नईदुनिया प्रतिनिधि, अंबिकापुर : मध्यप्रदेश का बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व, झारखंड का पलामू टाइगर रिज़र्व और छत्तीसगढ़ का गुरुघासीदास-तमोर पिंगला टाइगर रिजर्व एक-दूसरे से जुड़ गए हैं। इनके जुड़ाव में छत्तीसगढ़ का सेमरसोत अभयारण्य और मध्यप्रदेश का संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान माध्यम बना है। तीनों अभयारण्य के साथ समूचा क्षेत्र लगभग 7600 वर्ग किमी में फैला हुआ है। इसलिए यहां बाघों के स्वच्छंद विचरण से एक अघोषित बाघखंड अस्तित्व में आता प्रतीत हो रहा है। इसी महीने छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले में बाघ ने कई मवेशियों का शिकार किया। ट्रैप कैमरे में भी यह बाघ कैद हुआ। पलामू टाइगर रिजर्व से आया यह बाघ फिर वापस लौट गया है। एक वर्ष पहले भी एक बाघ गुरुघासीदास-तमोर पिंगला टाइगर रिजर्व से निकलकर सेमरसोत अभयारण्य से होते हुए पलामू टाइगर रिजर्व में प्रवेश कर गया था। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में सबसे अधिक 165 बाघ है। वहीं, गुरुघासीदास में पांच व पलामू में दो बाघों की उपस्थिति बताई जाती है। तीनों टाइगर रिजर्व के बाघों को एक-दूसरे के क्षेत्र में देखा जा रहा है। बाघों के संरक्षण और संवर्धन के काम होने से उन्हें बेहतर माहौल मिलना व भौगोलिक रूप से तीनों रिजर्व के जुड़े होने से पर्याप्त जगह मिलना उनके लिए कारगर साबित हो रहा है।
यह है बाघों का नया कारीडोर
मध्यप्रदेश का बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व ,संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान से लगा है।इस राष्ट्रीय उद्यान की सीमाएं छत्तीसगढ़ के गुरुघासीदास -तमोर पिंगला टाइगर रिजर्व से लगी हुई है। यह टाइगर रिजर्व छत्तीसगढ़ के सेमरसोत अभयारण्य से जुड़ा हुआ है। सेमरसोत अभयारण्य के जंगल से होते हुए बाघ झारखंड के पलामू टाइगर रिजर्व तक पहुंच रहे हैं। बता दें, मध्यप्रदेश के संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान के हिस्से को छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना के साथ गुरुघासीदास राष्ट्रीय उद्यान का नाम दिया गया था।इससे लगे तमोर पिंगला अभयारण्य को जोड़कर नया टाइगर रिजर्व बनाया गया है।
ये क्षेत्र जुड़ गए आपस में
0 बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व - 1536.938 वर्ग किमी
0 संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान -1674.512 वर्ग किमी
0 गुरुघासीदास तमोर पिंगला टाइगर रिजर्व - 2829.387 वर्ग किमी
0 पलामू टाइगर रिजर्व - 1129.936 वर्ग किमी
0 सेमरसोत अभयारण्य - 430.361 वर्ग किमी
कुल क्षेत्रफल - 7601.134 वर्ग किमी
तीन कारणों से नया क्षेत्र तलाशते हैं बाघ
सरगुजा वनवृत्त के मुख्य वन संरक्षक वी माथेश्वरन का कहना है कि तीन कारणों से बाघ नया क्षेत्र तलाशते हैं। जिस संरक्षित क्षेत्र में बाघों की संख्या अधिक हो जाती है उधर से बाघ नए क्षेत्र में प्रवेश करते हैं। दूसरा कारण है कि एक साथ दो नर बाघ नहीं रहते। नर बाघों में आपसी संघर्ष होता है। इस संघर्ष में या तो एक बाघ की मौत होती है या उसे उस क्षेत्र को छोड़ना पड़ता है। तीसरा महत्त्वपूर्ण कारण बाघों की उम्र होती है। बढ़ती उम्र के साथ बाघ कमजोर होते हैं। उनके दांतों और नाखूनों में वो पैनापन नहीं रह पाता। इसलिए शाकाहारी वन्य जीवों की तुलना में पालतू मवेशियों के आसान शिकार के कारण बाघ जंगल का संरक्षित क्षेत्र छोड़कर दूसरे क्षेत्र में पहुंच जाता है।
बाघ की पहचान के लिए अब विशेषज्ञ दे रहे प्रशिक्षण
उत्तर छत्तीसगढ़ में बाघों की चहलकदमी पिछले कुछ महीनों से बढ़ गई है।यही कारण है कि वन विभाग की ओर से बाघ की पहचान और उसके विचरण के बारे में वन अधिकारी-कर्मचारियों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया के सदस्य व वन्य प्राणी विशेषज्ञ उपेंद्र दुबे द्वारा सूरजपुर व बलरामपुर जिले में बाघों के विचरण की ट्रैकिंग को लेकर अधिकारी-कर्मचारियों को प्रशिक्षित किया गया है।
इस संबंध में मुख्य वन संरक्षक सरगुजा वी माथेश्वरन ने कहा कि तीन कारण संख्या अधिक होने के नर बाघों में संघर्ष व आयु अधिक होने की स्थिति में बाघ नया क्षेत्र तलाश करता है। बाघों के लिए हरा जंगल सुरक्षित रखा जा रहा है। बलरामपुर जिले में एक बाघ की 15 से 20 दिन तक ट्रेकिंग की गई। यह झारखंड के पलामू टाइगर रिजर्व से आया था। बाघ वापस लौट गया है। पलामू टाइगर रिजर्व प्रबंधन इसे क्रास चेक भी कर रहा है।