इंदौर। प्री-मानसून की कमजोर बारिश के कारण खरीफ फसलों की बुवाई 8.14 फीसदी पीछे चल रही है। प्रमुख फसल धान के साथ ही दलहन, मोटे अनाज और कपास की बुवाई भी पिछड़ गई है। इसके अलावा गन्ने की बोवनी अब तक पिछले साल के मुकाबले कम हुई है।
मध्यप्रदेश और राजस्थान के किसान इस साल फसल बदल सकते हैं, जो बोवनी में देरी की एक वजह है। पिछले साल सूखे वाले राज्यों में सतर्कतावश देरी हो रही है।
कृषि मंत्रालय के मुताबिक चालू खरीफ सत्र की शुरुआत में अब तक 82.20 लाख हेक्टयेर में ही खरीफ फसलों की बुवाई हो पाई है, जबकि पिछले साल इस समय तक 90.34 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी।
हालांकि खरीफ फसलों की बुवाई अभी शुरुआती चरण में है फिर भी जिस तरह से प्री-मानसून की बरसात में कमी आई है उससे यह स्थिति पैदा हुई है। मंत्रालय को आगामी दिनों में मानसून की सक्रियता पर बुवाई तेज होने का अनुमान है।
खरीफ में बुवाई की स्थिति
फसल अब तक पिछले साल इस समय तक
धान 4.26 5.47
दलहन 1.04 2.11
मोटे अनाज 7.13 5.28
तिलहन 1.04 1.79
कपास 15.32 16.92
गन्ना 49.21 50.44
(सभी आंकड़े लाख हेक्टेयर में, स्त्रोतः कृषि मंत्रालय)
पिछले सीजन से सबक
खरीफ फसलों की बुवाई में अब तक जो कमी आई है, उसकी मुख्य वजह औसत से कम प्री-मानसून की बारिश मानी जा रहा है। लेकिन, इसकी एक अन्य वजह भी है। दरअसल, पिछले साल सूखे वाले इन राज्यों (महाराष्ट्र, कर्नाटक और गुजरात) में किसानों को देर से बोवनी करने की सलाह दी गई थी।
इन राज्यों में लगातार दोबारा बोवनी करने की वजह से किसानों की लागत काफी बढ़ने के कारण कर्ज का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है। इससे निजात पाने के लिए ही इन राज्य सरकारों ने इस बार शुरुआती बोवनी में जल्दबाज न करने की सलाह दी है।
मध्य प्रदेश, राजस्थान में स्थिति अलग
मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में हालात देश के अन्य हिस्सों से उलट है। इन राज्यों में खास तौर पर सोयाबीन के मामले में किसान काफी परेशानी महसूस कर रहे हैं।
फसल के समय औसत या न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बिक्री और उसके बाद भाव में 20 प्रतिशत से अधिक तेजी उन्हें छलावा लग रहा है।
दूसरी तरफ बेहतर पैदावार देने वाली मक्के की कीमतों में उछाल इन दोनों प्रदेशों में किसानो को आकर्षित कर सकता है। इसका बड़ा असर इस बार सोयाबीन की बोवनी पर नजर आ सकता है।