बिलासपुर। 5 Temples of Bilaspur: नए भारत की परिकल्पना में मंदिर अपना विशेष योगदान दे रहे हैं। संस्कारधानी बिलासपुर रेलवे परिक्षेत्र के मंदिर इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। गायत्री मंदिर रेलवे प्रज्ञापीठ में बेटियों को सिलाई मशीन के जरिए आत्मनिर्भर बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। वहीं श्रीलक्ष्मीनारायण (राम) मंदिर में युवाओं को नशामुक्ति का पाठ पढ़ाया जा रहा है।
बिलासपुर शहर के साथ ही धार्मिक नगरी रतनपुर समेत पूरे अंचल में कई बड़े ऐतिहासिक मंदिर हैं। किंतु रेलवे परिक्षेत्र के भीतर स्थित मंदिरों ने भी अपनी खास पहचान बना ली है। 50 से 80 वर्षों के भीतर क्षेत्र में कई बड़े मंदिरों का निर्माण हुआ है।
उनमें प्रमुख रूप से बुधवारी बाजार स्थित श्रीलक्ष्मीनारायण मंदिर, गायत्री प्रज्ञा पीठ, श्रीकोदंडरामा, मां काली मंदिर व श्रीश्री जगन्नाथ मंदिर शामिल हैं। इनके अलावा श्रीसुमुख गणेश मंदिर, पंचमुखी हनुमान, रेलवे स्टेशन स्थित साईं मंदिर, न्यू लोको कालोनी मरीमाई, आरपीएफ कालोनी (शंकर नगर) मां नष्टी भवानी, गणेश नगर स्थित मां महामाया मंदिर का नाम है।
भक्त दर्शन के लिए दूर-दूर से पहुंचते हैं। मंदिरों में दक्षिण भारत, बंगाल व ओडिशा की पारंपरिक कलाकारी का अनूठा संगम देखने को मिलता है। महज एक किलोमीटर की दूरी के भीतर सभी मंदिरों के आसानी से दर्शन होते हैं। सुबह-शाम पूजन, शंखनाद व आरती से पूरा क्षेत्र गुंजयमान हो उठता है। बिलासपुर आने वाला हर मेहमान एक बार इन मंदिरों में दर्शन के लिए अवश्य पहुंचता है।
पांच प्रमुख मंदिरों की विशेषताएं:
1. श्रीलक्ष्मीनारायण मंदिर में नशामुक्ति का संकल्प
रेलवे हिंदू समाज की ओर से साल 1981 बैशाख शुक्ल तृतीया को इस मंदिर की प्राणप्रतिष्ठा की गई थी। ठेकेदार सेठ जगमाल गंगा द्वारा दिए गए दान से पूरा हुआ था। आंध्र विप्र समाज ने साल 2010 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। मंदिर की देखभाल का जिम्मा अभी 60 वर्षीय इंदिरा मिश्रा के पास है। उनका पूरा परिणाम प्रभु की सेवा में जुटा हुआ है। बेटा नारायण प्रसाद मिश्रा यहां प्रतिदिन पुजा कार्य संभालते हैं। रामनवमी, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी और महाशिवरात्रि पर यहां काफी भीड़ रहती है। मंदिर समिति और नारायण प्रसाद यहां आने वाले हर एक युवा को नाशामुक्ति का ज्ञान देते हैं। समाज को नशे से बचाने का संकल्प भी दिलाते हैं।
2. गायत्री प्रज्ञापीठ रेलवे में आत्मनिर्भता का पाठ
गायत्री प्रज्ञापीठ रेलवे को स्थापना के लगभग 28 साल हो चुके हैं। पीठ के संचालक राजेश कुमार कश्यप की मानें तो समाज के सभी आयु वर्ग के लोग यहां आते हैं। नवरात्र व महाशिवरात्रि पर विशेष पूजन होता है। प्रत्येक रविवार को हवन किया जाता है। इस पीठ की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां प्रतिदिन सुबह निश्शुल्क एक्युप्रेशर शिविर के माध्यम से लोगों को स्वस्थ रहने का संदेश दिया जाता है। इसके अलावा बेटियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सिलाई कढ़ाई का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। उनसे कोई शुल्क भी नहीं लिया जाता। समाज में अच्छे से अपनी जीविका चला सकें इसके लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
3. काली बाड़ी में रामकृष्ण परमहंस व मां शारदा
तोरवा थाने के ठीक सामने मां काली मंदिर कालीबाड़ी है। वहां प्रवेश करते ही कोलकाता (पश्चिम बंगाल) काली मंदिर का स्वरूप नजर आता है। इसे देखने बड़ी संख्या में भक्त पहुंचते हैं। यहां रामकृष्ण परमहंस व मां शारदा की प्रतिमा भी विराजमान है। बंगाली समाज यहां हर साल 15 अप्रैल को नववर्ष महोत्सव मनाते हैं। मंदिर के भीतर शनिदेव और शिवलिंग भी है। मान्यता है कि इस मंदिर में आने वाला भक्त कभी निराश नहीं लौटता। न्याय के देवता शनिदेव की कृपा बरसती है। इस वजह से मंगलवार और शनिवार को यहां भक्तों का तांता लगा रहता है। मंदिर का ऐतिहासिक स्वरूप और दिव्य प्रतिमा सभी को आकर्षित करते हैं।
4. श्रीश्री जगन्नाथ मंदिर में ओडिशा की कलाकृति
बंगाली स्कूल चौक स्थित श्रीश्री जगन्नाथ मंदिर का निर्माण साल 1996 में हुआ था। यहां भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की दिव्य प्रतिमा स्थापित है। प्रतिदिन सुबह 5.30 और शाम 6.45 बजे आरती होती है। इसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु भक्त दर्शन के लिए पहुंचते हैं। मंदिर के पुजारी गोविंद प्रसाद पाढ़ी की मानें तो काष्ठ प्रतिमा ओडिशा से बनकर आई थी। मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में जगन्न्ाथपुरी के राजा दिव्य सिंह देव और मुख्य पुजारी पंडा रमेश राजगुरु आए थे। ओडिशा कलाकृति की अद्भुत छाप यहां भक्तों को देखने मिलती है। गुंडिचा और बाहुड़ा रथयात्रा निकलती है। इसमें पूरा शहर शामिल होता है।
5. श्रीकोदंडरामा में पुराणों का ज्ञान
एनईआइ के पास स्थित श्री कोदंडरामा व श्री कल्याण वेंकटेश्वर मंदिर में भगवान श्रीराम, लक्ष्मण व सीता सहित बालाजी और हनुमान की दिव्य प्रतिमाओं के दर्शन होते हैं। यहां 30 किलो चांदी से भगवान का मकर तोरणम भी देखने को मिलता है। दक्षिण भारतीय परंपरा के मुताबिक मंदिर का निर्माण किया गया है। पूजन का दायित्व आचार्य नारायण और सूर्य प्रकाश के जिम्मे है। फरवरी में यहां ब्रह्मोत्सव मनाया जाता है। इसके अलावा महाशिवरात्रि और कार्तिक माह में विशेष पूजन होता है। गणेश चतुर्थी पर बड़ी संख्या में भक्त पहुंचते हैं। दक्षिण भारतीय शैली में बने इस मंदिर की भव्यता को देखने दूर-दूर से भक्त आते हैं। यहां भक्तों को पुराणों का ज्ञान दिया जाता है।