बिलासपुर(नईदुनिया प्रतिनिधि)। महामंडलेश्वर स्वामी शारदानंद महाराज के चीरनिंद्रा में जाने की जैसे ही खबर लगी बिलासपुर में उनके शिष्यों में शोक की लहर पैदा हो गई। सभी स्वामी की खबर लेने अपने परिचितों के फोन घनघनाने रहे। शारदानंद महाराज माहभर पहले ही बिलासपुर प्रवास पर आए थे। वे एक निजी अस्पताल के उद्घाटन कार्यक्रम में शामिल हुए। वहीं 25 सितंबर को अंबिकापुर में आयोजित सहशस्त्रचंडी महायज्ञ, संत सम्मेलन व भागवत कथा महायज्ञ में प्रवचन देने पहुंचे थे।
प्रयागराज आश्रम में रह रहे स्वामी शारदानंद महाराज के पेट में काफी समय से शिकायत थी। इसका इलाज कराने के लिए वे अपने भक्तों के साथ रविवार को नईदिल्ली स्थित मेदांता हास्पिटल पहुंचे थे। यहां डाक्टरों ने उनके स्वास्थ्य की जांच की। साथ ही उन्होंने बिस्तर में बैठकर ही डाक्टरों को सारी समस्या बताई। इसके कुछ देर बाद ही उनका निधन हो गया। जैसे ही स्वामी के आत्मा में लीन होने की खबर आई देश के अलावा विदेश में रह रहे उनके शिष्यों में शोक की लहर छा गई।
बिलासपुर में भी बड़ी संख्या में उनके शिष्य निवास करते हैं। खबर सुनकर वे भी स्तब्ध रहे गए। वे एक-दूसरे से फोन कर अपने गुरु के बारे में जानकारी हासिल करते रहे। एक शिष्य सुरेश गोयल ने बताया कि स्वामी शारदानंद महाराज एक माह पहले ही बिलासपुर आए थे। यहां वे रिंग रोड स्थित उमंग हास्पिटल के उद्घाटन कार्यक्रम में शामिल हुए। इस दौरान अंतिम बार बिलासपुर के शिष्यों ने उनके दर्शन किए। स्वामी शारदानंद की उम्र लगभग 80 वर्ष थी। उनका बिलासपुर से गहरा नाता था। वे अक्सर अपने शिष्यों से मिलने के लिए बिलासपुर पहुंचते थे।
25 सितंबर में गए थे अंबिकापुर
स्वामी शारदानंद महराज का छत्तीसगढ़ प्रवेश सितंबर माह में हुआ था। 25 सितंबर को अंबिकापुर में आयोजित सहशस्त्रचंडी महायज्ञ, संत सम्मेलन व भागवत कथा महायज्ञ में प्रवचन देने के लिए आए थे। कार्यक्रम का आयोजन 25 सितंबर से चार अक्टूबर तक आयोजित था। इसके बाद स्वामी प्रयागराज के लिए रवाना हो गए थे। वहां आश्रम में रहने के दौरान ही उनका स्वास्थ्य खराब हुआ।
आदिवासियों से था विशेष प्रेम
स्वामी शारदानंद महराज आदिवासियों से बहुत प्रेम करते थे। यही वजह है कि उन्होंने कोरबा के केंदई फाल में उनका आश्रम था। बेनी गुप्ता ने बताया कि केंदई फाल में आदिवासी वर्ग के उत्थान के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। यहां बीते 35 सालों से आदिवासी गरीब परिवार के बच्चों की शादी निश्शुल्क कराई जाती है। साथ ही उन्हें जीवन यापन के लिए घरेलू सामान भी दिए जाते हैं। इन जोड़ों को स्वामी शारदानंद महराज अपने शिष्यों को सौंप देते थे। शिष्य माता-पिता की तरह ही उनकी देखभाल करते हैं। साथ ही मतांतरित हो चुके आदिवासी परिवारों की घर वापसी के लिए भी मुहित चलाई जाती है। ,
उत्तर प्रदेश में किए जाएंगे समाधिस्थ, शामिल होंगे शिष्य
स्वामी शारदानंद महाराज काे सोमवार की शाम चार बजे उत्तर प्रदेश में समाधिस्थ किया जाएगा। उनके अंतिम दर्शन के लिए बिलासपुर से बड़ी संख्या में शिष्य सोमवार को मैनपुरी के लिए रवाना होंगे। शिष्य गिरधारी अग्रवाल ने बताया कि कुछ प्रमुख लोग चार गाड़ियों से मैनपुरी के लिए रवाना होंगे।
आसान शब्दों में प्रस्तुत करते थे प्रवचन
शिष्य विष्णु मुरारका ने बताया कि महामंडलेश्वर स्वामी आत्मानंद महाराज के प्रवचन की खासियत यह थी कि वे पुराण, उपनिषद या अन्य धर्म ग्रन्थों में वर्णित विषयों को उदाहरण के साथ आसानी से समझाते थे। यही वजह थी कि सामान्य इंसान को भी उनका प्रवचन बांधे रखता था। इससे प्रवचन का व्यापक स्तर पर प्रभाव भी पड़ता था।
11 वां रुद्रातिरुद्र महायज्ञ अमरकंटक में हुआ
महाराज शारदानंद ने संकल्प लिया था कि वे 11 अतिरुद्र करेंगे। दूसरा अतिरुद्र बिलासपुर में आयोजित किया गया। इसके अलावा कोरबा में पांचवा अतिरुद्र कोरबा में रखा गया था। अंतिम 11 वां रुद्रातिरुद्र महायज्ञ अमरकंटक में 21 से 27 अप्रैल 2007 को मध्य प्रदेश के अमरकंटक में किया गया। यह काफी महत्वपूर्ण यज्ञ था।