अंबिकापुर । शहर के बाबू पारा का प्राचीन काली मंदिर जिसका इतिहास करीब 100 साल पुराना है, माता के इस मंदिर का निर्माण एक रोचक घटना के साथ हुआ था। बात उन दिनों की है जब सरगुजा स्टेट में महाराजा रघुनाथ शरण सिंह गद्दी पर थे और उन्होंने बाबूपारा स्थित काली मंदिर में मूर्ति स्थापना करवाई थी। उस वक्त मंदिर का निर्माण नहीं हुआ था। घास फूस की छत के नीचे मां काली की मूर्ति स्थापित थी। उनके बाद महाराजा रामानुज शरण सिंह देव ने राजकाज संभाला। वे हाथियों पर सवारी करने के बड़े शौकीन थे। राजा ने एक मन्न्त मांगी थी और उसी को पूरा करने के लिए इस मंदिर का निर्मांण कराया।
उनका एक प्रिय हाथी बंडा था जिस पर वह दशहरे के दिन पूरे शानो-शौकत से बैठकर शहर में जुलूस की शक्ल में निकलते थे। अचानक बंडा हाथी दशहरे से कुछ दिन पहले गुम हो गया। नगर में हाहाकार मच गया। महाराज भी बहुत मायूस हो गए तब उन्हें किसी ने बताया कि बाबूपारा मां काली मंदिर में महाराज जाकर मन्न्त मांगे तो हाथी जरूर लौट आएगा।
महाराज तुरंत काली मंदिर पहुंचे और उन्होंने मां काली के सामने मत्था टेक कर अपने गुम हुए बंडा हाथी को वापस लौट आने की विनती की। दूसरे दिन महाराज को राजमहल के सामने अपने प्रिय हाथी बंडा के चिंघाड़ने की आवाज सुनाई दी।
वह बाहर दौड़कर निकले तो देखा कि उनके सामने सिर को हिलाते दरवाजे के सामने बंडा हाथी खड़ा है। वे आश्चर्यचकित रह गए। उनकी उनकी खुशी का ठिकाना ना रहा। वे बाबूपारा के काली मंदिर पहुंचे और मां काली के सामने माथा टेक कर उन्होंने कहा कि आज से मां काली इस खपरैलनुमा हिस्से में नहीं रहेंगी तुरंत मंदिर का निर्माण शुरू किया जाए और एक साल बाद बाबूपारा काली मंदिर का निर्माण पूरा हो गया।
राजपरिवार की है अगाध श्रद्धा
सौ साल पुराने काली मंदिर का निर्माण राजपरिवार की अगाध श्रद्धा को दर्शाता है। आज भी आम लोग अपनी मन्न्त मांगने के लिए माता के दरबार में माथा टेकते हैं। इधर राजमहल से भी आज भी हर नवरात्र में मां काली मंदिर के रंग रोगन से लेकर माता के लिए चढ़ावा भेजा जाता है।