नईदुनिया न्यूज़, बालोद। रक्तदान, देहदान और अंगदान, ये वो शब्द हैं जो न केवल जीवन को बचाते हैं, बल्कि समाज में एक नया संदेश भी भेजते हैं। अगर हर व्यक्ति इन महान कार्यों को अपनाए, तो कितनी जिंदगियों को नया जीवन मिल सकता है! इसी सोच को साकार करने के लिए एक पति-पत्नी ने अपने जन्मदिन पर देहदान करने की शपथ ली, और अपनी इस प्रेरणादायक पहल से समाज को एक नई दिशा दी।
बालोद जिले की कादम्बिनी ने अपना जन्मदिन कुछ खास अंदाज में मनाया। उन्होंने और उनके पति लोकेश पारकर यादव ने देहदान का संकल्प लिया और इसे सार्वजनिक रूप से घोषित किया। दोनों ने राजनांदगांव स्थित अटल बिहारी वाजपेयी स्मृति चिकित्सालय में जाकर देहदान के लिए घोषणा पत्र भरा और इस नेक कार्य का आह्वान किया।
कादम्बिनी यादव, जो कि बालोद जिले के डौंडीलोहारा ब्लॉक के बड़गांव हायर सेकेंडरी स्कूल में व्याख्याता हैं, और उनके पति लोकेश कुमार पारकर, जो रायपुर जिले के गोबरा नवापारा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में असिस्टेंट मेडिकल ऑफिसर के पद पर कार्यरत हैं, दोनों ही समाज सेवा में अग्रणी हैं।
कादम्बिनी बताती हैं कि उन्हें देहदान के विचार की प्रेरणा उनके रिश्तेदार, पूर्व विधायक स्व. लोकेंद्र यादव से मिली। जब 8 अप्रैल 2013 को उनका निधन हुआ था और उनका शव रायपुर मेडिकल कॉलेज भेजा गया, तो कादम्बिनी ने मन में ठान लिया कि वे भी देहदान करेंगी। विवाह के बाद, जब उनके पति स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत हुए, तो उनकी सहायता से इस निर्णय को वास्तविक रूप दिया।
लोकेश और कादम्बिनी दोनों का कहना है कि स्वास्थ्य सेवा से जुड़ने के बाद वे देहदान के महत्व को और भी समझ पाए। लोकेश ने अपने अनुभव को साझा करते हुए कहा, "देहदान की शुरुआत मेरे जीवन के एक सपने के रूप में थी, और आज इसे साकार कर पाया हूं।" वे दूसरों को भी इस नेक कार्य के लिए प्रेरित करते हैं और बताते हैं कि किसी की मदद करने का इससे बड़ा कोई पुण्य कार्य नहीं हो सकता।
अपने जन्मदिन पर देहदान की घोषणा करके इस दंपत्ति ने समाज के लिए एक मिसाल पेश की। उनकी इस पहल को बालोद कलेक्टर इंद्रजीत सिंह चंद्रवाल ने भी सराहा और सम्मानित किया। कादम्बिनी और लोकेश को उनके परिवार, मित्रों, शाला परिवार, रेड क्रॉस सोसाइटी, बालोद शिक्षा विभाग और अन्य सामाजिक संगठनों से ढेर सारी शुभकामनाएं मिलीं। इसके साथ ही, वे रक्तदान, स्वास्थ्य सेवा, और समाज की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। कई बार इन्होंने रक्तदान किया है और जरूरतमंदों की मदद करने के लिए कभी भी पीछे नहीं हटे।
इनका मानना है कि मृत्यु के बाद शरीर का कोई उपयोग नहीं रह जाता, लेकिन अगर इसे चिकित्सा शिक्षा के लिए दान किया जाए, तो यह आने वाली पीढ़ी के लिए बहुत फायदेमंद हो सकता है। कादम्बिनी और लोकेश का संदेश साफ है "देहदान करें, ताकि आने वाली पीढ़ी के लिए यह शरीर किसी काम आ सके!" और इस प्रेरणादायक कदम के लिए उन्हें इंडियन रेड क्रॉस सोसाइटी की पहल पर बालोद के कलेक्टर द्वारा सम्मानित भी किया गया।