नईदुनयिा प्रतिनिधि बिलासपुर। नर्तक दलों ने भले गांव गितकेरा बाबू, उपजे बोहार हो, पाइया लागव बंशी वाले के ,झोकव मोर जोहार हो...और भाई दुलारे बहिनी, अउ बहिनी दुलारे भाई। मोला दुलारे मोर दाई ददा, गोरस दूध पिलाए हो...जैसे दोहे से पूरा माहौल गूंजयमान रहा।
शास्त्री स्कूल मैदान में आयोजित इस महोत्सव में मुख्य अतिथि के रूप में मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने शिरकत की। विशिष्ट अतिथि के रूप में उपमुख्यमंत्री अरुण साव, केंद्रीय मंत्री तोखन साहू, बिलासपुर विधायक अमर अग्रवाल, बेलतरा विधायक सुशांत शुक्ला, बिल्हा विधायक धरमलाल कौशिक, और महापौर रामशरण यादव विशेष रूप से उपस्थित थे।
महोत्सव में अस्त्र-शस्त्र और श्रृंगार से सजे इन नर्तकों ने सैनिक और कलाकार का अद्भुत मिश्रण प्रदर्शित किया। मोरपंखों से सजी पगड़ी, कवच जैसे जैकेट, और पैरों में घुंघरू बांधकर ये नर्तक परंपरा की महक को आधुनिक संदेशों से जोड़ रहे थे।
नशा मुक्ति, जल बचाओ, बेटी बचाओ, पर्यावरण संरक्षण और गौहत्या रोकने जैसे संदेशों ने इस आयोजन को और भी अर्थपूर्ण बना दिया। रातभर चले इस महोत्सव ने परंपरा और संस्कृति के बेजोड़ उत्सव का परिचय दिया।
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने लाल बहादुर शास्त्री स्कूल में आयोजित 47वें राउत नाचा महोत्सव में भाग लिया। पारंपरिक वेशभूषा में सजकर उन्होंने यादव समाज को भगवान कृष्ण का वंशज बताते हुए उनकी एकता और विकास की कामना की।
उन्होंने कहा कि राउत नाचा छत्तीसगढ़ की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है और इसे हमेशा इसी भव्यता से मनाया जाना चाहिए। केंद्रीय राज्यमंत्री श्री तोखन साहू ने महोत्सव को छत्तीसगढ़ के गौरव का प्रतीक बताया और गौ माता की सेवा के लिए यादव समाज की सराहना की।
यदुवंशी समाज द्वारा आयोजित इस महोत्सव में पारंपरिक वेशभूषा और शस्त्र कला का प्रदर्शन इसे और भी आकर्षक बनाया। रावत नाच दल पारंपरिक गड़वा बाजा और रावत दोहों की गूंज के साथ लोक कला का प्रदर्शन किया। बता दें कि इस आयोजन की शुरुआत देवउठनी एकादशी के साथ ही हो जाती है यह परंपरा हर साल निभाई जाती है। शनिचरी बाजार में गड़वा बाजा के साथ महोत्सव के लिए तैयार होते हैं।
महोत्सव को लेकर सुबह से उत्साह नजर आने लगा था। शाम चार बजते ही रंग-बिरंगे वस्त्रों और पारंपरिक शृंगार से सजे नृत्य दल मैदान में पहुंचने लगे थे। इन दलों की खासियत उनके अद्वितीय श्रृंगार और अस्त्र-शस्त्र का मेल था। नर्तकों ने अपने पैरों में घुंघरू बांध रखे थे, जो उनकी हर ताल पर झंकार भर रहे थे।
वे सैनिक और कलाकार दोनों का रूप धारण किए थे। तेंदूसार की लाठी, फरी के ढाल, कौड़ियों से सजे कवच जैसे जैकेट और सिर पर मोरपंख वाली पगड़ी ने उनकी वेशभूषा को और भी भव्य बना दिया था। वहीं सेल्फी लेने दर्शकों में होड़ मची थी। इंटरनेट पर लोग वीडियो वायरल करते गए। जहां खूब दोहे चले।
महोत्सव में एक-एक कर विभिन्न दलों ने अपनी कला का प्रदर्शन किया। नृत्य के दौरान संत कवियों जैसे कबीर दास, सूरदास और तुलसीदास के दोहों के साथ-साथ स्व-रचित दोहों का भी उपयोग किया गया। कई दलों ने अपने नृत्य के माध्यम से संदेश दिया। छोटे बच्चों से लेकर उम्रदराज बुजुर्गों ने कौशल का प्रदर्शन किया। बसिया दल ने इस साल भी शानदार प्रदर्शन किया।
इस वर्ष रातभर चले इस महोत्सव में लगभग 85 से अधिक दलों ने कृष्ण भक्ति और सामाजिक संदेशों से सजी अपनी प्रस्तुति दी। दर्शकों की भीड़ उत्साह से भरपूर थी और हर पल को कैमरे में कैद करने के लिए आतुर दिखी। यह आयोजन पारंपरिक छत्तीसगढ़ी संस्कृति का जीवंत उदाहरण था, जिसने हर आयु वर्ग के दर्शकों का दिल जीत लिया।
रावत नाच महोत्सव के संयोजक डा. कालीचरण यादव ने कहा कि महोत्सव की शुरआत सन् 1978 में इस लोककला को संरक्षित एवं संवर्धित करने का प्रयास रावत समाज ने आरंभ किया। वर्तमान समय में छत्तीसगढ़ की अनेक कलाएं, संस्कृति, गीत, नृत्य ग्लोबलाइजेशन में फंसकर जहां विलुप्त हो रही हैं। वहीं रावत समाज अपनी लोककला, संस्कृति, नृत्य व अपनी परंपराओं को बचाने में सफल हुआ है। इसका कारण यह महोत्सव है। नर्तक दलों को उनकी सदियों से चली आ रही परंपरा में कोई छेड़-छाड़ नहीं किया गया।