बिलासपुर। Chhattisgarh High Court News: विकासखंड शिक्षाधिकारी की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण निर्णय जारी किया है। कोर्ट ने कहा है कि छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियम 1966 के नियम 16 में दिए प्रविधान का पालन किए बिना शासकीय सेवक पर जुर्माना नहीं लगाया जा सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि द्वितीय श्रेणी के राजपत्रित अधिकारी पर कलेक्टर को जुर्माना लगाने का अधिकार नहीं है। एक अन्य याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस संजय के अग्रवाल ने याचिकाकर्ता के खिलाफ कलेक्टर द्वारा जारी जुर्माना नोटिस को रद कर दिया है।
अजीत सिंह जाट ने वकील राजेश कुमार केशरवानी के जरिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की। याचिकाकर्ता ने कहा है कि वह रायपुर जिले के अभनपुर ब्लाक में विकासखंड शिक्षाधिकारी पद पर थे। वर्ष 2007 में शिक्षा कर्मी की भर्ती हुई थी। उस दौरान मुख्य कार्यपालन अधिकारी और उन्हें भर्ती कमेटी में शामिल किया गया था। बाद में शिकायत हुई कि शिक्षाकर्मी भर्ती में गड़बड़ी हुई है।
जांच में कई शिक्षाकर्मियों के दस्तावेज व प्रमाण-पत्र फर्जी मिले। इसके चलते उनकी नियुक्ति निरस्त कर दी गई। हालांकि इस दौरान वेतन के रूप में शिक्षाकर्मियांे को दो लाख तीन हजार 313 रुपये का भुगतान कर दिया गया था। कलेक्टर ने इस राशि को सीईओ और याचिकाकर्ता से संयुक्त रूप से वसूल करने के आदेश जारी कर दिया।
याचिकाकर्ता ने कहा कि जुर्मान की राशि एक लाख एक हजार 656 रुपये उनसे जिला प्रशासन ने वसूल भी कर लिया है। याचिका की सुनवाई जस्टिस संजय के अग्रवाल के सिंगल बंेच में हुई। प्रकरण की सुनवाई के बाद जस्टिस अग्रवाल ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वितीय श्रेणी राजपत्रित अधिकारी हैं। राजपत्रित अधिकारी पर जुर्माना लगाने का अधिकार संभागायुक्त का है। कलेक्टर को नहीं।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का दिया हवाला
याचिकाकर्ता की ओर से हाई कोर्ट में एक और याचिका दायर की गई है। इस याचिका में उसने बताया कि उनको बाद में कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। जवाब के बावजूद दो वेतन वृद्धि को रोकने की कार्रवाई की गई। इसमें सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला दिया गया कि किसी भी अधिकारी और कर्मचारी पर कारण बताओ नोटिस जारी करने के बाद ही जुर्माना किया जा सकता है। बगैर जांच पड़ताल के जुर्माना नहीं किया जा सकता। याचिका की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने कलेक्टर के आदेश को रद कर दिया है।