नईदुनिया प्रतिनिधि जगदलपुर। बस्तर जिले के नक्सल पीड़ितों ने नई दिल्ली में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू व केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मिलकर कहा कि हमारा पुराना बस्तर लौटा दीजिए, जहां शांति और खुशहाली थी। नक्सल हिंसा पीड़ितों का 55 सदस्यीय एक दल देश की जनता को अपनी व्यथा बताने बस्तर से दिल्ली पहुंचा है। कोई नक्सलियों के प्लांट किए आइईडी की चपेट में आने से अपना पैर, हाथ तो कोई अपनी आंखों की रोशनी खो चुका है। कुछ ग्रामीण भी हैं, जिनके परिवार वाले नक्सल हिंसा में बुरी तरह प्रभावित हुए।
नई दिल्ली के कंस्टीट्यूशन क्लब के हाल में बड़ी सी स्क्रीन पर प्रदर्शित हो रही डाक्यूमेंट्री खामोशी से देखते हुए 52 वर्षीय दयालुराम के आंसू छलक आते हैं। वे बस्तर संभाग के कांकेर जिले के कलारपारा के रहने वाले हैं। दयालु बताते हैं कि 16 जून, 2018 की देर शाम करीब 8 बजे वर्दीधारी नक्सलियों का एक दल घर पहुंचा। मेरे बड़े बेटे का कमरा बाहर से बंद कर दिया। छोटे बेटे गेंदा के गले में रस्सी बांधकर उसे घसीटते हुए बाहर ले आए।
उन्होंने मुझे भी बंधक बनाया लिया। उसके बाद दोनों को घर से आधा किलोमीटर दूर ले गए। मेरे सामने ही बेटे के गर्दन को कुल्हाड़ी से काट दिए। उसकी गर्दन लटक रही थी, जिसे मैंने हाथों से पकड़ा तो मुझे भी डंडे और पैर से मारने लगे। मुझे पत्थर मारे। मैं बेहोश हो गया, तो मुझे मरा समझकर चले गए।
मुझको बेहोशी की हालत में गांव और घरवालों ने अस्पताल में भर्ती कराया। चार महीने तक इलाज चला। मैं अपने बेटे के अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हो सका। बिना किसी प्रमाण के पुलिस के लिए मुखबिरी के संदेह में बेटे को नक्सलियों ने क्रूरता से मार डाला था।
बस्तर शांति समिति के नेतृत्व में आया यह दल 21 सितंबर को राष्ट्रपति द्रोपदी मूर्मू से मिला। इससे पहले 19 सितंबर की सुबह दिल्ली के जंतर-मंतर के धरना स्थल पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया। इसी दिन शाम को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से शासकीय निवास पर मुलाकात की। 20 सितंबर की सुबह कंस्टीट्यूशन क्लब और शाम को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय पहुंचे। दल का उद्देश्य नक्सल हिंसा से मिले दर्द की व्यथा जिम्मेदारों को बताना और बस्तर को नक्सल हिंसा से मुक्त कराने की मांग करना था।