जगदलपुर, नईदुनिया प्रतिनिधि। छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बस्तर संभाग के अबूझमाड़ क्षेत्र के आदिवासी गांवों में, जहां अब तक विकास की रोशनी नहीं पहुंच पाई थी, अब शासन की योजनाओं का लाभ मिलना शुरू हो गया है।
यह काम समाज कल्याण विभाग की उप संचालक वैशाली मरड़वार के अथक प्रयासों से संभव हो पाया है। उन्होंने अपनी टीम के साथ इन सुदूर और दुर्गम गांवों तक पैदल और बाइक से सफर तय कर योजनाओं को गांव-गांव तक पहुंचाया।
वैशाली मरड़वार ने अपनी टीम के साथ घने जंगलों, नालों और पहाड़ों को पार कर इन सुदूर गांवों में पहुंचने का साहस दिखाया, जहां सरकार आजादी के इतने वर्षों बाद भी पहुंचने में नाकाम रही थी।
उन्होंने यहां जाकर गांवों की समस्याओं की रिपोर्ट तैयार की और प्रशासन तक पहुंचाई। इन गांवों तक पहुंचने के लिए उन्हें सुरक्षा कैंप से अनुमति भी लेनी पड़ी, क्योंकि ये नक्सल प्रभावित इलाके हैं।
अबूझमाड़ क्षेत्र को उसके कठिन भौगोलिक और नक्सलियों की उपस्थिति के कारण अबूझ माना जाता है। वैशाली मरड़वार ने अपनी तैनाती के बाद से ही इन गांवों में काम करने का मन बना लिया।
उन्होंने गांवों में डोर-टू-डोर सर्वे करवाकर सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाया। उनकी इस पहल से सुदूर वनग्रामों के आदिवासियों को 62 पेंशन योजनाओं का लाभ मिला और 37 दिव्यांगता प्रमाणपत्र जारी किए गए।
वैशाली ने बस्तर संभाग के कस्तूरमेटा, कोयपाल, ओकपाड़ और कटुलनार जैसे गांवों में बाइक और पैदल यात्रा कर लोगों तक सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाया। इन गांवों में प्रशासनिक अधिकारी तो क्या, सरपंच भी नहीं जाते थे। वैशाली ने न केवल वहां पहुंचकर लोगों की समस्याओं को सुना, बल्कि उनका समाधान भी निकाला।
यह पहली बार नहीं है जब वैशाली ने दुर्गम इलाकों में काम किया हो। इससे पहले बस्तर जिले में भी उनकी तैनाती रही, जहां उन्होंने 300 से अधिक युवाओं को नशामुक्ति का लाभ पहुंचाया। उन्होंने युवाओं की काउंसिलिंग कर उन्हें नशे की लत से दूर किया और उन्हें समाज की मुख्यधारा में लौटने में मदद की।
वैशाली मरड़वार की तैनाती नारायणपुर जिले में करीब आठ महीने पहले हुई थी। अबूझमाड़ को कठिनाई भरा इलाका माना जाता है, जहां काम करने के लिए हिम्मत चाहिए। वैशाली ने इसे चुनौती के रूप में लिया और दूरस्थ गांवों तक जाकर शासन की योजनाओं को सफलतापूर्वक लागू किया।
वैशाली मरड़वार के प्रयासों से आज अबूझमाड़ के गांवों में पहली बार शासकीय योजनाओं का लाभ मिल रहा है। चाहे वह पेंशन हो, दिव्यांगता प्रमाणपत्र हो या अन्य सरकारी सहायता, इन सुदूर गांवों के आदिवासी अब विकास की मुख्यधारा से जुड़ने लगे हैं।