बलराम यादव, दुर्ग । किसानों की आय दोगुनी करने और कम खर्च पर ज्यादा उत्पादन को लेकर लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। राज्य शासन कृषि को समृद्ध बनाने की दिशा में लगातार काम कर रही है। वहीं कुछ किसान विलुप्त धान की पुरानी प्रजाति को सहेजने में लगे हैं। उसकी मेहनत भी रंग ला रही है और धान के कटोरे में खुशबू बिखर रही है।
दुर्ग जिले के पाटन विकासखंड के ग्राम अचनाकपुर के नवाचार किसान रोहित साहू ने पुराने से पुराने व नए धान की प्रजाति का उत्पादन लेना 2014 से शुरू किया। कम स्थान पर उक्त किसान करीब 48 किस्म के धान की बोवाई हर साल करता है। इस साल भी विभिन्न प्रजाति के धान की बोवाई की गई है। हर साल धान बीज एकत्र कर उसकी प्रजाति को और बढ़ाने किसानों को डिमांड के आधार पर दिया जा रहा है।
दो प्रजाति का धान रजिस्टर्ड
किसान रोहित साहू ने बताया कि उसने कई नए प्रकार के धान की किस्म की खोज भी की है। इनमें से दो धान बीज को रजिस्टर्ड भी कराया गया है। रजिस्टर्ड धान बीज में लाल अंगाकर रेड राइस व कमल ग्रीन राइस है। अभी कमल ग्रीन राइस का वैज्ञानिक जांच भी जारी है। बताया जाता है कि इस चावल को खाने से शुगर की बीमारी नहीं होगी, लेकिन अभी इसकी पुष्टि नहीं हुई है। जांच हैदराबाद में जारी है।
जैविक खाद का उपयोग
किसान रोहित साहू ने बताया कि कई प्रजाति के धान को छोटे-छोटे स्थान पर लगाया गया है, जिससे बीज तैयार की जा सके। इन सभी प्रजाति के धान के उत्पादन में किसी भी तरह का रासायनिक खाद का उपयोग नहीं किया जाता। अतः इस धान का चावल पौष्टिक होने के साथ सेहतमंद भी है। 48 प्रजाति के धान का उत्पादन पूर्णतः जैविक पद्धति से किया जा रहा है।
धान के इन प्रजातियों का उत्पादन
आम्रमौर, काला बासमती, लाल अंगाकर रेड राइस, कमल ग्रीन राइस, ग्रीन-3, तिल कस्तूरी ग्रीन-1, काला नमक ग्रीन-3, कमल ग्रीन-2, काली कमटी रेड राइस, बासमटीना रेड, लाजनी सुपर रेड, लाल अंगाकर, लाल अंगक, लोहंदी, ब्लैक बासमती, ब्लैक राइस 120, तुलसी मंजरी, जीरा फूल, जवा फूल, देशी सफरी, कटकर, बादशाह भोग, छत्तीसगढ़ देवभोग सुगंधित, विष्णु भोग, थरहनी, करहनी, जीरा सुगंधित 90, कोमल धान, एल ए एल पत्ता, राम लखन जुड़वा चावल, आम मौर, कारी गिलास, सुवापंथी, जीरा सुगंधित 90 दिन वाला, जे.पी. 90, पोखरा बोरा, जुगल रामलखन सहित अन्य प्रकार के धान की प्रजाति शामिल हैं।
हर साल लगता है राज्य स्तरीय प्रदर्शनी
विलुप्त हो रही धान की किस्म की बीजों की प्रदर्शनी व बिक्री के लिए साल में एक बार राज्य स्तरीय कार्यक्रम का आयोजन भी किया जाता है। यह आयोजन किसानों द्वारा प्रोग्रेसिव फार्मर ग्रुप के सहयोग से होता है। इसमें छत्तीसगढ़ के अलावा दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, ओड़िशा, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल सहित दूसरे राज्यों से किसान शामिल होते हैं।
नवाचार किसान रोहित साहू ने बताया कि राजिम के किसान राजेन्द्र भालगे जो कि खुद एक नवाचार किसान हैं वह विलुप्त हो रही धान की देशी प्रजाति के बीज का वितरण डिमांड के आधार स्वयं के व्यय पर भेजते हैं।
इसी तरह धमतरी जिले के कुरुद ब्लॉक के ग्राम परसवानी निवासी राजेंद्र चंद्राकर भी इसी दिशा में काम कर रहे हैं। उनके पास धान की विलुप्त हो रही करीब 100 प्रकार के किस्म की धान का बीज है। वह भी देशी धान बीज को बढ़ाने खेती करते हैं। साहू ने बताया कि कई किस्म के बीज वे स्वयं राजेंद्र चंद्राकर से लेकर आए हैं।