हेमंत कश्यप, जगदलपुर, नईदुनिया। Jagdalpur News :बस्तर की अनूठी परंपराओं में एक हैं बाबा पाटदेव। पाटदेव आदिवासियों के अति पूजनीय देवता हैं। ये ग्रामीणों के बीच न्यायाधीश और दुखहर्ता के रूप में प्रसिद्ध हैं। गांव में बीमारी, चोरी, बाढ़, फसल खराब होने जैसी समस्या होने पर ग्रामीण पाटदेव को अपने गांव ले जाते रहे हैं। गांव की समस्या दूर करने तथा न्याय करने की आशा उनसे सभी को रहती है। ग्रामीण बाकायदा तहसील कार्यालय में अर्जी लगाकर और सौ रुपये शुल्क पटाकर पाटदेव को अपने गांव ले जाते। हालांकि बस्तर के सैकड़ों गांवों में लगातार 700 वर्षों तक न्याय करते आए काला नाग पाटदेव अब मंदिर में आराम फरमा रहे हैं।
काला नाग पाटदेव के संदर्भ में जनश्रुति है कि सैकड़ों साल पहले नारायणपुर के तिमनार गांव में एक मोटा लंबा सांप प्रतिदिन गांव में घूमता था। घरों में प्रवेश करता था परंतु किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता था। गांव के बुजुर्गों ने इस संदर्भ में बैठक की और नारायणपुर के चीना हल्बा से मिले। चीना हल्बा उन दिनों वहां का एक जातनाईक था। तिमनार के ग्रामीणों की बातें सुनने के बाद चीना हल्बा इन्हें माड़ेया पुजारी के पास ले गया।
देव स्तुति कर माडिया पुजारी ने बताया कि तिमनार गांव में आने वाला सर्प एक देव है। उचित सम्मान नहीं मिलने के कारण वह ग्रामीणों को परेशान कर रहा है। सर्प देव को शांत करने हेतु बेल की मोटी लकड़ियों से एक आकृति बनाई गई। जिसे पाटदेव नाम दिया गया और चीना हल्बा को पुजारी नियुक्त किया गया। पाटदेव को न्याय प्रियदेव के रूप में प्रसिद्धि मिलने लगी। ऐसी मान्यता बन गई थी कि पाटदेव का नाम सुनते ही चोर डाकू भूत प्रेत रोग शोक सब भाग जाते थे। लोग पाठ देव को अन्न धन और पशुधन का संरक्षक के रूप में पूजने लगे।
अन्नमदेव बने पुजारी
तिमनार गांव के लिए बनाया गया काला नाग पाटदेव लंबे समय तक नारायणपुर में चीना हल्बा के पास ही रहे। लोक साहित्यकार रूद्र नारायण पाणीग्राही बताते हैं कि वर्ष 1314 में चित्रकोट में अपना आधिपत्य जमाने के बाद अन्नम देव को काला नाग पाटदेव की महत्ता की जानकारी मिली तो उन्होंने पाटदेव को वर्ष 1315 में चित्रकोट मंगवा लिया। कालांतर में पाटदेव बस्तर रियासत की विभिन्न राजधानियों में विराजित रहे।
246 साल पहले जगदलपुर राजधानी बनी और यहां विभिन्न मंदिरों का निर्माण कराया गया तो काला नाग पाटदेव मंदिर भी बनाया गया। यह मंदिर सिरहासार चौक के सामने मावली माता मंदिर परिसर में है। यहां काला नाग पाटदेव को विधिवत स्थापित कर देहारी परिवार को पुजारी नियुक्त किया गया।
पहले राजा की अनुमति लगती थी
पाटदेव की प्रसिद्धि न्यायप्रिय देव के रूप में है। लोग अपने गांव की समस्याएं सुलझाने इन्हें ले जाते रहे हैं। बताया गया कि पहले राज परिवार से अनुमति लेकर गांव में ले जाते थे और अब यह काम तहसीलदार करते हैं। आजादी के बाद बस्तर स्टेट के मंदिरों की व्यवस्था के लिए टेंपल इस्टेट कमेटी का गठन किया गया।
तब से पाटदेव की पूजा और प्रवास की पूरी जवाबदारी टेंपल कमेटी को दे दी गई है। जिस गांव के लोग पाटदेव को अपने गांव ले जाना चाहते थे। वे तहसील कार्यालय में बकायदा रसीद कटवाते थे। प्रतिदिन 100 रुपये के हिसाब से अधिकतम सात दिनों के लिए पाटदेव को गांव में भेजा जाता था। इसे परंपरागत देहारी पुजारी ही गांव ले जाते थे। यहां देवता के दिशा निर्देश पर फूल पान से लेकर बकरा तक अर्पित किया जाता था।
चार वर्षों से मंदिर में
काला नाग पाटदेव मंदिर के पुजारी रोहित देहारी बताते हैं कि पाटदेव को गांव ले जाने पर विवाद शुरू हो गया था। इन्हें ले जाने वाले लोग ही मनमानी करने लगे थे। इसलिए वर्ष 2016 से पाटदेव को गांवों में भेजना बंद कर दिया गया है। जिन्हें पाटदेव से न्याय चाहिए अब वे स्वयं मंदिर पहुंचने लगे हैं।