहास के संबंध में अध्ययन के दौरान मिली जानकारी के अनुसार माहरा जाति आंध्रप्रदेश के वारंगल से बस्तर राजा के साथ आई थी। इनके पूर्वजों का कार्य वारंगल के मंदिरों में पूजा- आराधना के दौरान मोहरी बजाकर देवी-देवताओं को प्रसन्न करना था। ऐसा माना जाता है कि कि मोहरी बजाने का काम करने के कारण ही इन्हें माहरा कहा जाने लगा।