जन्मकुडंली में सन्त बनने का ज्योतिषीय विश्लेषण, कौन से ग्रह होते हैं जिम्मेदार
कुछ जातक ऐसे भी होते हैं जिनके मन में बचपन से ही वैराग्य की भावना वास करती है। इसके कारण वे ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं और आजीवन ब्रह्मचारी रहते हुए सन्त कहलाते है।सन्त बनने के लिए कुंडली के ग्रह, भाव और परिस्थितिया उत्तरदायी होती है।
Publish Date: Sun, 18 May 2025 08:23:31 PM (IST)
Updated Date: Sun, 18 May 2025 08:49:53 PM (IST)
जन्म कुंडली के इन भावों में छिपा है संत होने का अर्थ।HighLights
- ग्रहों के बाद कुंडली के भावों पर प्रकाश डालना भी आवश्यक है।
- सभी जातकों की कुंडली के सभी भावों का अपना महत्व होता है।
- सन्त जीवन को जीने में लग्न, पंचम और नवम भाव का योगदान है।
धर्म डेस्क, इंदौर। सन्त एक ऐसी उपाधि है जिसे सुनते ही आत्मा श्रद्धा से नतमस्तक हो जाती है। मन-मस्तिष्क में एक ऐसा त्यागमय स्वरूप उभर कर आता है जिसे ब्रह्म कहो, ईश्वर कहो या सन्त कहो एक ही बात है। सच तो यह है कि जो भगवान का स्वरूप है वही सन्त का स्वरूप है। सन्त की उपाधि भी भिन्न-भिन्न होती है कुछ जातक अपने पूर्व पुण्यो के कारण सन्त बनते है तो कुछ जातकों को सन्त की उपाधि उत्तराधिकार के रूप में भी प्राप्त होती है। कोई संत गृहत्यागी होता है तो कोई गृहस्थ में रहकर भी सन्त जीवन पालन करता है। ज्योतिष आचार्य मण्डन मिश्र: बताते हैं कि कुछ जातक ऐसे भी होते हैं जिनके मन में बचपन से ही वैराग्य की भावना वास करती है। इसके कारण वे ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं और आजीवन ब्रह्मचारी रहते हुए सन्त कहलाते हैं। सन्त बनने के लिए कुंडली के ग्रह, भाव और परिस्थितिया उत्तरदायी होती है।
![naidunia_image]()
सन्त बनाने वाले उत्तरदायी ग्रह
- सन्त बनने के लिए धर्म का कारक गुरु, वैराग्य का कारक शनि है।
- मोक्ष का कारक केतु मुख्य रूप से अपनी भूमिका निभाते हैं। इन्ही के साथ मन का कारक चंद्र और आत्मा का कारक सूर्य भी सन्त जीवन को प्रभावित करते हैं। साथ ही लग्नेश, पंचमेश और नवमेश सन्त जीवन को प्रज्वलित करते हैं।
यदि इन ग्रहों का सम्बन्ध द्वाददेश से भी हो तो निश्चित ही जातक में वैराग्य की भावना बलवान होगी क्योंकि वैराग्य और सन्त जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति ही होता है जो कि कुंडली का द्वादश भाव प्रदर्शित करता है।
गुरु धर्म का प्रबल कारक और सत्वगुणी होने के कारण जातक में धार्मिक प्रेम, आध्यत्म और सात्विक गुणों को प्रोत्साहित करता है और सन्त स्थिति जैसा वातावरण भी प्रदान करता है।
शनि वैराग्य और त्यागमय जीवन जीने की प्रेरणा प्रदान करता है। यहां तक पहुचने के लिए वह काम, क्रोध, मोह, लोभ, माया आदि अवगुणों का त्याग करता है।
यही त्याग जातक को परमपिता परमेश्वर की शरण में ले जाता है। शनि के प्रभाव से जातक अपने सांसारिक और भौतिक जीवन को छोड़कर त्यागमय जीवन जीने के लिए उघत होता है।
इसी तरह चंद्रमा की स्थिति जातक के मन की सुदृढ़ता और मस्तिष्कीय विचारों की परिचायक है।
सूर्य की तेजस्विता आत्मा को सुदृढ़ता और बल प्रदान करती है, जो कि इस जीवन को जीने के लिए परम आवश्यक है।मनुष्य का अंतिम लक्ष्य मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति है।
मोक्ष का कारक ज्योतिष में केतु को माना गया है लेकिन शनि और गुरु की तरह नही, इस सम्बन्ध में शनि गुरु की भूमिका स्पष्ट होने पर ही इसका विचार करना चाहिए। सन्त बनाने वाले उत्तरदायी भाव
- ग्रहों के बाद कुंडली के भावों पर प्रकाश डालना भी आवश्यक है। कुंडली के सभी भावों का अपना महत्व है लेकिन सन्त जीवन को जीने में लग्न, पंचम और नवम भाव का विशेष योगदान रहता है।
- जातक की कुंडली का नवम भाव धार्मिक विचारधारा को दर्शाता है साथ ही नवम भाव में स्थिति ग्रह और नवम भाव उपनक्षत्र और नक्षत्रेश जातक में धार्मिक भावना है या नही, इस बात को दर्शाता है।
- पंचम भाव जातक की मानसिक स्थिति को दर्शाता है।पंचम भाव का उपनक्षत्र और नक्षत्रेश जातक में सात्विक-राजसिक-तामसिक भावना को बतलाता है कि जातक ने वैराग्य तो धारण किया है लेकिन वह किस कारण से और उसका सन्त बनने के पीछे क्या उद्देश्य है? यह बात दर्शाता है।
नवम और पंचम भाव के साथ तृतीय भाव मानसिक रूचि को प्रदर्शित करता है और यह बात भी बताता है कि जातक इस जीवन को जीने के लिए संघर्ष कर सकता है या नहींं।
क्योंकि यदि पराक्रम का भाव तृतीय भाव बली नही होगा तो जातक किसी न किसी परिस्थितिवश यह जीवन जीने को विवश हो कहा जायेगा।
हो सकता है कि वह जातक सन्त जीवन में पहुँचकर पलायन भी कर जाए।
इनके साथ ही यदि चतुर्थ भाव जो मानसिक भावनाओं और समर्थकों का प्रतीक है का सन्त जीवन के लिए अनुकूल होना भी आवश्यक है। अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। नईदुनिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। नईदुनिया अंधविश्वास के खिलाफ है।