बिलासपुर। Rath Yatra In Bilaspur: रथयात्रा के पांचवें दिन(हेरा पंचमी) पर शुक्रवार को महाप्रभु भगवान जगन्नाथ को लेने उनकी पत्नी महालक्ष्मी मौसी मां के मंदिर पहुंचीं। लेकिन भगवान जाने को तैयार नहीं हुए। इससे नाराज होकर महालक्ष्मी ने उनका रथ(नंदीघोष) का एक हिस्सा क्षतिग्रस्त कर दिया। रेलवे परिक्षेत्र स्थित श्री श्री जगन्नाथ मंदिर में इस परंपरा को विधिवत पूजा अर्चना के साथ निभाया गया। मंदिर समिति के समन्वयक केके बेहरा ने बताया कि इस वर्ष कोरोना महामारी के नियमों के साथ अनुष्ठानों को पूरा किया जा रहा है। आधी रात को समिति के सदस्यों द्वारा इस परंपरा को पूरा किया। हेरा पंचमी पर एक बालिका को महालक्ष्मी का स्वरूप तैयार किया गया था।
लक्ष्मी जी का श्रृंगार कर वह मौसी मां के मंदिर में पहुंचती है। महाप्रभु के साथ नहीं चलने पर वह नाराज होकर एक अन्य मार्ग से चली जाती है। इस बीच अपने एक सेवक को आदेश देती हैं कि वह जगनाथ जी के रथ नंदीघोष का एक हिस्सा क्षतिग्रस्त कर दे। इस अनुष्ठान को रथ भंग कहा जाता है। 20 जुलाई को भगवान वापस मौसी के घर से मुख्य मंदिर लौटेंगे। इसे बाहुड़ा या घुरती रथयात्रा कहते हैं।
पर्दे की आड़ में होता है संवाद
हेरापंचमी की रस्म के दौरान महाप्रभु और देवी लक्ष्मी के बीच गरमागरम संवाद भी होता है। नाराज लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ से कई सवाल करती हैं, उससे पहले वहां बैठे बड़े भाई बलभद्र से पर्दा कर लेती हंै। क्योंकि जेठ के सामने वह कैसे आएं। मंडप में इस रस्म को निभाने बलभद्र के सामने पर्दा लगा दिया जाता है। ताकि देवी लक्ष्मी महाप्रभु से संवाद कर सकें। कथा के अनुसार जब वे गुंडीचा मंडप में प्रभु को देखती हैं तो मौसी के घर खूब आनंदित नजर आते हैं।
इसलिए वे नाराज होती हैं कि प्रभु उन्हें साथ लेकर क्यों नहीं आए और घर पर अकेला क्यों छोड़ा? महाप्रभु उनसे वादा करते हैं कि अब से वे जहां भी जाएंगे उन्हें साथ लेकर जाएंगे। महालक्ष्मी भी केवल महाप्रभु के रथ को क्षतिग्रस्त करने का आदेश देती हैं। जबकि बलभद्र के रथ तालध्वज और सुभद्रा के रथ देवी दलन को कोई नुकसान नहीं पहुंचातीं।
दही पोखल का विशेष भोग
मंदिर के पुजारी गोविंद पाढ़ी ने बताया कि मां लक्ष्मी के आगमन पर विशेष पूजा अर्चना की गई। पीठा और दही पोखाल का विशेष भोग अर्पण किया गया। दही पोखाल दही में चावल(भात) का मिश्रण, जिसमें पुदीना, लौंग, इलायची सहित 14 प्रकार की सामग्री से तैयार किया जाता है। तीनों पहर यह भोग अर्पण किया गया।