बिलासपुर। छत्तीसगढ़ वाइल्ड लाइफ बोर्ड के लिए नियम बनाने की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका पर गुरुवार को चीफ जस्टिस पीआर रामचंद्र मेनन और जस्टिस पीपी साहू के डिवीजन बेंच में सुनवाई हुई । मामले की सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने राज्य शास को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने का निर्देश दिया है।
अजय दुबे ने अपने वकील के जरिए हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा है कि बीते 17 वर्षों से राज्य शासन ने छत्तीसगढ़ वाइल्ड लाइफ बोर्ड का गठन कर दिया है। बोर्ड गठन के बाद से आजतक नियम नहीं बनाए गए हैं। बोर्ड गठन के बाद से अब तक नियमित रूप से बैठक भी नहीं हो रही है। इसके कारण जंगल कट रह रहे हैं।
जंगलों में वनमाफियाओं को दबदबा बढ़ते जा रहा है। जंगली जानवरों का शिकार भी हो रहा है। याचिका के अनुसार देश के अन्य राज्यों में वाइल्ड लाइफ बोर्ड गठन के साथ ही नियम कानून भी बनाए गए हैं।
तय गाइड लाइन के अनुसार विशेषज्ञ काम कर रहे हैं। गुरुवार को इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस पीआर रामचंद्र मेनन और जस्टिस पीपी साहू के डिवीजन बेंच में हुई । मामले की सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने राज्य शासन को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने कहा है। इसके लिए चार सप्ताह की मोहलत दी है।
बोर्ड में 14 सदस्यों को रखने का है प्रावधान
वाइल्ड लाइफ बोर्ड में 14 सदस्यों को शामिल किया जाता है। इसके चेयरमैन मुख्यमंत्री होते हैं। बोर्ड में पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ के अलावा तीन विधायक,तीन वाइल्ड लाइफ विशेषज्ञ,तीन एनजीओ संचालकों को शामिल किया जाता है। प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों से जानकारों को रखा जाता है।
इन कार्यों पर विशेष निगरानी
किसी वन क्षेत्र को वाइल्ड लाइफ की सुरक्षा के मद्देनजर सेंचुरी एरिया बनाने का निर्णय लेना है तो सबसे पहले बोर्ड में प्रस्ताव रखा जाएगा व पारित किया जाएगा। अंतिम निर्णय बोर्ड के चेयरमैन व मुख्यमंत्री करेंगे । इसके अलावा जंगल क्षेत्र के भीतर सड़क निर्माण व अन्य निर्माण कार्य कराना है तो सबसे पहले बोर्ड के समक्ष प्रस्ताव रखना होगा। वाइल्ड लाइफ को सुरक्षित रखने के लिए लिए जाने वाले अहम निर्णय भी बोर्ड के जरिए लिए जाते हैं।