- कुलपति बनने के लिए गृह मंत्री अमित शाह बनकर फर्जी तरीके से फोन करने का मामला
- छह माह बाद भी एसटीएफ मामले में कोर्ट में चालान पेश नहीं कर सकी
अभिषेक दुबे
भोपाल।
मध्य प्रदेश के संगठित अपराधों की जांच के लिए गठित एसटीएफ कितनी संजीदगी से काम करती है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जिस मामले में प्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन फरियादी हैं उस मामले में भी छह महीने में चालान पेश नहीं हो सका है। नियमानुसार आरोपित की गिरफ्तारी के तीन महीने के अंदर कोर्ट में चालान पेश कर दिया जाना चाहिए। चालन तय समय में पेश नहीं करने पर आरोपित को कोर्ट में लाभ मिलने की आशंका खड़ी हो जाती है।
गौरतलब है कि डेंटिस्ट रहे चंद्रेश शुक्ला और उसके दोस्त विंग कमांडर रहे कुलदीप बाघेला ने कंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह बनकर राज्यपाल लालजी टंडन को फोन कर चंद्रेश को जबलपुर की मेडिकल यूनिवर्सिटी का कुलपति बनाने के लिए कहा था। राज्यपाल टंडन ने सजगता दिखाते जब फोन की जांच करवाई तो मामले का पर्दाफाश हो गया था। उन्होंने जालसाजी के इस मामले में एसटीएफ को कार्रवाई के निर्देश दिए थे। एसटीएफ ने उस समय तो घटना के तीन दिन के अंदर कार्रवाई कर दोनों आरोपितों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। बाद में इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया। दोनों आरोपित फिलहाल जमानत पर हैं।
तय समय में चालान पेश नहीं कर पाने को लेकर एसटीएफ कोई ठोस वजह भी नहीं बता पा रही है। एसटीएफ के पुलिस अधीक्षक राजेश सिंह भदौरिया का कहना है कि दिल्ली में विंग कमांडर रहे और इस मामले के आरोपित कुलदीप बाघेला के खिलाफ चालान पेश करने की अनुमति मांगी गई है। अनुमति मिलते ही चालान पेश कर दिया जाएगा। मोबाइल कंपनी के अधिकारियों की भूमिका की जांच की जा रही है।
बड़े नेताओं से रहे हैं संबंध
मामले के पर्दाफाश होने के बाद चंद्रेश के कांग्रेस और भाजपा के कई बड़े नेताओं से संबंध सामने आए थे। चंद्रेश ने अपनी फेसबुक प्रोफाइल पर भाजपा एवं कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं के साथ फोटो भी डाल रख थे। जेल जाने के बाद चंद्रेश की डिग्री डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया ने निरस्त कर दी थी। जिस नंबर से राज्यपाल को आरोपितों ने फोन किया था वो प्राइवेट नंबर था। यह नंबर गुवाहाटी से जारी हुआ था। केंद्र सरकार के नियमों के मुताबिक इस नंबर को जारी करने के पहले पुलिस महानिरीक्षक की अनुमति लगती है, जो कि नहीं ली गई थी। पुलिस इस बात की भी जांच कर रही है कि बिना सक्षम अनुमति के कंपनी ने नंबर कैसे जारी कर दिया।