बिलासपुर(नईदुनिया प्रतिनिधि)। महारानी लक्ष्मी बाई शासकीय उच्चतर माध्यमिक कन्या शाला की प्राचार्य डा. कैरोलाइन सतूर ने नईदुनिया गुरुकुल में प्रकाशित कहानी को पढ़ने के बाद अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि इंटरनेट मीडिया की दुनिया काल्पनिक है। हमें इससे सावधान रहना चाहिए। फेसबुक, टि्वटर, इंस्टाग्राम, वाट्सएप इत्यादि प्लेटफार्म में जो लोग जुड़े हैं जरूरी नहीं कि जैसे विचार वे पोस्ट करते हैं आम जिंदगी में भी वैसे ही हों। कई बार हम धोखा खा जाते हैं।
नईदुनिया गुरुकुल शिक्षा से संपूर्णता डिजिटल शिक्षा के अंतर्गत लेखक पीयूष द्विवेदी द्वारा लिखित बिना सोचे-विचारे न करें विश्वास शीर्षक से अखबार में कहानी प्रकाशित है। इसे पढ़ने के बाद प्राचार्य डा. उषा ने अपने विचार प्रकट करते हुए आगे कहा कि कहानी में सोनू अपने मित्र मोहन के पिता रमेश से काफी प्रभावित था। फेसबुक पर उनके हर पोस्ट पर कमेंट करने के साथ पसंद करता है। महात्मा गांधी के साथ उनकी तस्वीर थी। इसलिए रमेश अंकल के विचार से काफी प्रभावित था। स्कूल में जब भाषण प्रतियोगिता के बाद एक चपरासी के द्वारा गलती से रमेश अंकल के पैंट पर कोलड्रिंक गिरी तो वह झल्ला उठे। हाथ उठाने की नौबत आ गई। तभी सोनू के पिता अजय ने रमेश पर बरस पड़े। कहा कि कोलड्रिक ही तो गिरी है कोई एसिड नहीं है। बुजुर्ग पर चिल्लना गलत है।
यहीं से सोनू का मन बदल गया। उनके पिता हीरो नजर आने लगे। जबकि सोनू अपने पिता के विचारों को कभी नहीं अपनाता था। यह सीख हम सभी को लेनी चाहिए। क्योंकि इंटरनेट मीडिया में किसी चीज की गारंटी नहीं होती। कोई भी व्यक्ति, संस्था या एप के बारें में बिना जानकारी सहज नहीं होना चाहिए। स्पष्ट कहें तो आंख बंदकर भरोसा वर्तमान समय में कभी नहीं करनी चाहिए। लेखक पीयूष द्विवेदी ने इस कहानी को शानदार तरीके से पिरोया है। समाज के लिए एक मील का पत्थर साबित होगा। बड़ी आसानी के साथ वर्तमान समस्या को पटल पर रखने का प्रयास किया है।
बच्चों से संवाद करें अभिभावक
डा. सतूर ने यह भी कहा कि वर्तमान समय में ज्यादातर बच्चे मोबाइल से चिपके रहते हैं। यह सही नहीं है। जितना जरूरी हो उतना ही उपयोग और समय देना चाहिए। इंटरनेट आज की जरूरत है। लेकिन बच्चों के हाथ में मोबाइल आते ही वे मालिक बन जाते हैं। फिर किसी की नहीं सुनते। इसका असर उनके स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। सही शब्दों में कहें तो बच्चे अपनी ही एक काल्पनिक दुनिया में हैं। वह कक्षा में भी एक दूसरे से बात नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में स्जवन को इस पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए और उनसें संवाद करना चाहिए।