Bilaspur News: बिलासपुर। संरक्षण और संवर्धन मांग रहे हैं पलाश के पेड़ क्योंकि यह तेजी से खत्म हो रहा हैं। वानिकी वैज्ञानिकों की नजर में पलाश भी ऑक्सीजन का बढ़िया स्रोत है। इसके अलावा जड़ से लेकर फूलों में औषधीय तत्व होने की जानकारी मिली है।
टेसू के नाम से पहचाने जाने वाले पलाश में फूल लगने लगे हैं। पुष्पन की पहली अवधि में यह जैसे नजर आ रहे हैं, उसे सही संकेत नहीं माना जा रहा है। अध्ययन कर रहे वानिकी वैज्ञानिकों ने इस स्थिति को गंभीर मानते हुए पलाश के संरक्षण और संवर्धन के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत बताई है। यह इसलिए क्योंकि अनुसंधान में इसकी जड़,छाल व तना में महत्वपूर्ण औषधीय तत्वों की मौजूदगी के प्रमाण मिले हैं।
ऐसा है पलाश
शुष्क और सूखे मौसम में उगता है पलाश। 40 वर्ष की उम्र तक पहुंचने पर इसकी ऊंचाई लगभग 15 मीटर तक हो जाती है। विकास के नाम पर हो रही कटाई, इसके विनाश की वजह बन रही है। इसलिए वानिकी वैज्ञानिकों ने संरक्षण और संवर्धन की जरूरत बताई है ताकि यह बने रहें और शुद्ध प्राणवायु मिलती रहे।
बनती हैं दवाइयां
एंटीमाइक्रोबायल, एंटीफंगल, हाइपोग्लाइसेमिक, एंटी- इन्फ्लेमेटरी, एफ्रोडायसियाक जैसे औषधि तत्वों की वजह से इसकी आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक और यूनानी दवाएं बनाने वाली इकाइयों में भरपूर मांग है। जिन बीमारियों को दूर करने में पलाश को मददगार माना गया है उसमें वात रोग, पित्त रोग और त्वचा रोग मुख्य है।
बनते हैं आय के साधन
काष्ठ कला में फिलहाल इसका उपयोग पाटा बनाने में हो रहा है। पत्तियां, दोना और पत्तल बनाने वाले ग्रामीण और इकाइयों में बहुतायत में मांग में रहतीं हैं। फूल का उपयोग रंग बनाने वाले कारखाने कर रहे हैं, तो तना से निकलने वाली गोंद की खरीदी भी दवा उत्पादन इकाइयां करती हैं। घरेलू ईधन के लिए लकड़ियों की जरूरत भी पलाश ही पूरी करता है।
इसके आकर्षण फूलों के कारण इसे "जंगल की आग" भी कहा जाता है। आर्थिक समृद्धि का आधार रहे पलाश के पेड़ों पर संकट मंडरा रहा है। लाख का उत्पादन कम होने के बाद लोग पलाश को बेकार मानते हुए खेत बनाने के नाम पर इसके जंगलों की अंधाधुंध कटाई कर रहे हैं।
अजीत विलियम्स, विज्ञानी (वानिकी)
बीटीसी कालेज आफ़ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर (छग)