अनिल मिश्रा, जगदलपुर । भगवान राम के साथ दंडकारण्य का उल्लेख हमेशा आता है। दंडकारण्य में ही उन्होंने वनवास गुजारा था। यहीं से होकर वह लंका तक गए थे। राम से जुड़े कई स्थल यहां पर आज भी विद्यमान हैं। इधर दंडकारण्य की पावन भूमि पर एक तुलसीदास भी हुए हैं, जिनका नाम है रामसिंह ठाकुर। बस्तर के नारायणपुर में रहकर उन्होंने कई उल्लेखनीय काम किए। उन्होंने रामचरित मानस और गीता का स्थानीय हल्बी भाषा में अनुवाद किया है। हल्बी की रामायण की वजह से उन्हें बस्तर का तुलसीदास कहा जाता है।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी रामसिंह ठाकुर ने किशोरावस्था से लेकर मृत्युपर्यंत बस्तर के लिए कई उल्लेखनीय काम किए। वह कुशल चित्रकार, फोटोग्राफर, व्याकरणाचार्य, लेखक, मूर्तिकार, शिक्षक और पत्रकार थे। किशोरावस्था में उन्होंने जगदलपुर में ज्योति टॉकीज में सिनेमा मशीन के ऑपरेटर के तौर पर काम किया।
उस दौरान वह फिल्मों के पोस्टर भी खुद ही बनाया करते थे। उनकी प्रतिभा को देखते हुए 60 साल पहले तत्कालीन मध्य प्रदेश सरकार ने आदिवासियों के बीच अपनी योजनाओं के प्रचार-प्रसार के लिए उन्हें चुना। तब गांवों में सिर्फ पगडंडियां हुआ करती थीं। लोग सड़कों के महत्व को समझने को तैयार न थे। सड़क निर्माण के लिए कोई मजदूर न मिलता।
रामसिंह ने इसका हल निकाला फिल्मों से। उन्होंने सड़क निर्माण के काम में आने वाले मजदूरों को मजदूरी के अलावा रात में ज्ञानवर्धक फिल्में देखने की सौगात दी। उनके हल्बी में लिखे गीतों का प्रसारण आकाशवाणी जगदलपुर से 70 के दशक से किया जा रहा है, जो आज भी जारी है। इन गीतों ने अब पारंपरिक लोकगीतों का रूप ले लिया है। ओडिशा, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विश्वविद्यालयों में अनेक शोधग्रंथों में उनके काम को शामिल किया गया है।
अबूझमाड़ तक सड़क
अबूझमाड़ में 70 के दशक में ओरछा तक बनी पक्की डामर की सड़क रामसिंह ठाकुर की देन है। उन्होंने ग्रामीणों को सड़क बनाने के लिए तैयार किया। वह वनवासियों को सड़क का महत्व समझाने में कामयाब रहे। जो आदिवासी पहले मजदूरी लेकर भी सड़क बनाने को राजी नहीं थे, वे जनसहयोग से सड़क बनाने की मुहिम में शामिल हो गए। सुदूर इलाकों की कई सड़कें उनके योगदान से बनी हैं।
हल्बी के व्याकरणाचार्य
रामसिंह ठाकुर हल्बी के व्याकरणाचार्य रहे। उन्होंने रामचरित मानस का हल्बी में पद्यानुवाद कर इस महाग्रंथ को आदिवासियों तक पहुंचाया। मध्य प्रदेश शासन ने वर्ष 1990 में व छत्तीसगढ़ के संस्कृति विभाग ने 2015 में हल्बी रामायण का प्रकाशन किया है। वर्ष 2015 में ही छत्तीसगढ़ सरकार ने हल्बी में गीता का प्रकाशन भी किया। इस काम के लिए उन्हें छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र समेत कई राज्य सरकारों ने सम्मानित किया। दिसंबर 2019 में रामसिंह ठाकुर अपनी कृतियां और यादें छोड़ इस दुनिया से विदा हो गए।