जगदलपुर, नईदुनिया प्रतिनिधि। एक तरफ वनांचल के लोग जल-जंगल और जमीन के लिए लड़ रहे हैं वहीं दूसरी तरफ सरकारें आदिवासियों तक हर सुविधा पहुंचाने का दावा करती है। इस वाद-परिवाद के बीच बस्तर जिले में कई ऐसे गांव है जहां के लोग आज भी झरन या गड्ढे का गंदा पानी पीने को मजबूर हैं। इस क्रम में माचकोट जंगल में आदिवासियों की कालागुड़ा बस्ती ऐसी है जहां कहने को तो दो-दो हैण्डपंप हैं पर दोनों दो साल से बंद पड़े हैं और 50 आदिवासी परिवार जंगल के एक गड्ढे का पानी पीने मजबूर हैं। जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी दूर आड़ावाल-तीरिया मार्ग पर कालागुड़ा में आदिवासी बस्ती है। सोलर लाइट और हैण्डपंप के रूप में शासन की योजनाएं यहां पहुंची हैं परन्तु इन दोनों ही सुविधाओं का लाभ यहां के ग्रामीणों को नहीं मिल रहा है।
पीएचई द्वारा कालागुड़ा में दो हैण्डपंप खनन चार साल पहले किया गया था। बस्ती के गोवर्धन नाग तथा अन्य ग्रामीण बताते हैं कि दो साल से हैण्डपंप खराब होने तथा शुद्ध पेयजल की व्यवस्था नहीं होने के कारण ग्रामीण बड़ेसरगी चुंआ नामक गड्ढे का पानी पीने मजबूर हैं। बारिश के दिनों में भी इसी गड्ढे के पानी को उबाल कर पीते हैं। गांव में किसी परिवार में जब कोई समारोह होता है तो लगभग पांच किमी दूर तीरिया से पंचायत का टैंकर मंगवा कर काम निपटाना पड़ता है। इस संबंध में पहले भी शिकायत कर चुके हैं परन्तु कोई सार्थक कार्रवाई ग्राम पंचायत और पीएचई नहीं कर रही है।
अंधेरे में 50 परिवार
कालागुड़ा के 50 आदिवासी परिवारों के घरों को रोशन करने के लिए करीब 20 साल पहले यहां दो किलो वॉट का सोलर प्लांट स्थापित किया गया था। इससे ग्रामीणों के घरों में लगातार छह घंटे रोशनी रहती थी। इस प्लांट को संचालित करने के लिए ग्रामीणों की एक कमेटी भी बनाई गई है जो सोलर प्लांट की छोटी मोटी तकनीकी खराबियों को दूर कर लेती है। बताया गया कि यहां की बैटरियां खराब हो चुकी हैं और निर्माण एजेंसी क्रेडा कालागुड़ा सोलर प्लॉट के प्रति पूरी तरह से उदासीन है तभी तो दो साल से बंद पड़े सोलर प्लाट को ठीक नहीं किया जा रहा है। इसके चलते कालागुड़ा के ग्रामीण फिर से लालटेन युग में पहुंच गए हैं। एक ओर जहां ऐसी स्थिति है वहीं दूसरी ओर सरकारी तंत्र आंकड़ेबाजी करता है।